Exclusive : झारखंड के चौपारण की वो मिठाई, जिसे खरीदने के लिए जीटी रोड पर लगती हैं गाड़ियों की कतारें

बांग्लादेश के सोनागांव से शुरू होकर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के पेशावर और सिंध प्रांत तक जाने वाली जीटी रोड का निर्माण मध्यकालीन भारत में मगध साम्राज्य के मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य ने कराया था. उस समय इसे उत्तरापथ कहा जाता था. झारखंड के हजारीबाग जिले का चौपारण भी इसी जीटी रोड के किनारे बसा है.

By KumarVishwat Sen | July 14, 2023 12:12 PM

रांची : झारखंड में अगर 16वीं सदी में मध्यकालीन भारत के शासक शेरशाह सूरी के द्वारा बनाई गई जीटी रोड (ग्रांड ट्रंक रोड) से गुजर हैं और हजारीबाग जिले के चौपारण में हैं, तो आप यहां की खास मिठाई का स्वाद चखे बिना अपने सफर को आगे नहीं बढ़ा सकते. आज की तारीख में जीटी रोड के किनारे बसे चौपारण की यह खास मिठाई देश में इतना प्रसिद्ध हो गई है कि इसे खरीदने के लिए चौपारण में जीटी रोड के किनारे गाड़ियों की कतारें लग जाती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि आज झारखंड समेत पूरे भारत में चौपारण इस खास मिठाई की वजह से प्रसिद्ध है और इसे खरीदने के लिए जीटी रोड से गुजरने वाली प्राय: हर बसें और गाड़ियां यहां पर ठहर जाती हैं. यहां तक कि कई कंपनियां, सरकारी विभाग और अन्य संस्थान अपने अधिकारियों को इस मिठाई का स्वाद चखाने के लिए चौपारण में मीटिंग तक भी आयोजित करती हैं. जानते हैं, चौपारण की इस इस खास मिठाई का क्या नाम है? इसका नाम है ‘खिरमोहन’.

जीटी रोड पर कहां बसा है चौपारण

गौरतलब है कि बांग्लादेश के सोनागांव से शुरू होकर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के पेशावर और सिंध प्रांत तक जाने वाली जीटी रोड का निर्माण मध्यकालीन भारत में मगध साम्राज्य के मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य ने कराया था. उस समय इसे उत्तरापथ कहा जाता था. 16वीं सदी में दिल्ली के सुल्तान शेरशाह सूरी ने इस उत्तरापथ को पक्का कराया था. शेरशाह सूरी के जमाने में इस सड़क को ‘सड़के-ए-आजम’ या ‘बादशाही सड़क’ के नाम से भी जाना जाता था, क्योंकि यह बंगाल से शुरू होकर करीब 2500 किलोमीटर दूर पेशावर होते हुए अफगानिस्तान तक जाती है. भारत में यह रोड हावड़ा, बर्धमान, पानागढ़, दुर्गापुर, आसनसोल, धनबाद, औरंगाबाद, डेहरी आन सोन, सासाराम, मोहनिया, मुगलसराय, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, कल्याणपुर, कन्नौज, एटा, अलीगढ़, गाजियाबाद, दिल्ली, पानीपत, करनाल, अंबाला, लुधियाना, जलंधर और अमृतसर से होकर गुजरती है. झारखंड में धनबाद से होकर डोभी तक गुजरने वाली इस सड़क पर बरही के बाद और बाराचट्टी से पहले चौपारण बसा है. चौपारण झारखंड के हजारीबाग जिले में बसा है और बिहार-झारखंड का सीमावर्ती इलाका है.

