…तो क्या RBI से फिर फंड की मांग कर सकती है केंद्र सरकार? कोरोना संकट में राजस्व वसूली पर पड़ा है गहरा असर
देश में जारी कोरोना संकट के बीच एक खबर आ रही है कि अपने जरूरी खर्च के लिए केंद्र सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से एक बार फिर फंड (पैसे) की मांग कर सकती है. दरअसल, सरकार ऐसा इसलिए भी कर सकती है, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से राजस्व वसूली पर गहरा प्रभाव पड़ा है और उसे अपने नियमित खर्चों को वहन करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में वह आरबीआई को सीधे सरकारी बॉन्ड खरीदने के लिए कह सकती है या फिर लाभांश के रूप में आर्थिक मदद मांग सकती है.
नयी दिल्ली : देश में जारी कोरोना संकट के बीच एक खबर आ रही है कि अपने जरूरी खर्च के लिए केंद्र सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से एक बार फिर फंड (पैसे) की मांग कर सकती है. दरअसल, सरकार ऐसा इसलिए भी कर सकती है, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से राजस्व वसूली पर गहरा प्रभाव पड़ा है और उसे अपने नियमित खर्चों को वहन करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में वह आरबीआई को सीधे सरकारी बॉन्ड खरीदने के लिए कह सकती है या फिर लाभांश के रूप में आर्थिक मदद मांग सकती है.
इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, सरकार के राजस्व पर कोरोना वायरस की महामारी का काफी असर पड़ा है. सरकार का बजट बढ़कर जीडीपी के 7 फीसदी तक पहुंच गया है. एक अनुमान के मुताबिक, यह दो दशक में सबसे ज्यादा है. नयी दिल्ली स्थित पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर (आरबीआई चेयर) सब्यसाची कार के हवाले से अखबार ने लिखा है कि घाटा कम करने के उपाय करना सही कदम होगा. अगर सरकार खर्च करेगी, तभी अर्थव्यवस्था में मांग पैदा होगी.
सब्यसाची कार ने कहा कि अमेरिका से लेकर जापान तक के केंद्रीय बैंक कोरोना की महामारी से मुकाबले में अपने सरकारों की मदद कर रहे हैं. उभरते बाजारों में भी ऐसा देखने को मिला है. इंडोनेशिया में केंद्रीय बैंक ने इस हफ्ते सरकार से सीधे अरबों डॉलर के बॉन्ड खरीदने पर सहमति जताई है. हालांकि, उभरते अर्थव्यवस्था वाले देशों में इस तरह के उपायों के अपने जोखिम हैं. इससे मुद्रास्फीति, करेंसी और केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर असर पड़ सकता है.
भारत में आरबीआई प्राथमिक बाजारों में सरकार से सीधे बॉन्ड नहीं खरीद सकता. राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम में इस बात का प्रावधान है, लेकिन इस कानून में खास स्थितियों में ऐसा करने की इजाजत है. राष्ट्रीय आपदा या बहुत ज्यादा आर्थिक सुस्ती के माहौल में ऐसा किया जा सकता है. हालांकि, आरबीआई ने अब तक द्वितीयक बाजार में बॉन्ड की कुछ खरीदारी की है, लेकिन उसने अब तक यह नहीं बताया है कि वह इस वित्त वर्ष में सरकार के लिए 12 लाख करोड़ रुपये की रकम उधार से जुटाने की योजना को किस तरह अमल में लाएगा.
बता दें कि आरबीआई केंद्र सरकार के लिए बाजार से कर्ज जुटाने का काम करता है. अभी बैंक सरकारी बॉन्ड में इस उम्मीद में निवेश कर रहे हैं कि केंद्रीय बैंक बाद में इन बॉन्ड को खरीद लेगा. अभी बैंकों के पास काफी नकदी है. उधर, लोन की मांग काफी कम है. इस वजह से उन्होंने अपना पैसा सरकारी बॉन्ड में निवेश किया है. 19 जून को सरकारी बॉन्ड में बैंकों का निवेशक 41.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. यह मार्च के अंत के मुकाबले 13 फीसदी ज्यादा है.
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और सरकार की ओर से आरबीआई के रिजर्व फंड से 3.6 लाख करोड़ रुपये की मांग किए जाने की वजह से वर्ष 2018 के अक्टूबर-नवंबर महीने में जोरदार जंग छिड़ी हुई थी. इसी का नतीजा रहा कि 10 दिसंबर 2018 को आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल को अपने पद इस्तीफा दे देना पड़ा था. उनके इस्तीफे के बाद सरकार ने शक्तिकांत दास को रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया.
दरअसल, वर्ष 2018 की खींचतान केवल सरकार और आरबीआई के बीच ही नहीं थी. अर्थव्यवस्था में राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के स्तर पर भी यही बात थी. राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति का अर्थव्यवस्था पर अपना अलग-अलग असर होता है. रिजर्व बैंक की स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत की गयी थी. केंद्रीय बैंक इसी अधिनियम के जरिए अपनी मौद्रिक कार्यप्रणाली चलाता है. इसी अधिनियम की धारा 7 के तहत सरकार आरबीआई को किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा जरूरी समझने पर आदेश जारी करती है.
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Posted By : Vishwat Sen
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