सूखे ने बढ़ायी दुनिया की चिंता, कैसी है भारत की स्थिति, पढ़ें यहां
इस साल सामान्य से कम बारिश ने देश-दुनिया में सूखे की स्थिति उत्पन्न कर दी है. आज दुनिया के अनेक देश सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं. सूखे ने दुनिया में किस तरह का संकट पैदा किया है, कैसी है भारत की स्थिति, इन पहलुओं को समेटे है इस बार का इन दिनों पेज...
मानवीय गतिविधियों के कारण गर्म हुई धरती ने दुनिया की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. वर्षों से प्रकृति मानव को बार-बार चेतावनी देती आ रही थी कि वह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना और धरती से छेड़छाड़ बंद करे. उसके साथ सहअस्तित्व में रहे, वरना इसके भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं, पर मानव ने उसकी एक न सुनी. परिणाम हमारे सामने है. आज दुनिया के अनेक देश सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं. सूखे ने दुनिया में किस तरह का संकट पैदा किया है, कैसी है भारत की स्थिति, इन पहलुओं को समेटे है इस बार का इन दिनों पेज…
यूरोप और अमेरिका की तमाम नदियां सूख गई
बीते वर्ष जब संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि कोविड-19 के बाद सूखा दूसरी महामारी साबित होगी, तब बहुत से लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था. पर अब यह भविष्यवाणी सच साबित हो गयी है, वह भी अनुमान से बहुत पहले. इस वर्ष हुई सामान्य से कम बारिश ने देश-दुनिया में सूखे की स्थिति उत्पन्न कर दी है. यूरोप और अमेरिका की तमाम महत्वपूर्ण नदियां सूख चुकी हैं, जबकि चिलचिलाती गर्मी से चीन की हालत खराब है. दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका की स्थिति भी बहुत खराब है. भारत में कहीं अत्यधिक बारिश, तो कहीं सामान्य से कम बारिश दर्ज हुई है.
भयानक सूखे की चपेट में यूरोप
यूरोप भयानक सूखे की चपेट में है. इस महाद्वीप ने बीते 500 वर्षों में ऐसा सूखा नहीं देखा था, जिसका सामना उसे आज करना पड़ रहा है. यूरोपीय आयोग की अनुसंधान शाखा, वैश्विक सूखा वेधशाला (ग्लोबल ड्राउट ऑब्जर्वेटरी) की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार, आधा यूरोप सूखे की चपेट में है, यहां की मिट्टी की नमी सूख गयी है. जबकि यहां के बाकी 17 प्रतिशत हिस्से पर सूखे का खतरा मंडरा रहा, क्योंकि इस क्षेत्र की वनस्पतियां सूख रही हैं, मर रही हैं. बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इटली, लक्जमबर्ग, माल्डोवा, नीदरलैंड, उत्तरी सर्बिया, पुर्तगाल, रोमानिया, स्पेन, यूक्रेन और यूनाइटेड किंगडम में सूखे का सबसे अधिक खतरा है. यहां की हालत बदतर होती जा रही है.
जलापूर्ति का संकट
गर्म हवा चलने और पानी की कमी होने से पूरे यूरोप में पानी की मांग बढ़ गयी है, इससे जलापूर्ति को लेकर बहुत दबाव है. यूरोप की लगभग सभी नदियां कुछ हद तक सूख गयी हैं. इससे न केवल नावों पर प्रभाव पड़ा है, बल्कि पहले से संकट में चल रहा ऊर्जा क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है. हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर में 20 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है.
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इटली में पो नदी घाटी सूख रही है और यहां के पांच क्षेत्रों में सूखा आपातकाल घोषित कर दिया गया है. इस स्थिति ने नगरपालिकाओं को पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर कर दिया है.
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फ्रांस में भी पानी के उपयोग पर इसी तरह का प्रतिबंध लागू किया गया है.
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यूरोप के दक्षिण-पश्चिम में स्थित आइबेरियन प्रायद्वीप भी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहा है.
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स्पेन के जलाशयों में पानी की मात्रा 31 प्रतिशत कम हो गयी है.
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पुर्तगाल में भी जलाशयों का जल स्तर कम हो गया है. ऐसे में यहां के जलविद्युत उत्पादन के प्रभावित होने की संभावना है.
