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पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था से तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की डगर पर भारत

वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ था, तो भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सिर्फ 2.7 लाख करोड़ रुपये की थी और जनसंख्या 34 करोड़ थी. वर्ष 2022-23 में भारत की जीडीपी 272 लाख करोड़ रुपये के करीब है और 1.42 अरब जनसंख्या के साथ भारत दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 15, 2023 5:56 AM

डॉ जयंतीलाल भंडारी

यकीनन 15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तब देश का आर्थिक परिदृश्य निराशाजनक स्थिति में था. अंग्रेजों द्वारा किये गये आर्थिक शोषण से देश बुरी तरह से आर्थिक रूप से ध्वस्त हो गया था. दुनिया में भारत को सांप-सपेरों के देश की पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था के रूप में पहचाना जाता था, लेकिन देश की आजादी से अब तक 76 वर्षों में भारत ने आर्थिक क्षेत्र के विभिन्न मोर्चों पर कदम-कदम आगे बढ़कर विकास के इतिहास रच दिये हैं. स्थिति यह है कि आजादी के समय जो भारत आर्थिक मुश्किलों और आर्थिक निराशाओं से जकड़ा हुआ था, वहीं भारत आज दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है.

छलांगें लगाकर आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था

वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ था, तो भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सिर्फ 2.7 लाख करोड़ रुपये की थी और जनसंख्या 34 करोड़ थी. वर्ष 2022-23 में भारत की जीडीपी 272 लाख करोड़ रुपये के करीब है और 1.42 अरब जनसंख्या के साथ भारत दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है. बीते 76 वर्ष में भारत की जीडीपी में लंबी अवधि के दौरान अच्छी बढ़त का रुख रहा है, लेकिन तीन मौके ऐसे आये हैं, जब अर्थव्यवस्था की विकास दर शून्य से नीचे रही है.

पहली बार 1965 के दौरान, दूसरी बार 1979 के दौरान और तीसरी बार 2020 में कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिली. इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि सरकार के द्वारा अपनायी गयी आर्थिक और वित्तीय रणनीति से अर्थव्यवस्था चुनौतियों को पार करते हुए तेजी से आगे बढ़ी है. पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में देश की विकास दर अनुमानों से अधिक 7.2 फीसदी रही है. दुनियाभर के वित्तीय संगठनों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के द्वारा वर्ष 2023-24 में भारत की विकास दर के 6 से 6.5 फीसदी रहने की उम्मीदें प्रस्तुत की जा रही हैं.

बहुआयामी गरीबी में कमी और गरीबों को मुस्कुराहट

देश में गरीबों की संख्या में भारी कमी आयी है. जब देश आजाद हुआ था, उस समय देश की करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या बेहद गरीबी में जी रही थी, लेकिन देश में पंचवर्षीय योजनाओं और विभिन्न गरीबी उन्मूलन योजनाओं से देश के गरीबों का लगातार उत्थान होता गया और लोग गरीबी के दुष्चक्र से बाहर आने लगे. गौरतलब है कि नीति आयोग के द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बहुआयामी गरीब लोगों की हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 के 24.85 फीसदी से घटकर वर्ष 2019-21 में 14.96 फीसदी हो गयी है.

उल्लेखनीय है कि यूएनडीपी की रिपोर्ट 2023 में कहा गया कि भारत में पिछले 15 वर्षों में गरीबी में उल्लेखनीय रूप से कमी आयी है. भारत में 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. 2005-2006 में जहां गरीबों की आबादी 55.1 प्रतिशत थी वह 2019-2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत हो गयी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005-2006 में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गयी.

विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी निवेश की ऊंचाई

1947 में आजादी के समय देश का विदेशी मुद्रा भंडार काफी कमजोर था. 1950-51 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 1029 करोड़ रुपये के स्तर पर था. 1991 तक विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति काफी नाजुक हो गयी थी. इस दौरान एक वक्त ऐसा भी आया जब भारत के पास सिर्फ 3 हफ्ते के आयात के बराबर ही विदेशी मुद्रा भंडार था. लेकिन 1991 में आर्थिक सुधारों के नये दौर के बाद देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता गया. अगस्त, 2023 में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 600 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच चुका है.

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) भी तेजी से बढ़ा है. यह भी उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2022-23 में दुनिया में वैश्विक सुस्ती के बावजूद भारत में एफडीआइ 46 अरब डॉलर के स्तर पर रहा है. भारत दुनिया के प्रमुख एफडीआइ प्राप्त करने वाले देशों की सूची में ऊंचे क्रम पर रेखांकित हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) की वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट, 2023 के मुताबिक वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के रुझान के बीच भारत दुनिया के सर्वाधिक एफडीआइ प्राप्त करने वाले 20 देशों की सूची में आठवें पायदान पर रहा.

