कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर को तबियत से उछालो यारों.. इस बात को अगर किसी ने सच किया हो तो वे हैं अंबानी परिवार के मुखिया धीरूभाई अंबानी ने. धीरुभाई ने अपनी मेहनत से रिलायंस इंडस्ट्रीज को एक छोटे ऑफिस से इस मुकाम पर पहुंचाया है.
धीरुभाई अंबानी के शुरूआती दिन संघर्ष से भरे हुए थे. परिवार में वित्तीय संकट के कारण उन्होंने शिक्षा की पूरी नहीं की. 1949 में वो अपने भाई रमणिकलाल के पास केवल 17 साल की उम्र में यमन चले गए. वहां उन्होंने ए बस्सी एंड कंपनी के एक पेट्रोल पंप पर नौकरी की.
रिलायंस की स्थापना में धीरुभाई की मेहनत और इमानदारी तो थी ही, साथ ही, कई अपनों का भरोसा और साथ भी था. इसमें से एक थे चंपकलाल दमानी. चंपकलाल दमानी धीरुभाई के चचेरे भाई थे.
यमन से वापस आने के बाद धीरुभाई ने तय किया वो अब नौकरी नहीं करेंगे. मगर व्यापार शुरू करने के लिए उनके पास उतने पैसे नहीं थे. ऐसे में उन्होंने अपने चचेरे भाई चंपकलाल के साथ मिलकर काम मसालों और शक्कर के व्यापार शुरू किया. इसकी के साथ, रिलायंस कमर्शियल कॉरर्पोरेशन की नींव पड़ी.
व्यापार में हर वक्त सब सामान्य नहीं रहता है. 1965 में धीरुभाई और चंपकलाल दमानी के बीच साझेदारी समाप्त हो गई, क्योंकि दोनों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए. अंबानी की रुचि जोखिम और नया परिवर्तन में थी. मगर दमानी का व्यापार को लेकर अलग दृष्टिकोण से टकरा रही थी.
रिलायंस इंडस्ट्रीज की उत्पत्ति में धीरूभाई अंबानी और चंपकलाल दमानी के बीच की साझेदारी ने बड़ी भूमिका निभाई. इसका परिणाण आज पूरी दूनिया के सामने है.
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