Explainer: टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र के पालघर में रविवार को हुई एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. बताया गया कि यह दुर्घटना उस वक्त हुई, जब अहमदाबाद से मुंबई लौट रहे 54 वर्षीय साइरस मिस्त्री की कार पालघर जिले में एक डिवाइडर से टकरा गई. साइरस मिस्त्री के जीवन का सबसे अहम वक्त उनका टाटा संस का चेयरमैन बनना और उसके बाद उन्हें पद से हटाया जाना रहा. पद से हटाए जाने के खिलाफ वो टाटा समूह से भिड़ गए और अंत तक अपने हक की लड़ाई लड़ते रहे.
दरअसल, करीब 4 साल तक टाटा ग्रुप के प्रमुख की जिम्मेदारी संभालने के बाद साइरस मिस्त्री को इस पद से अचानक हटा दिया गया. यह सब कुछ ऐसे समय में हुआ, जब उनका परिवार और कारोबारी समूह शापूरजी पालोनजी ग्रुप, टाटा समूह में सबसे बड़ा सिंगल शेयरहोल्डर था. साइरस मिस्त्री के लिए ये घटना किसी परिवार में होने वाले बंटवारे जैसी थी. क्योंकि, वो और उनका परिवार लंबे समय से टाटा ग्रुप फैमिली का हिस्सा था और आखिर तक अपने हक की लड़ाई लड़ते रहे. साइरस मिस्त्री वो शख्स रहे जो सीधे रतन टाटा तक से भिड़ गए और टाटा के चेयरमैन पद से हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए.
कॉरपोरेट जगत के झगड़े की बात की जाएं तो साइरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच का विवाद सबसे बड़ा रहा. इन दोनों के बीच वर्षों तक मनमुटाव और विवाद चलता रहा तथा इस झगड़े को इतिहास का सबसे बड़ा विवाद माना जाता है. तमाम कोशिशों और बीच-बचाव के बाद भी दोनों पक्षों में सुलह न हो सकी. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो दोनों पक्षों में तकरार इन बातों पर रही कि टाटा ग्रुप चुनाव के लिए चंदा कैसे दे, कौन से प्रोजेक्ट और किस प्रोजेक्ट में कैसे निवेश किया जाए, क्या टाटा ग्रुप को अमेरिकी फास्ट फूड चेन से जुड़ना चाहिए जैसे मुद्दे पर मतभेद और विवाद रहे. इन बातों पर विवाद बढ़ता गया और आगे स्थिति इतनी खराब हुई कि मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात कही गई कि साइरस मिस्त्री के एक करीबी ने 2014 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में 10 करोड़ रुपये चंदा देने की राय दी थी. मिस्त्री खेमे की राय थी कि ओडिशा में लोहा बहुत है, जिसका फायदा लिया जा सकता है. हालांकि, रतन टाटा के बोर्ड ने इस राय के खिलाफ जाकर अपनी बात रखी. एक और मामला टाटा वेलस्पन डील का था. कहा जाता है कि साइरस मिस्त्री ने टाटा वेलस्पन डील कर ली, लेकिन इसकी जानकारी टाटा सन्स के बोर्ड को नहीं दी गई. टाटा सन्स बोर्ड ने इसे कॉरपोरेट नियमों का उल्लंघन बताया, क्योंकि डील इतनी बड़ी थी कि उसे बोर्ड को बिना बताए आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था. हालांकि, साइरस मिस्त्री ने ऐसा नहीं किया. इस मामले पर भी साइरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच दूरियां बढ़ीं. हालांकि, बाद में बीच का रास्ता निकालते हुए सुलह को अंजाम दिया गया.
अमेरिकन फास्ट फूड कंपनी लिटिल कैसर्स के साथ टाटा कंपनी के टाइअप को लेकर भी विवाद की बात सामने आई. बताया जाता है कि साइबर मिस्त्री की अगुआई वाले बोर्ड ने अमेरिकी फास्ट फूड कंपनी के साथ टाइअप की योजना बना ली. लेकिन, यह बात टाटा सन्स बोर्ड के सामने नहीं रखी गई थी. टाटा सन्स का कहना था कि उसकी कोई और कंपनी इस तरह के टाइअप पर फैसला ले सकती थी. यह भी कहा कि इस तरह की दूरियों के चलते कंपनी की छवि पर बट्टा लग रहा है. मिस्त्री के सहयोगियों का तर्क था कि टाटा ग्रुप पहले ही कॉफी चेन स्टारबक्स से जुड़ चुका था, इसलिए फास्ट फूड कंपनी से बिजनेस डील में कोई बुराई नहीं थी. इसी तरह का एक विवाद टाटा और डोकोमो के बीच का रहा जो बाद में दिल्ली हाईकोर्ट तक गया था.
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