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1991 के बजट में मनमोहन सिंह देनी पड़ी थी अग्नि परीक्षा, ऐतिहासिक सुधारों ने बचाई भारत की साख

Manmohan Singh: मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहने के साथ-साथ 1991 में पीवी नरसिम्ह राव की सरकार में वित्त मंत्री भी थे. 1991 का बजट ऐतिहासिक बजट था, जिसने आर्थिक सुधारों की नींव रखी थी. इस बजट के बारे में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक में चर्चा की है, जिसमें कहा गया है कि इस ऐतिहासिक बजट को सदन से पास कराने के लिए मनमोहन सिंह को अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा था. विपक्ष तो विपक्ष, खुद कांग्रेस पार्टी में ही इसका विरोध था.

Manmohan Singh: भारत के आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह को 1991 के अपने उस ऐतिहासिक केंद्रीय बजट की स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा था. उनके उस बजट ने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव नीत सरकार में नवनियुक्त वित्त मंत्री सिंह ने यह काम बेहद बेबाकी से किया. बजट के बाद संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों का सामना करने से लेकर संसदीय दल की बैठक में व्यापक सुधारों को पचा न पाने वाले नाराज कांग्रेस नेताओं के बावजूद मनमोहन सिंह अपने फैसलों पर अडिग रहे. उनके ऐतिहासिक सुधारों ने न केवल भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी दिशा को भी दोबारा रिभाषित किया.

जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक में किया जिक्र

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा, ” केंद्रीय बजट प्रस्तुत होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को मनमोहन सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण विकृत न हो जाए.” इस पुस्तक में जून 1991 में पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र है.

मनमोहन सिंह ने 1991 के बजट को बताया था मानवीय बजट

जयराम रमेश ने 2015 में प्रकाशित इस पुस्तक में लिखा, ” वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने अपने बजट की व्याख्या की और इसे ”मानवीय बजट” करार दिया. उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि के प्रस्तावों का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया.” पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल के शुरुआती महीनों में जयराम रमेश उनके सहयोगी थे.

बजट को लेकर कांग्रेस में था असंतोष

कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए पीवी नरसिंहराव ने 1 अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक बुलाई और पार्टी सांसदों को ”खुलकर अपनी बात रखने” का मौका देने का फैसला किया. जयराम रमेश ने लिखा, ” प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया.” उन्होंने कहा कि दो-तीन अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे.

बजट के समर्थन में खड़े थे मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा

जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक में लिखा है, ” सीपीपी की बैठकों में वित्त मंत्री अकेले नजर आए और प्रधानमंत्री ने उनका बचाव करने या उनकी परेशानी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया.” केवल दो सांसदों मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा ने सिंह के बजट का पूरी तरह समर्थन किया. मणिशंकर अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए तर्क दिया था कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए.

कांग्रेस के दबाव में मनमोहन सिंह ने घटाई थी खाद की कीमत

कांग्रेस पार्टी के दबाव के आगे झुकते हुए मनमोहन सिंह ने खाद की कीमतों में 40% की वृद्धि को घटाकर 30% करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन एलपीजी और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को यथावत रखा था. राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की 4-5 अगस्त 1991 को दो बार बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि 6 अगस्त को मनमोहन सिंह लोकसभा में क्या वक्तव्य देंगे.

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राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम उदाहरण है 1991 का बजट

जयराम रमेश की पुस्तक के मुताबिक, ”इस बयान में इस वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई, जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी बल्कि इसमें छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई.” रमेश ने लिखा, ”दोनों पक्षों की जीत हुई. पार्टी ने दोबारा विचार करने के लिए मजबूर किया, लेकिन सरकार जो चाहती थी उसके मूल सिद्धांत यूरिया के अलावा दूसरे उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना और यूरिया की कीमतों में वृद्धि को बरकरार रखा गया.” उन्होंने पुस्तक में लिखा, ”यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम रचनात्मक उदाहरण है. यह इस बात की मिसाल है कि किस प्रकार सरकार और पार्टी मिलकर दोनों के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं.”

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