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फ्रांस में लॉयर नदी का एक बड़ा हिस्सा सूख गया है,
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जिससे दुनिया के सबसे मूल्यवान अंगूर के बागों पर खतरा मंडरा रहा है.
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यूरोप के 10 देशों से होकर गुजरने वाली डेन्यूब नदी, जो महत्वपूर्ण पोत मार्ग भी है, उस पर भी संकट छाया हुआ है.
फसलों की पैदावार होगी प्रभावित
रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि शुष्क मौसम के कारण फसलों की पैदावार प्रभावित होगी. फसल को लेकर यूरोपीय संघ का पूर्वानुमान है कि बीते पांच वर्षों के औसत की तुलना में, मक्का की उपज में 16 प्रतिशत, सोयाबीन में 15 प्रतिशत और सूरजमुखी में 12 प्रतिशत की कमी आयेगी.
स्पेन-पुर्तगाल के जंगलों में आग की संभावना
यूरोपीय संघ की मानें, तो गर्मी के कारण स्पेन और पुर्तगाल के जंगलों में आग लग सकती है और यह महीनों तक जारी रह सकती है. इससे फसल उत्पादन पर प्रभाव पड़ना तय है.
भारत के कई राज्यों में सामान्य से कम बारिश
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का पूर्वानुमान है कि देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में जून और जुलाई की तरह अगस्त और सितंबर में भी कम बारिश की संभावना है. इन दोनों महीनों में संभवत: इन क्षेत्रों को सूखे का भी सामना करना पड़ सकता है. देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में भयानक बाढ़ के बावजूद इसके अधिकांश क्षेत्रों में जून और जुलाई में सामान्य से कम बारिश हुई है. आईएमडी के मुताबिक, इस पूरे क्षेत्र में इस वर्ष जुलाई में सामान्य से 44.7 प्रतिशत कम बारिश हुई, जो 122 वर्ष में इस महीने में सबसे कम बारिश है.
धान की खेती पर असर
कम बारिश के कारण उत्तर-पूर्वी राज्यों के किसान परेशान हैं. कई किसानों की धान की खेती पूरी तरह चौपट हो गयी है. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल- ये तीनों प्रमुख धान उत्पादक राज्य हैं, कम बारिश के कारण सभी सूखे की चपेट में हैं. उत्तर प्रदेश में जहां इस वर्ष (16 अगस्त तक) सामान्य से 44 प्रतिशत कम बारिश दर्ज हुई है, वहीं बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में औसत से लगभग 30 प्रतिशत कम वर्षा हुई है.
बुवाई क्षेत्र सिकुड़ा
ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष धान का बुवाई क्षेत्र 12 प्रतिशत कम रहा. झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश के बुवाई क्षेत्र में सर्वाधिक कमी आयी है. चिंता वाली बात यह है कि 1997 से भारत के सूखा प्रभावित क्षेत्र 57 प्रतिशत तक बढ़ गये हैं. इतना ही नहीं, सूखे ने 2020 से 2022 के बीच देश के लगभग दो-तिहाई हिस्से को प्रभावित किया है. बीते एक दशक में भारत के एक-तिहाई जिले चार से अधिक बार सूखे का सामना कर चुके हैं. सूखे के कारण भारत अब संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सूखा अतिसंवेदनशीलता सूचकांक में प्रवेश कर चुका है.
पूर्वी अफ्रीका में खाद्य असुरक्षा की स्थिति
पूर्वी अफ्रीका इन दिनों भयानक सूखे से जूझ रहा है. इस क्षेत्र में 40 वर्षों में पहली बार ऐसा सूखा पड़ा है. अमेरिकी सरकार की ह्यूमनटेरियन इनफॉर्मेशन यूनिट (एचआईयू) के अनुसार, इथोपिया, सोमालिया और केन्या के 18 मिलियन से अधिक लोग भूख से जूझ रहे हैं. चार वर्षों से लगातार इस क्षेत्र में औसत से कम बारिश हुई है. सूखे ने यहां की खेती पर विध्वंसकारी प्रभाव डाला है. लाखों मवेशियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और उपज न होने के कारण खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय कमी आयी है. इस कारण यहां खाद्य असुरक्षा बढ़ गयी है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इथोपिया में जहां औसत फूड बास्केट की कीमत 66 प्रतिशत बढ़ गयी है, वहीं सोमालिया में इसके दाम में 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस कारण अनेक लोग बुनियादी खाद्य पदार्थों को भी नहीं खरीद पा रहे हैं.
