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चीन के साथ जारी तनाव से भारत की वित्तीय साख पर नहीं पड़ेगा फिलहाल असर, फिच ने कही ये बात…

रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स का कहना है कि भारत का चीन के साथ जारी तनाव देश की वित्तीय साख पर तत्काल कोई प्रभाव नहीं डालेगा. हालांकि, इससे सुधारों की प्रक्रिया लटकने की संभावना है. फिच रेटिंग्स के निदेशक (सॉवरेन रेटिंग) थॉमस रूकमेकर ने कहा कि सरकार ने आर्थिक वृद्धि को बेहतर करने के लिए सुधारों की घोषणा की है. एक मजबूत आर्थिक वृद्धि दर के लिए सरकारी कर्ज के बोझ को कम करना अहम है.

नयी दिल्ली : रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स का कहना है कि भारत का चीन के साथ जारी तनाव देश की वित्तीय साख पर तत्काल कोई प्रभाव नहीं डालेगा. हालांकि, इससे सुधारों की प्रक्रिया लटकने की संभावना है. फिच रेटिंग्स के निदेशक (सॉवरेन रेटिंग) थॉमस रूकमेकर ने कहा कि सरकार ने आर्थिक वृद्धि को बेहतर करने के लिए सुधारों की घोषणा की है. एक मजबूत आर्थिक वृद्धि दर के लिए सरकारी कर्ज के बोझ को कम करना अहम है.

एक वेबिनार में उन्होंने कहा कि सुधारों की घोषणा मध्यम अवधि में वृद्धि को तेज कर सकती है और यहीं पर भू-राजनैतिक व्यवस्था सामने आती है. चीन के साथ सीमा पर मौजूदा तनाव से भारत की ऋण संबधी साख पर तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन सवाल यह है कि सुधारों को लागू करने में इस तरह के मुद्दे कब तक सरकार का ध्यान भटकाते रहेंगे.

पिछले हफ्ते लद्दाख के गलवान घाटी में चीन के साथ हिंसक झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत कुल 20 जवान शहीद हो गए. इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. फिच ने पिछले सप्ताह भारत के आर्थिक परिदृश्य को ‘स्थिर’ से घटाकर ‘नकारात्मक’ कर दिया था. ऐसा कोविड-19 संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ने के चलते देश का आर्थिक वृद्धि परिदृश्य कमजोर पड़ने के चलते किया गया. हालांकि फिच ने भारत की निवेश रेटिंग को ‘बीबीबी माइनस’ पर बरकरार रखा, यह सबसे निचली निवेश श्रेणी है.

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रूकमेकर ने कहा कि कृषि आपूर्ति शृंखला जैसे क्षेत्रों में सुधार से खाद्यान्न कीमतों को नीचे लाने और महंगाई को घटाने में मदद मिल सकती है, जबकि लोक उपक्रमों का निजीकरण करने की मंशा एक बड़ा बदलाव ला सकती है. उन्होंने कहा कि इस तरह के ढांचागत सुधार मध्यम अवधि में वृद्धि को तेज करने में सहायक हो सकते हैं.

रूकमेकर ने सरकारी कर्ज के बढ़कर जीडीपी के 84.5 फीसदी पर पहुंच जाने का अनुमान जताया, जो वित्त वर्ष 2019-20 में 71 फीसदी था. वहीं, सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़कर 11.5 फीसदी होने का भी अनुमान है. उन्होंने कहा कि मध्यम अवधि में आर्थिक वृद्धि दर को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की नकदी हालत और बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता से झटका लग सकता है.

सवाल ये है कि कोविड-19 महामारी वित्तीय क्षेत्र को कितना प्रभावित करेगी. क्या यह मध्यम अवधि में ऋण वृद्धि को आगे बढ़ाने और जीडीपी की वृद्धि दर को संबल देने के काबिल रहे्गी. फिच का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में 5 फीसदी का संकुचन आएगा, जबकि 2021-22 में यह फिर से 9.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगी.

Posted By : Vishwat Sen

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