हाईलाइट्स
Interest Rate: ब्याज दरों को तय करने के लिए मंगलवार 17 दिसंबर 2024 से अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) की बैठक शुरू हो गई है. उम्मीद है कि फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल बुधवार 18 दिसंबर 2024 को नई ब्याज दरों का ऐलान करेंगे. जेरोम पावेल का ऐलान निवेशकों और वैश्विक बाजारों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होगी. इस दिन फेड अपनी मौद्रिक नीति और ब्याज दरों पर फैसला लेगा. आर्थिक विशेषज्ञ, निवेशक और वित्तीय संस्थान इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. इसका असर न केवल अमेरिकी बाजार पर होगा, बल्कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था और शेयर बाजार पर भी पड़ेगा.
ब्याज दरों पर संशय बरकरार
फेड ने 2022-23 के दौरान मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए आक्रामक तरीके से ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी. हालांकि, 2024 में वृद्धि की रफ्तार थोड़ी धीमी हुई. मौजूदा समय में अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीमी लेकिन स्थिर वृद्धि दिखा रही है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार फेड ब्याज दरों में 0.25% की बढ़ोतरी कर सकता है. वहीं, कुछ विशेषज्ञों को ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद कर रहे हैं. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि फेड मुद्रास्फीति और आर्थिक स्थिरता के संतुलन को बनाए रखने के लिए ब्याज दरों को यथावत रख सकता है. हाल के महीनों में रोजगार बाजार के आंकड़े बेहतर रहे हैं और मुद्रास्फीति दर फेड के लक्ष्य 2% के करीब पहुंच चुकी है.
वैश्विक बाजारों पर प्रभाव
ब्याज दरों में बढ़ोतरी या यथावत रहने का असर वैश्विक वित्तीय बाजारों पर भी दिखेगा. यदि फेड दरें बढ़ाता है, तो डॉलर और मजबूत हो सकता है, जिससे उभरते हुए बाजारों से पूंजी का बहिर्गमन हो सकता है. इसका असर भारत जैसे देशों के बाजारों पर भी पड़ेगा. वहीं, अगर दरों में बदलाव नहीं होता है, तो यह बाजारों के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है. इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, और शेयर बाजारों में स्थिरता आ सकती है.
शेयर बाजार की प्रतिक्रिया
फेड की इस घोषणा से पहले ही अमेरिकी और एशियाई बाजारों में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है. भारत के सेंसेक्स और निफ्टी में भी इस फैसले को लेकर सतर्कता बनी हुई है. यदि दरों में वृद्धि होती है, तो टेक और बैंकिंग सेक्टर को झटका लग सकता है. वहीं, यथावत रहने पर एफएमसीजी और ऑटो सेक्टर को फायदा हो सकता है.
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भारत पर संभावित असर
फेड के निर्णय का भारतीय शेयर बाजार और रुपये पर सीधा प्रभाव पड़ेगा. डॉलर मजबूत होने पर रुपया कमजोर हो सकता है, जिससे आयात महंगा हो जाएगा. इसके अलावा, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारतीय बाजारों से धन निकाल सकते हैं. इस महत्वपूर्ण फैसले के मद्देनजर निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए. बाजार में किसी भी तेजी या गिरावट का फायदा उठाने के लिए पोर्टफोलियो को विविधीकृत करना जरूरी है.
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