डॉ नीरज कुमार
किसी भी देश की प्रगति अनेक कारकों पर निर्भर करती है. मानव विकास के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ, जीवन प्रत्याशा एवं महिला उत्थान विकास के सामाजिक संकेतक माने जाते हैं, लेकिन इन प्रतिमानों के अतिरिक्त आधारभूत संरचना के साथ विज्ञान एवं तकनीक रूपी ज्ञानात्मक विकास किसी भी राष्ट्र एवं समाज की रीढ़ की हड्डी के समान होता है. वैश्विक इतिहास का यदि हम अवलोकन करें, तो सरलता से इस बात का आकलन कर सकते हैं कि कैसे भौतिक आधारभूत संरचना एवं विज्ञान एवं तकनीकी विकास ने न केवल समाज के वृहद ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन किया, बल्कि राष्ट्रों की संप्रभुता को भी शिखर तक पहुंचाने का कार्य भी किया.
भारत की प्राचीनकाल की उपलब्धियों से लेकर चंद्रयान 3 के प्रक्षेपण तक सफलताओं का एक लंबा इतिहास रहा है. विज्ञान के क्षेत्र में भारत अपनी अनगिनत उपलब्धियों के चलते ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2022 में 40वें स्थान पर है. अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन‘ के साइंस एंड इंजीनियरिंग इंडिकेटर्स 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत वैज्ञानिक प्रकाशन के क्षेत्र में विश्व में तीसरे स्थान पर है.
आधुनिक युग में सबसे शक्तिशाली देश वह माना जाता है, जिसने अपने रक्षा क्षेत्र को मजबूत किया है. यह भारत के विज्ञान एवं तकनीक की ताकत ही है कि दुनिया में नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, जिसमें भारत भी शामिल है.
आजादी के कुछ महीनों बाद ही 10 अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए डॉ होमी जहांगीर भाभा के प्रयासों से परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन हुआ था. परमाणु ऊर्जा के अंतर्गत नाभिकीय अनुसंधान के क्षेत्र में मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की भूमिका सराहनीय है. भारत में अपने उन्नत परमाणु शक्ति का परिचय देते हुए 18 मई, 1974 को पोखरण में पहला सफल परिक्षण किया. दूसरा परीक्षण 11 मई, 1998 में किया गया. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ”जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान” का नारा देकर विज्ञान और तकनीक के महत्व को रेखांकित किया था. वहीं 1960 के आरंभ में भारत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो की स्थापना ने निकट भविष्य में देश के अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने में कामयाब रही.
वर्तमान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा भी देश में वैज्ञानिक शोध में महत्वपूर्ण कार्य किये जा रहे हैं. जैव प्रौद्योगिकी विभाग एवं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् द्वारा निरंतर नयी खोजें की जा रही हैं. इन सभी विभागों का लक्ष्य समाज को विज्ञान की खोजों से लाभान्वित करना है.
इंडियन साइंस एंड रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2019 के अनुसार, भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल है. मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिए प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर बनाकर भारत इस क्षेत्र में जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बन गया है. साथ ही नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनियाभर में आज तीसरे स्थान पर है.
भारत एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है. देश में मल्टी-नेशनल कॉर्पोरशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब नवीनतम आंकड़ों के अनुसार यह 2018 में 1150 तक पहुंच गयी है.
आज भारत मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत सैन्य साजो-समान तैयार कर रहा है. इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी नयी तकनीकों का विकास किया जा रहा है. आज भारत जलवायु परिवर्तन के निपटने के लिए सजग है. इस दिशा में नवीकरणीय ऊर्जा सहित अनेक ऐसी तकनीकों के विकास पर ध्यान दिया जा रहा, जो देश को विकास की राह में निरंतर आगे बढ़ा रहा है.
भारतीय वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम का नतीजा है कि अनुसंधान और विकास कार्यों की रफ्तार कई क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है. सरकार के सहयोग और समर्थन के साथ, वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष अनुसंधान, विनिर्माण, जैव-ऊर्जा, जल-तकनीक, और परमाणु ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश और विकास भी हुआ है. हम धीरे-धीरे परमाणु प्रौद्योगिकी में भी आत्मनिर्भर हो रहे हैं.
शोध के क्षेत्र में सीएसआइआर, डीआरडीओ, आइसीएआर, इसरो, आइसीएमआर, सी-डैक, एनडीआरआइ, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) जैसे कई विश्वविख्यात संस्थान भारत में हैं. ऐसे में भारत में शोध कार्य की दिशा में हुई प्रगति को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसे कई अवरोध हैं, जिन्हें पार करना भारतीय अनुसंधान और विकास के लिए बहुत जरूरी है. एक सुखद बात है कि भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुंच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौट रहे हैं.
