Grey Market: हाल के दिनों में बाजार में बड़ी संख्या में Initial Public Offering (आईपीओ) कंपनियों के द्वारा मार्केट में उपलब्ध कराये गए. इसे खरीदने के लिए निवेशक पैसे लेकर तैयार है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आईपीओ खरीदते कैसे हैं. आईपीओ खरीदने के दो तरीके हैं. एक स्टॉक एक्सचेंज से दूसरा ग्रे मार्केट के जरिए. स्टॉक एक्सचेंज का अर्थ है नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NES) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के साथ ट्रेडिंग. यहां होने वाले कारोबार अधिकृत होते हैं. इस बाजार में होने वाले लेनदेन का हिसाब किताब रखा जाता है. रुपया फंसने पर नियम कानून के तहत रिकवरी का भी प्रवधान है. मगर ग्रे मार्केट इसके सीधे उल्टा होता है. यहां किसी एजेंसी के दवाब या नियम कानून नहीं चलता है.
सेकेंड हैंड आईपीओ का बाजार है ग्रे मार्केट
ग्रे मार्केट को आसान शब्दों में IPO का सेकेंड हैंड बाजार कहा जा सकता है. इसका अर्थ है कि आईपीओ जारी होने के बाद आप सीधे शेयर बाजार से खरीदारी करने के बजाये किसी निवेशक जिसने पहले से कंपनी में निवेश कर रखा है उससे आईपीओ की खरीदारी करते हैं. इस ग्रे मार्केट में सबसे बड़ी परेशानी ये आती है कि इसमें काम करने वाले सेलर, ब्रोकर और ट्रेडर कहीं भी रजिस्टर्ड नहीं होते हैं. इस बाजार में कोई नियम कानून नहीं है. केवल भरोसे और व्यक्तिगत बातचीत पर कारोबार होता है. वहीं, पैसे फंसने पर रिकवरी भी आपको खुद अपने माध्यम से ही करनी पड़ती है.
ग्रे शेयर बाजार में क्या मिलता है
ग्रे मार्केट एक गैर-नियमित सेक्योरिटी बाजार है, जहां नए शेयर ऑफरिंग (IPO) के पहले या शेयर लिस्टिंग से पहले शेयरों का ट्रेडिंग होता है. यह बाजार अधिकतर IPO के ग्रे मार्केट (आगमनिका) के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें नए शेयर ऑफरिंग की अनुमानित लिस्टिंग प्राइस पर शेयर ट्रेड होते हैं. इस मार्केट में शेयर ट्रेडिंग अनिश्चितता के अंदर होती है, क्योंकि शेयरों की लिस्टिंग की अंतिम कीमत अभी तक निर्धारित नहीं होती. इसके साथ ही, ग्रे मार्केट में लोग नए IPO के शेयर अभिलेखों को पहले से ही खरीद लेते हैं. जहां शेयर ट्रेडिंग निवेशकों के लिए जोखिमयुक्त होती है, क्योंकि शेयरों की फाइनल लिस्टिंग प्राइस और वित्तीय वर्ष में शेयरों के मूल्य में बदलाव हो सकता है. जब किसी अपेक्षित IPO का डिमांड उच्च होता है, तो ग्रे मार्केट में शेयरों की कीमत उच्च होती है. यह अधिक मूल्यांकन का कारण हो सकता है. ग्रे मार्केट नियमित नहीं होता है और अनियमितता का भय हो सकता है.
कैसे कारोबार करता है ग्रे मार्केट
ग्रे मार्केट का कारोबार भरोसे पर चलता है. इसे ऐसे समझ सकते हैं. एक कंपनी है ‘क’ इसका व्यापार काफी अच्छा चल रहा है. कंपनी ने हाल के दिनों में अच्छा मुनाफा कमाया है. कंपनी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए बाजार में आईपीओ लेकर आयी. निवेशक की नजर कंपनी पर पड़ी. उसने सोचा की इस कंपनी का आईपीओ खरीद लेना चाहिए. मगर, पता चला कि ऑफरिंग के लिए आवेदन करने की आखिरी तिथि निकल गयी है. ऐसे में निवेशक अब ग्रे मार्केट का रुख करेगा. वहां पहले से आवेदन कर चूका एक निवेशक अपने हिस्से की बोली लगवा रहा है. दूसरा निवेशक चाहे तो पूरा का पूरा एप्लिकेशन बोली लगाकर खरीद सकते हैं.
