‘डार्क पैटर्न’ पर लगाम लगाने की तैयारी, नियमन के लिए मसौदा जारी, सरकार ने मांगे सुझाव
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तरफ से अपनायी जा रही अलग-अलग भ्रामक प्रथाओं की सूची तैयार की गयी है जो उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाती हैं और उनके हितों के खिलाफ हैं. इन दिशानिर्देशों को विक्रेताओं और विज्ञापनदाताओं सहित सभी लोगों और ऑनलाइन मंचों पर लागू किया जायेगा.
ऑनलाइन मंचों पर धडल्ले से इस्तेमाल हो रहे डार्क पैटर्न को लेकर सरकार सख्त हो गयी है. केंद्र सरकार ने डार्क पैटर्न की रोकथाम और नियमन के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी कर दी है. वेबसाइट के जरिये इस्तेमाल किये जा रहे डार्क पैटर्न के जरिये ग्राहकों को हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इस पर लोगों से सुझाव मांगे हैं. सरकार ने इसके लिए 30 दिनों का समय दिया है यानी इस मसौदा दिशानिर्देशों पर 05 अक्तूबर तक टिप्पणियां और सुझाव दिये जा सकते हैं. इसके बाद इनको अंतिम रूप दिया जायेगा. इस मसौदा दिशानिर्देशों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तरफ से अपनायी जा रही अलग-अलग भ्रामक प्रथाओं सूची तैयार की गयी है जो उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाती हैं और उनके हितों के खिलाफ हैं. दिशानिर्देश विक्रेताओं और विज्ञापनदाताओं सहित सभी लोगों और ऑनलाइन मंचों पर लागू किये जायेंगे. मंत्रालय ने कहा कि वह उपभोक्ता हितों की रक्षा करने और एक निष्पक्ष व पारदर्शी बाजार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. प्रस्तावित दिशानिर्देश उद्योग को और मजबूत करेंगे तथा उपभोक्ता के हितों की रक्षा करेंगे.
ऑनलाइन ग्राहकों को धोखा देने का तरीका है ‘डार्क पैटर्न’
ऑनलाइन ग्राहकों को धोखा देने या उनकी पसंद में हेरफेर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति को ‘डार्क पैटर्न’ कहते हैं. कई लोगों को आसानी से इसके बारे में पता भी नहीं लग पाता है कि इससे उन्हें कितना नुकसान पहुंच रहा है. सोशल मीडिया कंपनियां और बिग टेक कंपनियां अपने फायदे के लिए ग्राहक अनुभव को डाउनग्रेड करने के लिए डार्क या भ्रामक पैटर्न का इस्तेमाल करती हैं. ग्राहकों के लिए झूठी आपात स्थिति बनाना डार्क पैटर्न में आता है. उपभोक्ता को कोई गैर जरूरी सर्विस लेने के लिए उकसाना भी इसमें शामिल है. कंपनियां उपभोक्ताओं को सब्सक्रिप्शन के जाल में नहीं फंसा सकती हैं.
छोटे अक्षरों में जानकारी छुपाना गलत है
जानकारी को छोटे अक्षरों में या छुपाकर बताना भी गलत है. कई कंपनियां किसी प्रोडक्ट की जानकारी देती हैं और उसके बाद उपभोक्ता के लिए उसे बदल देती हैं, जो कि नहीं करना चाहिए. इसके अलावा इसमें उपभोक्ता से प्लेटफॉर्म फीस के लिए अलग से चार्ज करना और उपभोक्ता को बार- बार किसी प्रोडक्ट लेने के लिए तंग करना भी शामिल है.
ग्राहक को पता नहीं चलता कि वे डार्क पैटर्न में फंसे हैं
ग्राहक डार्क पैटर्न के जाल में फंस जाते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है. जब हम कोई ऐप का इस्तेमाल करते हैं या किसी वेबसाइट को खोलते हैं, तो अक्सर एक मैसेज आता है – ‘क्या आप कुकी एक्सेप्ट करेंगे’. आप इसे आसानी से ले तो सकते हैं, लेकिन फिर इससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. जब किसी ऐप से निजात पाने का विकल्प न मिले, तो यह समझना चाहिए कि कंपनी ने इसे डार्क बॉक्स में छिपाकर रखा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 75 लोकप्रिय ई-कॉमर्स कंपनियां हैं और इनमें से 97 फीसदी कंपनियां डार्क पैटर्न का इस्तेमाल करती हैं.
इस तरह तैयार हुआ मसौदा दिशानिर्देश
13 जून : उपभोक्ता कार्य विभाग (डीओसीए) ने डार्क पैटर्न पर एक परामर्श आयोजित किया. इसमें भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआइ), विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, एनएलयू, लॉ फर्मों आदि ने भाग लिया.
28 जून : उपभोक्ता कार्य विभाग के सचिव द्वारा ई-कॉमर्स कंपनियों, उद्योग संघों और हितधारक परामर्श के प्रतिभागियों को एक पत्र भेजा गया, जिसमें उनसे अपने प्लेटफॉर्म के ऑनलाइन इंटरफेस में किसी भी ऐसे डिजाइन या पैटर्न को शामिल करने से परहेज करने का अनुरोध किया था जो उपभोक्ता की पसंद को धोखा दे सकता है या हेरफेर कर सकता है और डार्क पैटर्न की श्रेणी में आ सकता है.
टास्क फोर्स का गठन : इसके लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया जिसमें उद्योग संघों, एएससीआइ, एनएलयू, वीसीओ और ई-कॉमर्स प्लेटफार्म- गूगल, फ्लिपकार्ट, आरआइएल, अमेजन, स्विगी, जोमैटो, ओला, टाटा क्लिक, फेसबुक, मेटा, शिप रॉकेट और गो-एमएमटी के प्रतिनिधि शामिल थे.
टास्क फोर्स द्वारा दिये गये दिशानिर्देशों के आधार पर डार्क पैटर्न की रोकथाम और नियमों के लिए दिशानिर्देशों का वर्तमान मसौदा तैयार किया गया है.
यूरोपीय देशों में उठाये गये हैं कदम
कंपनियां भले ही इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रही हों, लेकिन यह पूरी तरह से गैरकानूनी है. अब सरकार इसे लेकर सख्त भी हो गयी है. यही कारण है कि लोगों से सुझाव मांगे जा रहे हैं. ताकि लोगों की परेशानियां जानकर इसपर सही तरीके से लगाम लगायी जा सके. यूरोपिय देशों में भी इसके खिलाफ कड़े कदम उठाये जा चुके हैं.
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