वैश्विक व्यापार में भारी वृद्धि

वर्ष 1950-51 में भारत ने 1.27 अरब डॉलर का आयात और 1.26 अरब डॉलर का निर्यात किया था. 1990-91 में आर्थिक सुधारों के बाद विदेश व्यापार तेजी से बढ़ा. वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का विदेश व्यापार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचते हुए 1.6 लाख करोड़ डॉलर मूल्य की ऊंचाई पर रहा है. गौरतलब है कि भारत का वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 447 अरब डॉलर पहुंच गया है, जो एक साल पहले 442 अरब डॉलर था. साथ ही सेवाओं के निर्यात में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले वित्त वर्ष में 320 अरब डॉलर पार कर गया है, जो एक साल पहले 254 अरब डॉलर था. ऐसे में वित्त वर्ष 2022-23 में वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात 767 अरब डॉलर की सर्वोच्च ऊँचाई पर पहुंच गया है.

आर्थिक सुधार और अर्थव्यवस्था के नये आयाम

आजादी से अब तक के 76 वर्षों में भारत में एक के बाद लगातार आर्थिक सुधार लागू किये गये वर्ष 2014 से वर्ष 2023 तक 1500 से अधिक अप्रचलित और अनुपयोगी कानूनों को हटाया गया है. कारोबार सुधार के कई रणनीतिक कदम आगे बढ़ाये गये हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर, 2016 को रात 8 बजे राष्ट्र के नाम किया गया संबोधन तबसे अब तक लगातार देश में रेखांकित हो रहा है. इसमें उन्होंने कहा कि 500 और 1,000 के बैंक नोट, जो मूल्य के हिसाब से प्रचलन में मौजूद मुद्रा का 85 प्रतिशत हैं, अब वैध नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और काले धन की पकड़ को तोड़ने के लिए यह फैसला महत्वपूर्ण है. भारत की अर्थव्यवस्था में एक और उल्लेखनीय दिन 1 जुलाई 2017 रहा है. सरकार ने इस दिन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया. इस फैसले ने भारत को अप्रत्यक्ष कर कानून वाले कुछ देशों में से एक बना दिया है, जो विभिन्न केंद्रीय और राज्य कर कानूनों को एकीकृत करता है.

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की डगर पर भारत

यह कोई छोटी बात नहीं है कि वर्ष 1947 में आजादी के समय जो भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था थी, वह वर्ष 2023 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त है. इतना ही नहीं भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखायी दे सकता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ), अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टेनली जैसे कई वैश्विक संगठनों की रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि भारत 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर सामने आयेगा.

उल्लेखनीय है स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआइ) की शोध इकाई इकोरैप की रिपोर्ट में भी कहा किया गया है कि भारत वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर है. रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 की अप्रैल से जून की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से ज्यादा रहने वाली है. इससे चालू वित्त वर्ष के दौरान सालाना विकास दर के 6.5 फीसदी रहने की संभावना बन गयी है. रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2027 तक अमेरिकी इकोनॉमी का आकार 31.09 ट्रिलियन डॉलर का होगा और यह पहले स्थान पर होगी. दूसरे स्थान पर चीन 25.72 ट्रिलियन डॉलर के साथ होगा. तीसरे स्थान पर भारत 5.15 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में दिखायी देगा.

निश्चित रूप से इस समय दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था के रूप में रेखांकित हो रहे भारत को 2027 तक दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की संभावनाओं को साकार करने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा. टिकाऊ आर्थिक वृद्धि एवं निवेश साख को और मजबूत बनाना होगा. नयी लॉजिस्टिक नीति, गति शक्ति योजना के कारगर कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान देना होगा. विभिन्न आर्थिक और वित्तीय सुधारों की डगर पर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा. महिलाओं की श्रमबल भागीदारी भी बढ़ाना होगी.

अभी सीमित संख्या में ही भारत नयी डिजिटल की कौशल प्रशिक्षित प्रतिभाएं डिजिटल कारोबार की जरूरतों को पूरा कर पा रही हैं. अब दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी वाले भारत को बड़ी संख्या में युवाओं को डिजिटल कारोबार के दौर की और नयी तकनीकी योग्यताओं के साथ एआइ, क्लाउड कम्प्यूटिंग, मशीन लर्निंग एवं अन्य नये डिजिटल स्किल्स से सुसज्जित किया जाना होगा. अब भारत के द्वारा विभिन्न देशों के साथ एफटीए के लिए वार्ताएं तेजी से पूरी करनी होगी. रुपए को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे.

ऐसे में हम उम्मीद करें कि आजादी के बाद बीते हुए 76 वर्षों में देश के आर्थिक चेहरे पर वर्ष-प्रतिवर्ष लगातार बढ़ती हुई आर्थिक मुस्कुराहट अब वर्ष 2047 तक 7 से 7.5 फीसदी विकास दर के साथ और बढ़ती हुई दिखायी देगी. ऐसे में तेजी से आर्थिक डगर पर आगे बढ़ता हुआ सामर्थ्यवान भारत 15 अगस्त 2047 को दुनिया के विकसित देश के रूप में चमकते हुए दिखायी देगा.

(लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं.)

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