नई दिल्ली : देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में घटकर 4.4 फीसदी रही है. मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन की वजह से जीडीपी में गिरावट आई है. राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के मंगलवार को जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली. इससे पिछले वित्त वर्ष 2021-22 की समान तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था 11.2 फीसदी की दर से बढ़ी थी. वहीं, चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही थी. एनएसओ ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर सात फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. इसके अलावा एनएसओ ने बीते वित्त वर्ष 2021-22 की वृद्धि दर को 8.7 फीसदी से संशोधित कर 9.1 फीसदी कर दिया है.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2022 की अंतिम तिमाही के लिए 4.4 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था. हालांकि, उस समय केंद्रीय बैंक ने इस वर्ष की विकास दर 6.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था. सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जनवरी की शुरुआत में जारी जीडीपी के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, भारत की जीडीपी 2022-23 में 7 फीसदी की दर से बढ़ने वाली थी. सरकार द्वारा आज 28 फरवरी को जारी दूसरे अग्रिम अनुमान में इस वर्ष के लिए भारत के पूरे वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7 फीसदी रहने के अनुमान को बरकरार रखा गया है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2023-24 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि 6.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सात फीसदी रहने का अनुमान है. आर्थिक समीक्षा 2022-23 में अगले वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है.
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अभी हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत आर वर्मा ने कहा है कि भारत की आर्थिक वृद्धि ‘काफी कमजोर’ है और संभवत: यह देश के बढ़ते श्रमबल की आकांक्षाओं को पूरा करने की दृष्टि से पर्याप्त नहीं रहेगी. उन्होंने कहा कि भारत में उन्हें लगता है कि 2022-23 में महंगाई ऊंचे स्तर पर रहेगी, लेकिन 2023-24 में इसमें काफी कमी आएगी. उन्होंने कहा कि हालांकि, वृद्धि बहुत कमजोर नजर आ रही है और मौद्रिक सख्ती से मांग पर दबाव पड़ रहा है.