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ग्रे मार्केट से भाव का क्या पड़ता है असर
बाजार में वैसी कंपनियां तो शेयर बाजार के विभिन्न सेंसेक्स से रजिस्टर्ड है वो आईपीओ लेकर आती है. निवेशक इसे खरीदने के लिए सेबी रजिस्टर्ड ब्रोकरेज फर्म्स के पास एप्लिकेशन देते हैं. निवेशक चाहें तो इन शेयरों को ब्रोकरेज फर्म के अलावा किसी खरीदार से खरीद सकते हैं. अब ग्रे मार्केट में आईपीओ का भाव कैसा चल रहा है. उसे कितने खरीददार मिल रहे हैं. या कितनी तेज मांग है, इसकी के आधार पर कंपनियों के द्वारा तय किया जाता है कि बाजार में उसके आईपीओ की लिस्टिंग कैसी होगी. इस बाजार में बोली लगाने के लिए IPO शेयर तय दाम से ज्यादा खरीदार को बोली लगानी होती है. इस बीच में ब्रेकर विक्रेता को फोन करके बताता है कि उसके पास एक आदमी है जो इतने दाम में खरीदने के तैयार है. अगर विक्रेता रेट पर राजी हो जाता है तो डील तय हो जाती है. अगर विक्रेता को और रेट चाहिए तो भाव बढ़ने का इंतजार किया जाता है. ग्रे मार्केट में आवेदन करने वाला विक्रेता अपने हिस्से का शेयर बेचकर निकल जाता है. अब इसके बाद घाटा या मुनाफा दोनों खरीदार के माथे पर होगा.
शेयर ऑलट नहीं तो डील रद्द
स्टॉक मार्केट से अलग ग्रे मार्केट में कारोबार करने वाले के पास एक और ऑपशन होता है. खरीदरार आवेदन के बदले एक तय फीस दे देता है. इसके बाद का बाकि रकम शेयर अलॉट होने के बाद दी जाती है. अगर उसे लिस्टिंग के बाद शेयर नहीं मिले हैं तो डील रद्द हो जाएगी. इसका अर्थ है कि आवेदन बेचने वाले विक्रेता को केवल वो पैसे मिले जो आवेदन के बदले देने थे. इस तरीके को सब्जेक्ट टू सौदा कहते हैं. इसे ऐसे समझे. एक कंपनी ‘क’ के आईपीओ के लिए आवेदन करने में 100 रुपये मेरे द्वारा खर्च किया गया. इसमें लिस्टेट शेयर का भाव 10 रुपये है. इस तरह का मैंने 10 शेयर खरीदा. अब ग्रे मार्केट में इस आवेदन के बदले मैंने 500 रुपये मांगे. खरीदरार ने कहा कि आवेदन के 150 रुपये देगा और बाकि पैसे शेयर लिस्ट होने के बाद. शेयर लिस्ट होने पर मुझे 500 रुपये मिले. नहीं होने पर 150 रुपये में संतुष्ट होना पड़ा.
क्या होता है आईपीओ
आईपीओ (IPO) का फुल फॉर्म होता है Initial Public Offering. यह एक वित्तीय प्रक्रिया है जिसमें एक निजी कंपनी अपने शेयरों को पहली बार खासतौर से निवेशकों को उपलब्ध कराती है और सार्वजनिक सामाजिक और संस्थागत निवेशकों को इन शेयरों को खरीदने का अवसर प्रदान करती है. इस प्रक्रिया में कंपनी निधि उठाती है और शेयरों के लिए पहली बार बाजार में लिस्ट होती है.
कैसे होती है स्टॉक एक्सचेंज में आईपीओ की खरीदारी
IPO के माध्यम से कंपनियों को नए पूंजीकरण के लिए निधि प्राप्त होती है और विनिवेशकों को विभिन्न विकल्पों में निवेश करने का अवसर मिलता है. निवेशकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे कंपनी के प्रोस्पेक्टस को ध्यान से पढ़ें और शेयरों को खरीदने से पहले समझें. इसके लिए आवेदन करने के लिए:
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आवेदन पत्र दर्ज करना: कंपनी वित्तीय नियंत्रण बोर्ड (SEBI) के साथ आवेदन पत्र दाखिल करती है, जिसमें कंपनी के विवरण, उद्देश्य, शेयर कीमत और अन्य जानकारी शामिल होती है.
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डॉक्यूमेंट फाइलिंग: IPO के लिए आवेदन पत्र के साथ, कंपनी को आवश्यक दस्तावेज़ और सूचनाएं भी सबमिट करनी होती हैं.
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SEBI की मंजूरी: SEBI आवेदन को जांचता है और सम्मति देता है, यदि वह सभी नियमों और नियमों को पूरा करता है.
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बुक बिल्डिंग: IPO के बाद, कंपनी शेयरों के बुक बिल्डिंग प्रक्रिया का उपयोग करके शेयर कीमत को तय करती है.
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अन्य फाइलिंग: कंपनी को अन्य विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे कि शेयर संविदा, पंजीकरण और शेयरों के लिए अन्य स्वीकृति भी दर्ज करनी होती है.
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बाजार में लिस्टिंग: आवेदन प्रक्रिया के पश्चात, कंपनी अपने शेयरों को बाजार में लिस्ट करती है और निवेशकों को शेयरों को खरीदने का अवसर प्रदान करती है.