नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी एक फरवरी 2023 दिन बुधवार को अपना पांचवां केंद्रीय बजट पेश करेंगी. इससे पहले भारतीय संसद में चार बार बजट पेश कर चुकीं निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी 2020 को जब वित्त वर्ष 2020-21 के लिए बजट पेश कर रही थीं, तब उन्होंने 2 घंटे 42 मिनट तक भाषण देने का रिकॉर्ड बनाया था. इससे पहले वर्ष 1977 में जब तत्कालीन वित्त मंत्री हीरूभाई मूलजीभाई पटेल संसद में बजट पेश कर रहे थे, तब उन्होंने सबसे छोटा भाषण देने का रिकॉर्ड कायम किया. ब्रिटिश साम्राज्य के शासनकाल में वर्ष 1860 से लेकर अब तक भारतीय संसद में पेश होने वाले बजट में कई ऐसे मौके आए, जब बजट का पूरा इतिहास ही बदल गया या फिर कोई नया रिकॉर्ड कायम कर दिया गया. आइए, जानते हैं भारत के उन महत्वपूर्ण नौ बजट के बारे में, जो अपने रिकॉर्ड और खासियत के लिए चर्चित हैं.
भारत के गणतंत्र का पहला बजट जॉन मथाई द्वारा 28 फरवरी 1950 को प्रस्तुत किया गया था. इस बजट की रूपरेखा योजना आयोग की ओर से तैयार की गई थी. उस समय योजना आयोग देश के सभी संसाधनों का आकलन करता था और इन संसाधनों के सबसे प्रभावी उपयोग की योजना बनाता है. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू योजना आयोग के पहले अध्यक्ष थे.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के शासनकाल में वित्त वर्ष 2002-03 का बजट यशवंत सिन्हा ने पेश किया था. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के बजट को रोलबैक बजट के रूप में जाना जाता है. वित्त वर्ष 2002-03 के बजट के कई प्रस्तावों को या तो वापस ले लिया गया या फिर उसे समाप्त कर दिया गया था.
21वीं सदी का पहला बजट वर्ष 2000 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा द्वारा प्रस्तुत किया गया था. उस समय यशवंत सिन्हा ने मिलेनियम बजट में भारत के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग के विकास के लिए रोड मैप पेश किया था. इस बजट ने सॉफ्टवेयर निर्यातकों पर प्रोत्साहन की प्रथा को बंद कर दिया. 2000 के बजट में कंप्यूटर और कंप्यूटर एक्सेसरीज पर सीमा शुल्क भी कम किया गया.
कर संग्रह बढ़ाने के लिए टैक्स दरों को कम करने के लिए लाफर कर्व सिद्धांत का उपयोग करते हुए पी चिदंबरम ने वित्त वर्ष 1997-98 के लिए बजट पेश किया था, ‘एवरीमैन बजट ड्रीम’ बन गया. कॉर्पोरेट कर की दर को कम करना और व्यक्तिगत आयकर दरों को 40 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी करने के अलावा चिदंबरम के ड्रीम बजट ने भी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) से उच्च निवेश को प्रोत्साहित किया.
वर्ष 1991 में डॉ मनमोहन सिंह के प्रतिष्ठित बजट ने लाइसेंस राज को समाप्त कर दिया और इसने आर्थिक उदारीकरण के युग की भी शुरुआत की. डॉ मनमोहन सिंह का युगांतकारी बजट संसद में उस समय पेश किया गया था, जब भारत आर्थिक पतन के कगार पर था. निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठाते हुए डॉ मनमोहन सिंह के ऐतिहासिक बजट ने उस समय सीमा शुल्क को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी कर दिया था.
पूर्व वीपी सिंह द्वारा 28 फरवरी, 1986 को कांग्रेस सरकार के लिए पेश किया गया केंद्रीय बजट भारत में लाइसेंस राज को खत्म करने की दिशा में पहला कदम था. इसे ‘गाजर और छड़ी’ बजट कहा गया, क्योंकि इसमें पुरस्कार और दंड दोनों की पेशकश की गई थी. इसने कर के व्यापक प्रभाव को कम करने के लिए संशोधित मूल्यवर्धित कर (MODVAT) क्रेडिट की शुरुआत की, जो उपभोक्ताओं को तस्करों, कालाबाजारियों और कर चोरों के खिलाफ एक गहन अभियान शुरू करते हुए चुकाना पड़ा.
इंदिरा गांधी सरकार में यशवंतराव बी चव्हाण द्वारा प्रस्तुत वित्त वर्ष 1973-74 के बजट को काला बजट कहा गया है, क्योंकि उस वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा 550 करोड़ रुपये था. यह एक ऐसा समय था, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था.
अरुण जेटली की ओर वर्ष 2017 में पेश किए गए आम बजट में रेल बजट का विलय कर दिया. अरुण जेटली के इस बजट के बाद संसद में अलग से रेल बजट पेश करने की 92 साल की परंपरा को समाप्त कर दिया गया. इससे पूर्व, संसद में आम बजट से पहले रेल बजट पेश किया जाता था. 1924 में अंग्रेजों द्वारा एक अलग रेलवे बजट शुरू किया गया था.
मोदी सरकार द्वारा दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने के बाद यह पहला बजट था, पहला वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पारित करना और नोटबंदी. पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश किया गया बजट कृषि क्षेत्र, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय प्रबंधन पर केंद्रित था. किसानों को ऋण के रूप में 10 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई. इसके अलावा, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के फंड को बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये कर दिया गया.
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