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महाकुंभ से लौटकर गौतम अदाणी ने बताया सफलता का राज, ब्लॉग पर शेयर किया गुरुमंत्र

Gautam Adani: गौतम अदाणी ने महाकुंभ में अपने अनुभव साझा करते हुए इसे भारत की आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था और सर्कुलर इकोनॉमी का अद्वितीय उदाहरण बताया. ब्लॉग में उन्होंने कुंभ से सीखे बिजनेस और लीडरशिप के पाठों पर प्रकाश डाला.

Gautam Adani: दुनिया में इंसानों का सबसे बड़ा जमावड़ा इस समय महाकुंभ बन गया है. उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर हर 12वें साल पर लगने वाला महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है, बल्कि गौतम अदाणी जैसे अरबपति उद्योगपति के लिए बिजनेस के गुरुमंत्र सीखने का एक मौका भी है. इस बार जब गौतम अदाणी अपने पूरे परिवार के साथ महाकुंभ में स्नान पहुंचे, तो इसकी बारीकियों को देखकर अभिभूत हो गए. उन्होंने इसे भारत की ‘आध्यात्मिक बुनियाद’ (स्प्रिचुअल इंफ्रास्ट्रक्चर) बताया है. अपने अनुभव को उन्होंने बिजनेस सीखने का एक बेहतरीन मौका बताया. उन्होंने अपने इस अनुभव को सोशल मीडिया के जरिए साझा किया है.

गौतम अदाणी ने लिखा ब्लॉग

गौतम अदाणी ने अपने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा है कि इस साल उन्हें अपने परिवार के साथ कुंभ मेला में शामिल होने का अवसर मिला. कुंभ मेले को लेकर जब भी उनकी किसी से चर्चा हुई तो वह पूर्वजों के विजन से अचंभित रह गए. अदाणी ग्रुप में हम पोर्ट, एयरपोर्ट और एनर्जी पार्क जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े करते हैं, लेकिन हमारे पूर्वज कुंभ के रूप में एक ‘आध्यात्मिक बुनियाद’ खड़ी करके गए हैं, जिसने हमारी सभ्यता को सदियों से बनाए रखा है.

इंडियन जुगाड़ का दिखता है दम

महाकुंभ के इंतजामों को लेकर गौतम अदाणी ने कहा, ”जब इसकी लॉजिस्टिक व्यवस्था पर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने स्टडी की, तो वह इसके स्केल को देखकर दंग रह गए. लेकिन, एक भारतीय होने के नाते उन्होंने इसे ज्यादा गहराई से देखा. ये दुनिया की सबसे सफल टेंपररी मेगासिटी है. इतने बड़े आयोजन के लिए ना कोई बोर्ड मीटिंग होती है, ना कोई पावरपॉइंट प्रेजेंटशन, ना कोई वेंचर कैपिटलिस्ट. बस काम आता है हमारा सदियों का अनुभव और भारत की जांची-परखी ‘जुगाड़'(इंडियन इनोवेशन).”

इकोनॉमी के स्प्रिचुअल स्केल है महाकुंभ

गौतम अदाणी ने कड़ाही में पूड़ी तलने पर भी अपना हाथ आजमाया. महाकुंभ में अदाणी परिवार हर रोज लाखों श्रद्धालुओं को प्रसाद बांट रहा है. महाकुंभ में 40 करोड़ लोगों के शामिल होने का अनुमान है. गौतम अदाणी लिखते हैं, ”जब एक जगह इतनी संख्या में लोग डेडिकेशन और सेवा भाव से जुटते हैं तो ये सिर्फ एक मेला भर नहीं रह जाता, बल्कि ये आत्मिक संगम बन जाता है. ये ‘इकोनॉमी के स्प्रिचुअल स्केल’ को दिखाता है कि जितना बड़ा ये बनता जाएगा, उतना बेहतर ये होता जाएगा.”

बॉस होने का मतलब सिर्फ ऑर्डर देना नहीं: गौतम अदाणी

उन्होंने लिखा, ”महाकुंभ सिखाता है कि आज के समय में सस्टेनबिलिटी कितनी जरूरी है. ये सर्कुलर इकोनॉमी का रोल मॉडल है. इससे हमें सबको साथ लेकर चलने का गुण सीखने को मिलता है. बॉस होने का मतलब सिर्फ ऑर्डर देना नहीं, बल्कि अलग-अलग तरह के लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता से है.