क्या है ‘खिरमोहन’ का इतिहास

झारखंड में धनबाद से शुरू होने वाली जीटी रोड के किनारे बसे चौपारण की मिठाई ‘खिरमोहन’ का इतिहास बहुत पुराना है, जैसे शेरशाह सूरी की जीटी रोड का है. स्थानीय दुकानदार बताते हैं कि चौपारण में जीटी रोड के किनारे आज से करीब 90-91 साल पहले से ‘खिरमोहन’ मिठाई बनाई और बेची जा रही है. सबसे पहले इसकी शुरुआत वर्ष 1930 के दशक में चौपारण के निवासी विष्णु यादव ने की थी. आज भी विष्णु यादव के पोते चौपारण में जीटी रोड के किनारे ‘खिरमोहन’ बनाते और बेचते हैं.

तीन पीढ़ी से बचे रहे हैं खिरमोहन मिठाई

आपको यह भी बता दें कि चौपारण में ‘खिरमोहन’ की सबसे पुरानी दुकान विष्णु खिरमोहन है. चौपारण के निवासी विष्णु यादव ने वर्ष 1932 से ‘खिरमोहन’ को बनाना और बेचना शुरू किया था. हमने उनके पोते सत्येंद्र यादव से बात की. बातचीत के दौरान सत्येंद्र यादव ने बताया कि वर्ष 1932 में हमारे दादा विष्णु यादव ने जीटी रोड के किनारे ‘खिरमोहन’ बेचना शुरू किया था. उस समय चौपारण की आबादी कम थी, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों से गाड़ियों का आना-जाना लगा रहता था. उन्होंने बताया कि जो गाड़ियां जीटी रोड से होकर गुजरती थीं, उसमें बैठे सवारी या फिर खलासी और ड्राइवर दादाजी के द्वारा बनाई गई मिठाई को खरीदकर अपने बच्चों और परिजनों के लिए ले जाते थे. उन्हें जब यह मिठाई अच्छी लगती थी, तो वे फिर दोबारा इस रास्ते से गुजरते तो ठहरकर हमारे दादा की दुकान से यह मिठाई जरूर खरीदकर ले जाते. उन्होंने बताया कि हमारे दादा के बाद हमारे पिताजी ने भी इस परंपरा को बरकरार रखा और मेरे पिता ने भी ‘खिरमोहन’ बेची. आज मैं तीसरी पीढ़ी हूं, जो इसे बनाता भी हूं और बेचता भी हूं.

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कैसे हुआ प्रचार-प्रसार

झारखंड के चौपारण की खास मिठाई ‘खिरमोहन’ को ईजाद करने वाले विष्णु यादव के पोते सत्येंद्र यादव बताते हैं कि दादा के समय में जो लोग उनकी दुकान से ‘खिरमोहन’ खरीदकर जाते थे, वे मौखिक तौर पर अपने गांव में या परिवार के लोगों से इसकी खासियत बताते थे. दूसरा यह कि जीटी रोड से जो गाड़ियां गुजरती थीं, उसमें सवार लोगों से भी इसका प्रचार-प्रसार हो जाता था. उन्होंने कहा कि एक प्रकार से आप कह सकते हैं कि बंगाल से लेकर पेशावर तक जाने वाले ट्रकों, बसों और अन्य वाहनों के जरिए हमारी इस मिठाई का प्रचार-प्रसार हुआ और इसी का नतीजा है कि आज जीटी रोड से होकर जो गाड़ियां गुजरती हैं, उसमें सवार यात्री चौपारण का ‘खिरमोहन’ खरीदकर अपने घर जरूर ले जाता है. सत्येंद्र आगे बताते हैं कि आज चौपारण से बंगाल, बिहार, झारखंड, दिल्ली, यूपी, हरियाणा, पंजाब आदि समेत कई राज्यों के लोग ‘खिरमोहन’ खरीदकर ले जाते हैं.

