China Trapping : अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआइ) पहल के नाम पर दुनियाभर में चीन के निवेश की कलई धीरे-धीरे खुलती जा रही है. अमेरिका में वर्जीनिया के विलियम एंड मैरी यूनिवर्सिटी स्थित एडडाटा रिसर्च लैब के अनुसार, 42 देशों पर चीन का कर्ज उनके जीडीपी के 10 फीसदी से भी अधिक हो गया है. अहम बात यह है कि बहुत से गरीब देशों को यह अंदाजा भी नहीं है कि असल में उन पर चीन का कितना कर्ज है.
रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति शी जिनपिंग का यह फेवरेट प्रोजेक्ट वह जाल बन गया है, जिसके जरिये दुनिया के कई देशों को कर्ज के चक्रव्यूह में फंसा दिया गया है. एडडाटा के एसोसिएट डायरेक्टर ब्रूक रसेल के मुताबिक, चीन अक्सर परियोजनाओं से जुड़ी विस्तृत जानकारियां छिपा लेता है, जिससे देशों के लिए यह आकलन कर पाना संभव नहीं होता कि बीआरआइ का हिस्सा बनने से उन्हें कितना फायदा या नुकसान है. रसेल ने बताया कि अधिकतर गरीब देश तात्कालिक लाभ के लिए इस बात पर ध्यान नहीं देते कि चीन इस परियोजना के तहत उन्हें सहयोग नहीं कर रहा, बल्कि कर्ज देकर उन्हें गुलाम बना रहा है.
रसेल ने बताया कि चीन की ओर से इन देशों को दिये गये पैसे में कर्ज और अनुदान का अनुपात 31:1 का है. इन देशों पर चीन का 385 अरब डॉलर का कर्ज है, जिसे चुकाना अब उनके लिए मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है. चीन की इन नीतियों से दुनिया में बीजिंग के प्रति असंतोष बढ़ रहा है और विपक्षी दल हमलावर हो गये हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की स्टडी के मुताबिक, साल 2040 तक दुनियाभर में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 94 लाख करोड़ डॉलर की जरूरत होगी. इससे साफ है कि क्यों दुनिया को चीन के पैसों की जरूरत है. इसी वजह से कर्ज में डूबने के बावजूद दुनिया बीआरआइ की खामियों को नजरअंदाज कर रही है.
-यूरोप के 71 देश भी चंगुल में
-165 देशों में 13,427 परियोजनाओं में विकास के नाम पर लगाये पैसे
-843 बिलियन डॉलर की भारी-भरकम धनराशि दिये ऋण के तौर पर
-चीन का सालाना निवेश यूएस के दोगुने से भी ज्यादा
-85 चीन
-37 अमेरिका
एडडाटा के कार्यकारी निदेशक ब्रैड पार्क्स ने बताया कि हम चीन में अधिकारियों को हर समय यह कहते सुनते हैं कि ‘देखो, यह एकमात्र विकल्प है.’ चीन और उसके पड़ोसी देश लाओस के बीच चलने वाली रेल चीन के ‘ऑफ-द-बुक’ उधार देने का एक प्रमुख उदाहरण माना जाता है. लाओस बीआरआइ में लगे पैसे का एक हिस्सा भी चीन को नहीं चुका सका. अपना हिस्सा देने के लिए लाओस को एक चीनी बैंक से 480 मिलियन डॉलर का ऋण लेना पड़ा. हिस्सेदारी के तहत चीन के बैंक ने लाओस को जो लोन दिया, उसके बदले में चीन ने लाओस की पूरी रेलवे लाइन पर कब्जा कर लिया. सितंबर 2020 में लाओस दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया. ऐसे में इस स्थिति से निबटने के लिए लाओस ने फिर चीन को अपने पावर ग्रिड का एक हिस्सा 600 मिलियन डॉलर में सौंप दिया.
एडडाटा के ब्रैड पार्क्स ने बताया कि चीन गरीब देशों को मदद के नाम पर दिये जानेवाले पैसे को अनुदान की जगह कर्ज पर देता है. इस पैसे का करीब 70% राज्य के बैंकों या चीनी व्यवसायों और उन देशों में लोकल पार्टनर्स के बीच ज्वाइंट वेंचर्स को दिया जाता है, जो पहले से ही बीजिंग के कर्जदार हैं. अस्पष्ट कॉन्ट्रैक्ट के कारण कई सरकारें और कर्ज लेने की स्थिति में भी नहीं हैं.
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शोधकर्ताओं ने चीन के सभी तरह के कर्ज, खर्च और निवेश की जानकारी जुटाने में चार साल का समय लगाया है. उनका कहना है कि चीन के कॉन्ट्रैक्ट इतने अस्पष्ट और उलझाऊ होते हैं कि इसे तुरंत समझना कमजोर देशों के बूते के बाहर है. दूसरी ओर, इन देशों को अपने चंगुल में फांसने के लिए बैठा बीजिंग धमकी और कूटनीति का भी सहारा लेता है.
-चीन का कर्ज चुकाने के लिए लाओस ने चीन से ही लिया कर्ज, गिरवी में पूरे देश की रेलवे लाइनें
Posted By : Amitabh Kumar
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