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बढ़ चले हैं हम, बढ़ते रहेंगे हम : कृषि में आत्मनिर्भर होने के साथ निर्यात में हैं आगे

देश भर में फैले 74 कृषि विश्वविद्यालयों और विभिन्न फसलों, पशु-पक्षियों, कृषि पारिस्थिकी पद्धतियों पर कार्य कर रहे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के 113 अनुसंधानों से युक्त सुसंगठित भारतीय कृषि अनुसंधान एवं शिक्षण पद्धति दुनिया में अपने क्षेत्र की सर्वाधिक बड़ी पद्धतियों में से एक है.

डॉ ओंकार नाथ सिंह

भारत जब आजाद हुआ था, तब हमारे सामने कृषि एवं सिंचाई संबंधी तमाम समस्याएं खड़ी थीं, जैसे कृषि उपकरणों का अभाव, मिट्टी के क्षरण एवं फसल रोगों-कीड़ों का प्रकोप, नवीन तकनीक, कृषि बाजार, परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण आदि सुविधाओं की कमी से देश जूझ रहा था. कृषि क्षेत्र देशवासियों की खाद्यान्न आवश्यकताओं की ढंग से पूर्ति करने में भी सक्षम नहीं था. इस मौलिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए भी हम एक हद तक दूसरे देशों से आयत पर निर्भर थे. लेकिन योजनाकाल में किये गये प्रयासों और ग्रामीण क्षेत्रों में ढांचागत सुविधाओं के लिए किये गये विनियोग से कृषि और किसानों के परिदृश्य में बदलाव देखने को मिले और अब हम खाद्यान्न संबंधी अपनी अधिकांश जरूरतों के मामले में धीरे-धीरे आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ दूसरे देशों को भी निर्यात करने लगे. आज हमारा देश दूध, दाल, जूट और मसालों के उत्पादन क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है. मवेशी की संख्या भी दुनिया में सर्वाधिक भारत में ही है. हमारा देश कपास, गेहूं, चावल, चाय, मूंगफली गन्ना, फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन चुका है.

कृषि में ड्रोन और सेंसर आधारित ऑटोमेशन के इस्तेमाल के लिए भी रणनीति और कार्य पद्धति पर जोर-शोर से तैयार की जा रही है. देश में जिला स्तर पर स्थापित 731 कृषि विज्ञान केंद्र एक मिनी कृषि विश्वविद्यालय के रूप में काम करते हुए किसानों को नयी प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूक बना रहे हैं.

देश भर में फैले 74 कृषि विश्वविद्यालयों और विभिन्न फसलों, पशु-पक्षियों, कृषि पारिस्थिकी पद्धतियों पर कार्य कर रहे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के 113 अनुसंधानों से युक्त सुसंगठित भारतीय कृषि अनुसंधान एवं शिक्षण पद्धति दुनिया में अपने क्षेत्र की सर्वाधिक बड़ी पद्धतियों में से एक है. 60 के दशक की हरित क्रांति और उसके बाद अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के माध्यम से कृषि क्षेत्र में हुए विकास से वर्ष 1950-51 की तुलना में मत्स्य उत्पादन में लगभग 22 गुना, दुग्ध उत्पादन में 13 गुना, अंडा उत्पादन में 71 गुना, बागवानी फसलों के उत्पादन में 12 गुना तथा खाद्यान्न उत्पादन में 6.21 गुना वृद्धि दर्ज की गयी है. भारतीय कृषि पद्धति नेटवर्क ने न केवल देश के खाद्य और पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, बल्कि कृषि, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन, बागवानी, डेयरी, मात्स्यिकी, वानिकी, जैव प्रौद्योगिकी, कृषि अभियंत्रण, जल एवं भूमि प्रबंधन-संरक्षण के क्षेत्रों में देश के लिए दक्ष तकनीकी मानव संसाधन की फौज भी खड़ी की है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास में सतत लगे कृषि एवं संबंद्ध क्षेत्रों के भारतीय वैज्ञानिकों को अपने-अपने क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान और प्रतिष्ठा प्राप्त है.

कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों की कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में भारत वर्ष 2021-22 में 315.7 मिलियन टन के रिकॉर्ड उत्पादन के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2022-23 में खाद्यान्न उत्पादन 330.5 मिलियन टन होने की संभावना है, जिसमें चावल, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, रेपसीड, सरसों और गन्ना का रिकॉर्ड उत्पादन शामिल है. भावी जरूरतों की पूर्ति के लिए अंतर फसल और फसल विविधीकरण के माध्यम से कृषि का रकबा बढ़ाना, उच्च उपजशील किस्मों के प्रयोग से उत्पादकता वृद्धि, कम उपजवाले क्षेत्रों में उपयुक्त वैज्ञानिक विधियों को अपनाना, अपशिष्ट नमी का ज्यादा लाभकारी प्रयोग, अगेती बोआई, रबी फसलों के लिए जीवन रक्षक सिंचाई सुनिश्चित करना आदि क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा. राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और बाजार की मांग के अनुरूप हमें अपनी अनुसंधान रणनीतियों में भी बदलाव लाना होगा.