कैसे बनता है ‘खिरमोहन’

‘खिरमोहन’ खाने में जब इतना स्वादिष्ट और लजीज है, तो यह बनता कैसे है? इस सवाल के जवाब में विष्णु यादव के पोते सत्येंद्र यादव ने बताया कि ‘खिरमोहन’ बनाने की एक खास प्रक्रिया है. यह मुख्य रूप से दूध के छेने से ही बनाया जाता है, लेकिन इसे बनाने के दौरान जिस प्रक्रिया को अपनाया जाता है, वही इसे खास और स्वादिष्ट बनाता है. उन्होंने बताया कि ‘खिरमोहन’ मिठाई दो तरह की होती है. एक चीनी की चाशनी में बनाई जाती है और दूसरी गुड़ से बनती है. दोनों प्रकार का ‘खिरमोहन’ दूध के छेने से बनाया जाता है. इसे बनाने की प्रक्रिया ही ऐसी है कि दोनों प्रकार का ‘खिरमोहन’ खिल उठता है. इसकी खासियत यह है कि ‘खिरमोहन’ रसगुल्ले या गुलाब जामुन की शक्ल का होता है और स्वाद में सोंधापन होता है. चौपारण का ‘खिरमोहन’ अपने सोंधेपन और लजीज स्वाद की वजह से ही प्रसिद्ध है.

रेवड़ी के साथ भी कर सकते हैं प्रयोग

सत्येंद्र यादव कहते हैं कि खिरमोहन को आप रेवड़ी के साथ भी खा सकते हैं. इससे खिरमोहन की मिठास और स्वाद दोनों बदल जाते हैं. उन्होंने बताया कि अक्सरहां, जो लोग यहां आते हैं, वे खिरमोहन खाने के साथ-साथ किलो-दो किलो अपने घर भी ले जाते हैं और अपने आस-पड़ोस के लोगों को भी बताते हैं. इससे जो लोग इस खिरमोहन से परिचित नहीं होते हैं, वे भी जान जाते हैं और जब कभी भी जीटी रोड पर चौपारण से होकर गुजरते हैं, तो इसे जरूर खरीदते हैं.

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क्या है कीमत

अब जब आप लोग चौपारण के खिरमोहन के बारे में इतना कुछ जान चुके हैं, तो मन में यह उत्सुकता भी पैदा हो रही होगी कि इसकी कीमत क्या है. तो आपको बता दें कि चौपारण में खिरमोहन मिठाई 260 रुपये से लेकर 400 रुपये किलो तक मिलती है. इसमें चीनी की चाशनी वाले खिरमोहन की कीमत 260 रुपये से 300 रुपये तक है. इसके अलावा, जो लोग गुड़ से बने खिरमोहन खरीदते हैं, उन्हें इसके लिए 350 से 400 रुपये तक भुगतान करना पड़ता है. सबसे बड़ी बात यह है कि गुड़ और चीनी की चाशनी में पकाए जाने के बावजूद खिरमोहन इतना हल्का होता है कि एक किलो वजन में कम से कम 30-40 पीस चढ़ ही जाता है. इसलिए एक किलो मिठाई में करीब-करीब पूरा परिवार इसका स्वाद चख ही लेता है और पड़ोसी आ गए तो वे भी चख लेते हैं.

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शादी-समारोह के लिए दिया जाता है खास ऑर्डर

‘खिरमोहन’ मिठाई बेचने वाले एक अन्य दुकानदार संजय यादव ने बताया कि चौपारण की यह खास मिठाई इतना प्रसिद्ध है कि शादी-समारोह के लिए खास ऑर्डर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि शादी के लिए झारखंड के आसपास के जिलों के अलावा हमलोग बंगाल, बिहार और यूपी में भी शादी-समारोह में जाकर ‘खिरमोहन’ बनाते हैं. उन्होंने बताया कि इतना ही नहीं, इस मिठाई की खासियत की वजह से ही चौपारण में भी शादी-समारोह, विभिन्न विभागों और कंपनियों की बैठकें आयोजित किए जाते हैं. इसके साथ ही, लोग यहां पर पिकनिक मनाने भी आते हैं, क्योंकि जीटी रोड के किनारे घना जंगल भी है, जो एक बेहतरी पिकनिक स्पॉट भी बनाता है. यही वजह है कि आज हमारे झारखंड का यह चौपारण खिरमोहन की वजह से पूरे देश में प्रसिद्ध है.

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