बजट 2022 : एक फरवरी को संसद में देश का ‘लेखा-जोखा’ होगा पेश, आइए जानते हैं ‘बही-खाते’ से जुड़े अहम शब्द

देश का आम आदमी बजट का मतलब रोजमर्रा की चीजों की कीमत और अपनी आमदनी से लगाता है. उसके मन में तो हमेशा यही सवाल चलते रहते हैं कि घर का खर्च कैसे चलेगा, बच्चों की फीस कहां से आएगी, कहां से कितनी आमदनी होगी, कहां से कटौती करके भविष्य के लिए बचत की जाएगी और खुद की जरूरतें कैसे पूरी होंगी?

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 26, 2022 2:12 PM

बजट 2022 : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में एक फरवरी को देश का वित्तीय ‘लेखा-जोखा’ पेश करेंगी. इससे पहले 31 जनवरी को सदन की पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. देश का आम आदमी बजट का मतलब रोजमर्रा की चीजों और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत और अपनी आमदनी से लगाता है. उसके मन में तो हमेशा यही सवाल चलते रहते हैं कि घर का खर्च कैसे चलेगा, बच्चों की फीस कहां से आएगी, कहां से कितनी आमदनी होगी, कहां से कटौती करके भविष्य के लिए बचत की जाएगी और खुद की जरूरतें कैसे पूरी होंगी? इसीलिए देश के आम अवाम को इस साल के बजट से ढेर सारी उम्मीदें बंधी हैं. ऐसे में हमें उन कुछ महत्वपूर्ण शब्दों का मतलब भी जान लेना चाहिए, जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी और बजट से जुड़ी हुई हैं.

बही-खाता

आम तौर पर बही-खाता लाल रंग के उस रजिस्टर या पंजी को कहा जाता है, जिसमें व्यापारी या कारोबारी अपने व्यापार या कारोबार का हिसाब-किताब लिखकर रखा करते थे, लेकिन निर्मला सीतारमण के वित्त मंत्री बनने के बाद से इसका बजट के साथ ताल्लुक हो गया. पहले संसद में बजट चमड़े की लाल अटैची में रखकर संसद तक लाया जाता था. यह अक्सर वित्त मंत्री के हाथ में नजर आता था. दरअसल, ब्रिटिश काल में जब वित्त मंत्री संसद में सरकार का आय-व्यय की जानकारी देते थे और इसे चमड़े के लाल बैग में लेकर आया जाता था, लेकिन भाजपा सरकार ने लाल बैग की परंपरा को खत्म कर दिया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019 में चमड़े की अटैची की बजाय बही-खाता (पारंपरिक लाल कपड़े में लिपटे कागज) में बजट दस्तावेजों को ले जाने की प्रथा शुरू की.

वित्त विधेयक

वित्त विधेयक के माध्यम से ही आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री सरकार की आय बढ़ाने के लिए नए करों आदि का प्रस्ताव करते हैं. इसके साथ ही वित्त विधेयक में मौजूदा कर प्रणाली में किसी तरह का संशोधन आदि को प्रस्तावित किया जाता है. संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे लागू किया जाता है. यह हर साल सरकार बजट पेश करने के दौरान करती है.

विनिवेश

सरकार अगर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी (सरकारी कंपनी) की हिस्सेदारी निजी कंपनी के हाथों बेच देती है, तो उसे विनिवेश कहा जाता है. सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी शेयरों के जरिए बेची जाती है. सरकारी कंपनी की हिस्सेदारी किसी एक व्यक्ति या फिर किसी निजी कंपनी को बेची जा सकती है.

बॉन्ड

देश का खर्चा चलाने के लिए पैसों की कमी होने पर सरकार बाजार से धन जुटाने के लिए बॉन्ड जारी करती है. यह एक प्रकार का कर्ज होता है, जिसे पैसा मिलने पर सरकार की ओर से एक निर्धारित समय के अंदर भुगतान किया जाता है. इस बॉन्ड को सर्टिफिकेट भी कहा जाता है.

बैलेंस ऑफ पेमेंट

भारत सरकार देश के राज्यों या दुनिया के दूसरे देशों से किया गया वित्तीय लेन-देन बजट या आर्थिक भाषा में बैलेंस ऑफ पेमेंट कहलाता है. संतुलित बजट तब कहलाता है, जब सरकार का आय और व्यय दोनों ही बराबर हो.

सीमा शुल्क

जब किसी दूसरे देश से भारत में सामान आता है तो उस पर सरकार की ओरसे जो कर लगाया जाता है, उसे सीमा शुल्क कहा जाता है. जैसे ही समुद्र या हवाई मार्ग से भारत में कोई सामान उतरता है, तो उस पर यह शुल्क लगता है.

उत्पाद शुल्क

उत्पाद शुल्क उन उत्पादों पर लगता है, जो देश के अंदर बनते और बिकते हैं. इसे एक्साइज ड्यूटी भी कहते हैं. यह शुल्क उत्पाद के बनने और उसकी खरीद पर लगता है. फिलहाल, देश में दो प्रमुख उत्पाद हैं, जिनसे सरकार को सबसे ज्यादा कमाई होती है और पेट्रोल-डीजल और शराब है.

राजकोषीय घाटा

सरकार की ओर से लिया जाने वाला अतिरिक्त कर्ज राजकोषीय घाटा कहलाता है. देखा जाए तो राजकोषीय घाटा घरेलू कर्ज पर बढ़ने वाला अतिरिक्त बोझ ही है. इससे सरकार आय और व्यय के अंतर को दूर करती है.

प्रत्यक्ष कर

प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जो व्यक्तियों और संगठनों की आय पर लगाया जाता है, चाहे वह आमदनी किसी भी स्रोत से हुई हो. निवेश, वेतन, ब्याज, आयकर, कॉर्पोरेट टैक्स आदि प्रत्यक्ष कर के तहत ही आते हैं. इसे डाइरेक्ट टैक्स भी कहते हैं.

अप्रत्यक्ष कर

ग्राहकों द्वारा सामान खरीदने और सेवाओं का इस्तेमाल करने के दौरान उन पर लगाया जाने वाला टैक्स इनडायरेक्ट टैक्स कहलाता है. जीएसटी, कस्टम्स ड्यूटी और एक्साइज ड्यूटी आदि इनडायरेक्ट टैक्स के तहत ही आते हैं.

आयकर छूट

इस शब्द से आमतौर पर हर देशवासी परिचित होता है. बजट में भी सबसे ज्यादा नजरें इसी पर टिकी होती है. दरअसल, टैक्सपेयर्स की वह इनकम जो टैक्स के दायरे में नहीं आती है यानी जिस पर कोई टैक्स नहीं लगता, उसे आयकर छूट कहते हैं.

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विकास दर

सकल घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी एक वित्त वर्ष के दौरान देश के भीतर कुल वस्तुओं के उत्पादन और देश में दी जाने वाली सेवाओं का टोटल होता है. इस शब्द के ऊपर भी बजट में सबसे ज्यादा जोर रहता है.

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