कृषि क्षेत्र की बड़ी बातें
60 के दशक की हरित क्रांति और उसके बाद अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के माध्यम से कृषि क्षेत्र में हुए विकास से वर्ष 1950-51 की तुलना में मत्स्य उत्पादन में लगभग 22 गुना, दुग्ध उत्पादन में 13 गुना, अंडा उत्पादन में 71 गुना, बागवानी फसलों के उत्पादन में 12 गुना तथा खाद्यान्न उत्पादन में 6.21 गुना वृद्धि दर्ज की गयी है.

कृषि संबंधी हमारी राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास प्राथमिकताओं में देश की खाद्य सुरक्षा के लिए उत्पादन एवं उत्पाकता बढ़ाने के साथ-साथ पोषण के लिए बायोफोर्टीफिकेशन, जैविक एवं अजैविक तनाव सहिष्णु फसल प्रभेदों का विकास, मौसम परिवर्तन संबंधी तनावों से निबटने में सक्षम उत्पादन तकनीक, किसानों की बेहतर आय के लिए उच्च कीमतवाली फसलों के लिए समेकित कृषि पद्धति, वैश्विक बाजार में स्थान बनाने के लिए निर्यात क्षमतावाले प्रभेदों एवं उत्पादों को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं. देश में कृषि अनुसंधान गतिविधियों का मार्गदर्शन एवं समन्वयन करनेवाली भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की दीर्घकालीन प्राथमिकताओं में नवीकृत ऊर्जा का प्रयोग 50 प्रतिशत तक बढ़ाना, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता 45 प्रतिशत कम करना तथा 2.6 करोड़ हेक्टेयर अवकृष्ट भूमि का कृषि में पुनर्वास करना भी शामिल है.

देश भर में फैले आइसीएआर के अनुसंधान संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों के नेटवर्क के माध्यम से रसायनमुक्त प्रौद्योगिकी सहित जैविक एवं प्राकृतिक कृषि के प्रमाणीकरण, मान्यकरण एवं प्रत्यक्षण के लिए भी प्रयास चल रहे हैं. मौसम, पौधा और मिट्टी के विभिन्न इंडीकेटर्स के सामयिक अनुश्रवण और किसानों को आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस आधारित परामर्श प्रदान करने के लिए के लिए कृषि में एडवांस डिजिटल टेक्नोलॉजी एवं उपकरणों का प्रयोग भी बढ़ रहा है.

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल तो काफी समय से हो रहा है. कृषि में ड्रोन और सेंसर आधारित ऑटोमेशन के इस्तेमाल के लिए भी रणनीति और कार्य पद्धति पर जोर-शोर से तैयार की जा रही है. देश में जिला स्तर पर स्थापित 731 कृषि विज्ञान केंद्र एक मिनी कृषि विश्वविद्यालय के रूप में काम करते हुए किसानों को नयी प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूक बना रहे हैं. ऑन फार्म टेस्टिंग, बीज उत्पादन तथा प्रशिक्षण का काम हम लगातार कर रहे हैं.

किसानों को कृषि उत्पादों का समुचित मूल्य दिलाने के लिए इस उत्पादों का समुचित प्रसंस्करण आवश्यक है. विश्व में एक बड़ा उत्पादन आधार होने के बावजूद देश में कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण 10 प्रतिशत से भी कम है. लगभग 10 प्रतिशत फल और सब्जी, 8 प्रतिशत समुद्री उत्पाद, 35 प्रतिशत दूध और 6 प्रतिशत कुक्कुट का ही प्रसंस्करण हो पाता है. इसके लिए बेहतर प्रोसेसिंग योग्य प्रभेद विकसित करने होंगे. पोस्ट हार्वेस्ट (कटाई उपरांत) नुकसान को कम करना भी एक चुनौती है. एक अध्ययन के अनुसार, टिकाऊ कृषि उत्पादों का 10 प्रतिशत, दूध, मछली, मीट, अंडा, फल एवं सब्जी का 10 से 20 प्रतिशत तथा अन्य बागवानी उत्पादों का 16 प्रतिशत पोस्ट हार्वेस्ट चरण में नष्ट हो जाता है.

बढ़ती आबादी, बदलती जीवनशैली, विस्तारित होता शहरीकरण और मौसम परिवर्तन के कारण भारतीय कृषि के समक्ष नित नयी चुनौतियां पैदा हो रही हैं. पहले देश की खाद्यान्न जरूरतें पूरी करने की चुनौती थी, किंतु अब पोषणयुक्त आहार उपलब्ध कराने की चुनौती है, ताकि देशवासियों का स्वास्थ्य बेहतर रह सके. भविष्य में अलग-अलग समूह, वर्ग और व्यक्तियों के आनुवांशिक प्रोफाइल के अनुरूप पर्याप्त पोषक तत्व उपलब्ध कराने की चुनौती होगी, किंतु संतोष की बात है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे विकास से हर नयी चुनौती से ढंग से निबटने की राह भी निकल रही है. बदलते परिवेश और पर्यावरण के साथ लय और गति बनाये रखने के लिए नयी सोच, नयी दृष्टि और नयी रणनीति भी विकसित होती रही है, ताकि देश में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में नवोन्मेष नीत समावेशी और टिकाऊ विकास की रफ्तार बनी रहे. अब भी देश की लगभग 55 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिए कृषि पर आश्रित है.

(लेखक बिरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची के कुलपति हैं.)

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