CAG ने कहा, मुफ्त की रेवड़ियों और उचित सब्सिडी में अंतर करना बेहद जरूरी

कैग गिरीश चंद्र मुर्मू के अनुसार, राज्यों को राजस्व के अपने स्रोतों से, कर्ज और अग्रिम सहित अपने पूंजीगत व्यय को पूरा करना चाहिए. कम से कम शुद्ध ऋण को अपने पूंजीगत व्यय तक ही सीमित रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम वंचितों की मदद के लिए सब्सिडी के महत्व को समझते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2023 1:54 PM

नई दिल्ली : देश के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) गिरीश चंद्र मुर्मू ने कहा कि उचित सब्सिडी और मुफ्त की रेवड़ियों के बीच अंतर करना जरूरी है. इसके साथ ही, उन्होंने राज्यों को अपने राजस्व स्रोतों से अपने पूंजीगत व्यय को पूरा करने की सलाह दी. मुर्मू ने एक दिवसीय वार्षिक महालेखाकार सम्मेलन में इस बात पर भी जोर दिया कि राज्यों को सब्सिडी के उचित लेखांकन को बनाए रखने के लिए कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटे को कम करने, राजस्व घाटे को खत्म करने और बकाया कर्ज को स्वीकार्य स्तर पर रखने के लिए विवेकपूर्ण उपाय करने चाहिए.

वंचितों की मदद के लिए सब्सिडी जरूरी

कैग गिरीश चंद्र मुर्मू के अनुसार, राज्यों को राजस्व के अपने स्रोतों से, कर्ज और अग्रिम सहित अपने पूंजीगत व्यय को पूरा करना चाहिए. कम से कम शुद्ध ऋण को अपने पूंजीगत व्यय तक ही सीमित रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम वंचितों की मदद के लिए सब्सिडी के महत्व को समझते हैं और ऐसी सब्सिडी के लिए पारदर्शी खाता होना जरूरी है. इसके साथ ही, हमें उचित सब्सिडी और मुफ्त की रेवड़ियों के बीच अंतर करने की जरूरत है.

सब्सिडी और मुफ्त की रेवड़ी में अंतर

बताते चलें कि सब्सिडी और मुफ्त की रेवड़ियों के शाब्दिक और मौलिक व्यवहार में बहुत बारीक अंतर हैं. चुनावों से पहले राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं से मुफ्त में सेवाएं और वस्तुएं मुहैया कराने का वादा करते हैं. राजनीतिक दल जिस तरह मुफ्त उपहारों का वादा करते हैं, उसे लेकर मुफ्त की रेवड़ियों की श्रेणी में रखा गया है. वहीं, सब्सिडी को राजसहायता या सरकारी सहायता के नाम से भी जाना जता है, जो सामान्यतः केंद्र अथवा राज्य सरकारों की ओर से गरीब और वंचित नागरिकों, सामाजिक भलाई से जुड़े व्यापार, शैक्षिक अथवा स्वास्थ्य संस्थानों को दिया जाने वाला लाभ है. आमतौर पर यह नकदी में भुगतान अथवा टैक्स में कमी करके दिया जाता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने भी की है टिप्पणी

पिछले साल अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त की रेवड़ियों पर सुनवाई करते हुए कई अहम टिप्पणियां की थी. उस समय सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि इस मसले पर चर्चा की जरूरत है, क्योंकि देश के कल्याण का मसला है. अदालत ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का जनता से मुफ्त की रेवड़ियों का वादा और कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर करने की जरूरत है. सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान साफ-साफ कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत सभी दल एक ही दिख रहे हैं.

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