नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार अब ‘ब्लू इकोनॉमी’ के जरिए देश में रोजगार बढ़ाने और आर्थिक विकास को सुदृढ़ करने का फैसला किया गया है. इसके लिए सरकार की ओर से ‘गहरे समुद्र मिशन’ की शुरुआत की जाएगी, जिसके लिए बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से मंजूरी दे दी गई है. सरकार के इस कदम से समुद्री संसाधनों की खोज और समुद्री टेक्नोलॉजी के विकास में मदद मिलेगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई की ओर से दी गई खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में इस महत्वाकांक्षी मिशन के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई.
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि धरती का 70 फीसदी हिस्सा समुद्र है, जिसके बारे में अभी ज्या स्टडी नहीं हुई है. गहरे समुद्र के तल में एक अलग ही दुनिया बसी है. सीसीईए ने ‘गहरे समुद्र मिशन’ को मंजूरी प्रदान कर दी है. अब इसके जरिये एक तरफ ब्लू इकोनॉमी को मजबूती मिलेगी, तो समुद्री संसाधनों की खोज और समुद्री तकनीक के विकास में मदद मिलेगी.
मीडिया की खबरों के अुसार, भारत के कुल व्यापार का 90 फीसदी हिस्सा समुद्री रास्तों के जरिए होता है. समुद्री रास्तों, नए बंदरगाहों और समुद्री सामरिक नीति के जरिये अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना ही ब्लू इकोनॉमी कहलाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि केंद्र सरकार ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा देना चाहती है. भारत तीन ओर से सुमुद्र से घिरा हुआ है. ऐसे में ब्लू इकोनॉमी पर ध्यान बढ़ाकर देश की आर्थिक विकास को बढ़ाया जा सकता है.
ब्लू इकोनॉमी में सबसे पहले समुद्र आधारित बिजनेस मॉडल तैयार किया जाता है. इसके साथ ही, संसाधनों को ठीक से इस्तेमाल करने और समुद्री कचरे से निपटने के डायनॉमिक मॉडल पर कम किया जाता है. फिलहाल, पर्यावरण दुनिया में एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में ब्लू इकोनॉमी को अपनाना इस नजरिये से भी बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है. ब्लू इकोनॉमी के तहत खनिज पदार्थों समेत समुद्री उत्पादों पर फोकस होता है. समुद्र के जरिये व्यापार का सामान भेजना ट्रकों, ट्रेन या अन्य साधनों के मुकाबले पर्यावरण की दृष्टि से बेहद साफ-सुथरा साबित होता है.
केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने बताया कि गहरे समुद्र संबंधी मिशन के तहत जैव विविधता के बारे में भी अध्ययन किया जाएगा. उन्होंने बताया कि इसके तहत समुद्रीय जीव विज्ञान के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन (एडवांस मरीन स्टेशन) की स्थापना की जाएगी. इसके अलावा, थर्मल एनर्जी का अध्ययन किया जाएगा. जाहिर है कि इन तमाम तरह के अध्ययन, सर्वेक्षण और अन्य कार्यों के लिए मानव संसाधन (एचआर) की जरूरत होगी और ऐसे में देश में रोजगार के अवसर पैदा होंगे. खासकर इन विषयों में विशेषज्ञता हासिल करने वाले युवाओं के लिए नौकरी का नया रास्ता खुलेगा.
उन्होंने बताया कि इस बारे में अभी दुनिया के पांच देश अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान, चीन के पास ही तकनीक है. ऐसी तकनीक अभी मुक्त रूप से उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इस मिशन से तकनीक के विकास का रास्ता भी खुलेगा. उम्मीद जताई जा रही है कि समुद्री संसाधनों से जुड़े व्यापार के भी तमाम मौके बनेंगे.
केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने बताया कि समुद्र में 6000 मीटर नीचे कई प्रकार के खनिज मौजूद हैं. इन खनिजों के बारे में अभी तक अध्ययन नहीं हुआ है. इस मिशन के तहत खनिजों के बारे में अध्ययन और सर्वेक्षण का काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और समुद्र के जलस्तर के बढ़ने सहित गहरे समुद्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी अध्ययन किया जाएगा.
Posted by : Vishwat Sen
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