जाहिर तौर पर उभरते परिदृश्य और प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में विज्ञान को विकास के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में मान्यता मिल रही है. इसके पीछे भारत सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास निश्चय ही सराहनीय हैं.
जरा पीछे हम देखें, तो हमारे देश की स्वतंत्रता जिन आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों में हुई, तब हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थीं कि हम जोखिम भरे आधारभूत विज्ञान एवं तकनीकी के विकास में ज्यादा निवेश कर सकते थे. तब औद्योगिकरण का विकास दूसरे देशों से आयातित तकनीक के बलबूते धीरे-धीरे हुई. परमाणु एवं नाभिकीय ऊर्जा आधारित विकास के साथ-साथ 70 के दशक में कुछ देशों के सहयोग से रॉकेट आधारित तकनीक के विकास की ओर हम बढ़े. भारत में विज्ञान एवं तकनीक आधारित क्षेत्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा में निश्चय तौर पर शैशवास्था में थे, लेकिन देश की वैज्ञानिक कर्मठता एवं नेतृत्व क्षमता के बलबूते आज हम नाभिकीय क्षेत्र में परमाणु शक्ति संपन्न बनने के साथ-साथ अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की रैंकिंग में 5वें स्थान पर हैं.
हम अंतरिक्ष तकनीक के क्षेत्र में न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि दूसरे देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित भी कर रहे हैं. अंतरिक्ष तकनीक में हमारी स्थिति न केवल स्वयं के जटिल क्रायोजेनिक्स इंजन के विकास के परिणामस्वरूप जीएसएलवी जैसे रॉकेट यान के माध्यम से भारी-भरकम उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हैं, बल्कि सटिक समय एवं स्थान के निर्धारण के लिए स्वय के गगन जीपीएस निर्माण में भी आत्मनिर्भर हो चुके हैं. इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र की सीमाओं की निगरानी के साथ-साथ वायुसेना एवं वायु परिवहन के सुरक्षित एवं सटिक नेविगेशन में भी हम सामर्थ्यवान हो चुके हैं.
वहीं उन्नत स्वदेशी पीएसएलवी तकनीक के माध्यम से मौसम विज्ञान से जुड़ी सूचनाओं को सटिक समय पर दे पाने में सक्षम हुए हैं, जैसे- वर्षा, आंधी, मॉनसून, चक्रवात, समुद्री ज्वार का सही-सही अनुमान कर पाने से जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाती है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पायी है. मंगलयान मिशन इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है. इसके अलावा इसरो ने एक साथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर इतिहास रच दिया है. चंद्रयान-1, मार्श मिशन, चंद्रयान-2 के बाद विगत 14 जुलाई, 2023 को इसरो द्वारा प्रक्षेपित किया गया चंद्रयान 3 मिशन ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वो लंबी लकीर खींच दी है, जिसे पूरा विश्व समुदाय आश्चर्यचकित है.
आज देश 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. इस पड़ाव पर हम प्रफुल्लचंद्र रे, होमी जहांगीर भाभा, जगदीश चंद्र बोस, सीवी रमण, रामानुजन, मेघनाद साहा, सत्येंद्र नाथ बोस, बीरबल साहनी, चंद्रशेखर वेंकट रामन, हरगोविंद खुराना, शांतिस्वरूप भटनागर, विक्रम साराभाई, एपीजे अब्दुल कलाम आदि हमारे महान वैज्ञानिकों को भी याद करें, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिये हैं.
देश के ढांचागत एवं संरचनात्मक विकास को विश्व में शीर्ष पर ले जाने के लक्ष्य को इस संकल्प से समझा जा सकता है कि 2035 तक तकनीकी और वैज्ञानिक दक्षता हासिल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने ‘टेक्नोलॉजी विजन 2035’ नाम से एक रूपरेखा भी तैयार की गयी है. इसमें शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य, खाद्य और कृषि, जल, ऊर्जा, पर्यावरण इत्यादि जैसे 12 विभिन्न क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिये जाने की बात कही गयी है.
अत: 21वीं सदी में देश को विकसित राष्ट्र बनाने का एकमात्र विकल्प विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ही है. देश की आजादी से यहां तक की यात्रा निश्चित तौर पर भारत के वैज्ञानिक और विज्ञान खोजों की देन है, जिसने हमें विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया है, जिससे भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र की पहचान मिली है.
(लेखक यूजीसी के पूर्व सीनियर रिसर्च फेलो हैं.)
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