इंक्लूसिव ग्रोथ का पाठ पढ़ाता है कुंभ

गौतम अदाणी ने आगे लिखा है, ”भारत 10 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के लक्ष्य पर काम कर रहा है. कुंभ मेला ‘इंक्लूसिव ग्रोथ’ का पाठ पढ़ाता है, जहां नेता से सीईओ से लेकर विदेशियों तक का आना स्वीकार्य है. आज हमने डिजिटल इनोवेशन कर लिए हैं, लेकिन कुंभ का सदियों पुराना सिस्टम हमें इंसान की रूह के मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाता है. ये ऐसे समय में जरूरी है, जब दुनिया के सामने सबसे बड़ा खतरा मेंटल इलनेस का है.”

पैमाने की आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था

उन्होंने लिखा, ”इतना ही नहीं कुंभ मेला आपको अपनी संस्कृति को लेकर गर्व करने और एक ऐसा सिस्टम डेवलप करने को प्रेरित करता है तो सदियों तक अनवरत चलता रहे. ये भारत की सबसे बड़ी सॉफ्ट पावर को दिखाता है. कुंभ में पैमाना केवल आकार के बारे में नहीं है. यह प्रभाव के बारे में है. जब दान और सेवा के साथ 20 करोड़ लोग एक साथ होते हैं, तो यह केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि एक अद्वैतीय आत्मिक संगम होता है. आत्माओं का एक अनूठा संगम है। इसे मैं “पैमाने की आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था” कहता हूं.

सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों का अभ्यास करता है कुंभ

उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए लिखा, ”ईएसजी के बोर्डरूम में चर्चा का विषय बनने से बहुत पहले कुंभ मेले ने सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों का अभ्यास किया था. नदी सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि जीवन का प्रवाह है. इसे संरक्षित करना हमारे प्राचीन ज्ञान का प्रमाण है. वही नदी जो लाखों लोगों की मेजबानी करती है, कुंभ के बाद अपनी प्राकृतिक स्थिति में लौट आती है. लाखों श्रद्धालुओं को शुद्ध कर चुकी है और आश्वस्त है कि वह खुद को शुद्ध कर सकती है.

सच्चा नेतृत्व आदेश देने में नहीं

गौतम अदाणी संतों के अखाड़ों के बारे में लिखा, ”विभिन्न अखाड़े (धार्मिक आदेश), स्थानीय अधिकारी और स्वयंसेवक सद्भाव से काम करते हैं. यह सेवा के माध्यम से नेतृत्व है, प्रभुत्व नहीं. एक सिद्धांत जिसका अध्ययन आधुनिक निगमों के लिए अच्छा होगा. यह हमें सिखाता है कि महान नेता आदेश या नियंत्रण नहीं करते. वे दूसरों के लिए एक साथ काम करने और सामूहिक रूप से आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां बनाते हैं. सच्चा नेतृत्व आदेश देने में नहीं, सबको साथ लेकर चलने की क्षमता में होता है. सेवा साधना है, सेवा प्रार्थना है और सेवा ही परमात्मा है.

नेताओं के लिए गहरा सवाल खड़ा करता है कुंभ

उन्होंने लिखा, ”आधुनिक नेताओं के लिए कुंभ एक गहरा सवाल खड़ा करता है. क्या हम ऐसे संगठन बना सकते हैं, जो न केवल वर्षों तक, बल्कि सदियों तक चलेंगे? क्या हमारे सिस्टम न केवल पैमाने को, बल्कि आत्मा को भी संभाल सकते हैं? एआई जलवायु संकट और सामाजिक विखंडन के युग में कुंभ के सबक पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं और इनमें सतत संसाधन प्रबंधन, सामंजस्यपूर्ण जन सहयोग, मानवीय स्पर्श वाली प्रौद्योगिकी, सेवा के माध्यम से नेतृत्व और बिना आत्मा खोए पैमाना शामिल है.”

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सबसे सफल परियोजना है आध्यात्मिक परियोजना

गौतम अदाणी ने लिखा, ”इसलिए, अगली बार जब आप भारत की विकास कहानी के बारे में सुनें, तो याद रखें, हमारी सबसे सफल परियोजना कोई विशाल बंदरगाह या नवीकरणीय ऊर्जा पार्क नहीं है. यह एक आध्यात्मिक परियोजना है. सभा जो सदियों से सफलतापूर्वक चल रही है, संसाधनों को कम किए बिना या अपनी आत्मा को खोए बिना लाखों लोगों की सेवा कर रही है. दुनिया को अब इसी नेतृत्व पाठ की जरूरत है.

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