Flipkart-Amazon: फ्लिपकार्ट-अमेजन पर ग्राहकों को कैसे मिलता है सस्ता सामान, यहां जानिए फंडा

Flipkart-Amazon: फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के सस्ते दामों का राज केवल सीधा निर्माताओं से सामान खरीदने तक सीमित नहीं है. इसके पीछे अवास्तविक मूल्य निर्धारण, नकदी का भारी निवेश और अन्य अनैतिक प्रथाएं भी शामिल हैं. हालांकि, खुदरा व्यापारी संगठन इन प्लेटफार्म के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण है कि ऑनलाइन शॉपिंग की बढ़ती लोकप्रियता उपभोक्ताओं के लिए कितनी फायदेमंद और व्यवसायियों के लिए कितनी हानिकारक है.

By Abhishek Pandey | October 6, 2024 10:01 AM

Flipkart-Amazon: फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर अक्सर मोबाइल, फ्रिज, एसी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर भारी छूट दी जाती है. इसके अलावा, बैंक क्रेडिट और डेबिट कार्ड से खरीदारी पर अतिरिक्त छूट भी मिलती है. इस वजह से उपभोक्ता ऑनलाइन शॉपिंग को प्राथमिकता देने लगे हैं. लोग बाजार में मिलने वाले उत्पादों की तुलना में ऑनलाइन सामान खरीदना सस्ता और सुविधाजनक मानते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर ई-कॉमर्स प्लेटफार्म इतने सस्ते दाम पर सामान कैसे बेचते हैं?

ऑनलाइन और बाजार के दामों में अंतर

जो प्रोडक्ट्स बाजार में 11,000 रुपये के मिलते हैं, वही ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर 9,000 रुपये के उपलब्ध होते हैं. उपभोक्ताओं के बीच अक्सर यह धारणा होती है कि ई-कॉमर्स कंपनियां सीधे निर्माता से माल खरीदती हैं और बिचौलियों को हटाने के कारण यह सामान सस्ता हो जाता है। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा जटिल है.

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खुदरा व्यापारियों का विरोध

कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स’ (CAIT) और खुदरा मोबाइल विक्रेताओं के संगठन ‘ऑल इंडिया मोबाइल रिटेलर्स एसोसिएशन’ (AIMRA) ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) से फ्लिपकार्ट और अमेजन के ऑपरेशन्स को तुरंत निलंबित करने की मांग की है. इन संगठनों का आरोप है कि ई-कॉमर्स कंपनियां प्रोडक्ट्स पर अवास्तविक मूल्य निर्धारण कर रही हैं और नकदी खर्च करके भारी छूट दे रही हैं, जिससे खुदरा व्यापारियों को नुकसान हो रहा है और बाजार में असंतुलन पैदा हो रहा है.

नकदी का खेल और अवास्तविक मूल्य निर्धारण

व्यापारी संगठनों का कहना है कि फ्लिपकार्ट और अमेजन अवास्तविक मूल्य निर्धारण का सहारा लेकर बाजार में भारी छूट दे रहे हैं. ये कंपनियां अपने ऑपरेशन्स को फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) नीति और अन्य नियमों का उल्लंघन करके चलाती हैं. व्यापारी संगठनों का यह भी आरोप है कि ई-कॉमर्स कंपनियां अपने नुकसान की भरपाई के लिए विदेश से वित्तीय सहायता प्राप्त कर रही हैं, जो भारतीय बाजार के प्रतिस्पर्धात्मक ढांचे के खिलाफ है.

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नकदी निवेश और सस्ते दाम

CAIT के महासचिव और दिल्ली से बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि ये ई-कॉमर्स कंपनियां बाजार में बंपर डिस्काउंट दे रही हैं और नकदी खर्च कर रही हैं ताकि वे बाजार में अपनी पकड़ बनाए रखें. इनके पास जो भी निवेश आता है, वह भारत में इनके ऑपरेशन्स के दौरान होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए किया जाता है. इस अनफेयर प्रैक्टिस के कारण टैक्स चोरी का मामला भी सामने आ रहा है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हो रहा है.

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बैंकों और ब्रांड्स की भूमिका

AIMRA के संस्थापक और चेयरमैन कैलाश लख्यानी ने आरोप लगाया कि कुछ बैंक और ब्रांड्स ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ मिलकर सस्ते दामों पर सामान बेच रहे हैं. यह सांठगांठ उपभोक्ताओं को भारी छूट देने में सहायक होती है, लेकिन इससे खुदरा व्यापारियों का व्यापार प्रभावित हो रहा है. AIMRA ने कुछ चीनी मोबाइल कंपनियों जैसे वनप्लस, आईक्यूओओ और पोको के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की है, जो कथित रूप से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ मिलकर यह व्यापार चला रही हैं.

व्यापारियों की मांग

व्यापारी संगठनों का कहना है कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्म की अव्यवहारिक मूल्य निर्धारण रणनीतियों ने मोबाइल फोन के अनधिकृत या ग्रे मार्केट को जन्म दिया है. इस ग्रे मार्केट में कारोबारी टैक्स की चोरी कर रहे हैं, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है. संगठनों ने यह भी कहा है कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्म की यह रणनीति छोटे व्यापारियों को नुकसान पहुंचा रही है और भारतीय बाजार में असमानता पैदा कर रही है.

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