नयी दिल्ली : कोरोना महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहे देशवासी कोविड-19 संक्रमण कम होने पर आर्थिक विकास की उम्मीद कर रहे हैं. वहीं, पहले चक्रवाती तूफान ‘ताउ ते’ और अब ‘यास’ के कहर का सामना भारत के तटीय इलाकों के लोगों को करना पड़ रहा है. इसके अलावा कोविड-19 संक्रमण से स्वस्थ हो चुके कई लोग ब्लैक और व्हाइट फंगस की चपेट में आ रहे हैं.
इस बीच, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की खबर ने देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था में उम्मीद की किरण दिखायी है. मालूम हो कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश सामान्य रहने की उम्मीद है. विभाग के मुताबिक, इस साल 98 फीसदी बारिश होने की संभावना है. इससे लंबी अवधि तक बारिश होने की संभावना है.
बेहतर मानसून का अर्थ है कि देश में लगातार तीसरे साल बंपर खेती और उत्पादन होने की संभावना है. इससे कोरोना महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान का समर्थन निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट ने भी किया है. स्काईमेट के मुताबिक, देश में लंबी अवधि तक अर्थात 103 फीसदी बारिश होने की संभावना है.
मालूम हो कि देश में खाद्यान्न उत्पादन के लिए दक्षिण-पश्चिम मानसून की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. दक्षिण-पश्चिम मानसून का 70-75 फीसदी हिस्सा कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसका कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-17 प्रतिशत का योगदान होता है. यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 55-60 फीसदी रोजगार के लिए भी जिम्मेदार है.
मानसून का असर शेयर बाजार पर भी पड़ता है. देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले कृषि क्षेत्र को मानसून प्रभावित करता है. ऐसे में मानसून के मौसम में इक्विटी के कई खंडों में तेजी की उम्मीद जतायी जा रही है. अच्छे मानसून से ग्रामीण खर्च में बढ़ोतरी के साथ कई उद्योगों के उत्पादों और सेवाओं की मांग में बढ़ोतरी देखी जाती है. ऐसे में इक्विटी मार्केट की उर्वरक और रसायन, बीज और ट्रैक्टर निर्माता कंपनियों के शेयर में शॉर्ट टर्म उछाल देखने को मिलती है.
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