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एचआईयू के अनुसार, सूखे के कारण 2021 से इथोपिया में चार लाख से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो चुके हैं. लगभग साढ़े सात मिलियन लोग पर्याप्त मात्रा में सस्ते और पोषक आहार से वंचित हैं, जबकि साढ़े चार लाख से अधिक बच्चे पूरी तरह कुपोषित हैं.
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सोमालिया में सात मिलियन से अधिक लोगों को पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं है, तो पांच वर्ष से कम उम्र के डेढ़ मिलियन बच्चे पूरी तरह कुपोषित हैं. आठ लाख से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो चुके हैं.
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एचआईयू के अनुसार, केन्या में चार मिलियन लोगों को पर्याप्त और पोषक आहार उपलब्ध नहीं है. पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग एक मिलियन बच्चे पूरी तरह कुपोषित हैं.
पानी की किल्लत बनी समस्या
पूर्वी अफ्रीका में ज्यादातर लोग खरीद कर पानी पीते हैं, पर सूखे से बुरी तरह प्रभावित होने के कारण यहां बहुत से परिवारों के लिए पानी खरीदना मुश्किल हो गया है. केन्या के 23 काउंटी में पानी के दाम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. वहीं इथोपिया के कई क्षेत्रों में यह वृद्धि 50 से 100 प्रतिशत तक है. सोमालिया के क्षेत्रों में यह वृद्धि क्रमश: 55, 75 और 87 प्रतिशत तक हो चुकी है. इतना ही नहीं, केन्या के सूखा प्रभावित क्षेत्र के 90 प्रतिशत खुले जल स्रोत, जैसे तालाब और कुंआ या तो समाप्त हो गये हैं, या सूख गये हैं.
सूखा : समस्या एवं समाधान
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर साल दुनियाभर में 5.50 करोड़ लोगों पर सूखे का सीधा असर होता है. अफ्रीका इस आपदा से सर्वाधिक प्रभावित महादेश है, जहां सूखे की 44 प्रतिशत घटनाएं होती हैं. हालांकि वैज्ञानिक बताते हैं कि इसकी गंभीरता और बारंबारता बढ़ती जा रही है, पर इसकी भविष्यवाणी कर पाना आसान काम नहीं है. सूखा आप तौर पर उस स्थिति को कहते हैं, जब कम बारिश से नमी सामान्य से कम हो जाती है. यह एक ऐसी जटिल स्थिति है, जो कई सप्ताह, महीने, यहां तक कि वर्षों तक रह सकती है. आम तौर पर सूखे को चार प्रकारों में बांटा जाता है. मौसमी सूखा लंबे समय से सूखा मौसम रहने और औसत से कम वर्षा या बर्फबारी होने से होता है. झरनों, नदियों, जलाशयों और भूजल के स्तर में भारी कमी को जलीय सूखा कहते हैं.
कृषि प्रक्रिया में सुधार पर ध्यान
जब मिट्टी में नमी की कमी से पौधों व फसलों का नुकसान होने लगता है, तो उसे कृषि सूखा कहा जाता है. जलाभाव में जब चीजों की आपूर्ति व मांग बाधित होती है, आवागमन पर असर पड़ता है और ऊर्जा उत्पादन घटने लगता है, तब सामाजिक-आर्थिक सूखे की स्थिति होती है. आम तौर पर मिट्टी की नमी का स्तर लंबे समय तक केवल 20 प्रतिशत रहता है, तो आधिकारिक रूप से सूखे की घोषणा की जाती है, पर अलग-अलग देशों में इस संबंध में नियम भी अलग-अलग हैं. सूखे से बचने के लिए सबसे पहले धरती के बढ़ते तापमान को कम करने की जरूरत है. तकनीकी व्यवस्था करने के साथ जल संरक्षण करने तथा कृषि प्रक्रिया में सुधार पर ध्यान देना चाहिए.
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