‘कर्मचारियों को नहीं निकालेंगे पर 70% सैलरी पीएम केयर्स या ESIC से दे सरकार’

देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम (MSME) ने कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों के वेतन देने में असमर्थता जाहिर करते हुए पीएम केयर्स फंड से 70 फीसदी सब्सिडी पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

By KumarVishwat Sen | April 29, 2020 6:03 PM

नयी दिल्ली : देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम (MSME) ने कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों के वेतन देने में असमर्थता जाहिर करते हुए पीएम केयर्स फंड से 70 फीसदी सब्सिडी पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में उद्यमियों ने अदालत से पीएम केयर्स फंड से 70 फीसदी की सब्सिडी उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की अपील की है.

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बता दें कि बीते 20 मार्च को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की ओर से एडवाइजरी जारी कर लॉकडाउन के दौरान निजी क्षेत्र की कंपनियों (नियोक्ताओं) को अपने कर्मचारियों को काम से नहीं निकालने और लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन देने के निर्देश दिये थे. इसके बाद गृह मंत्रालय ने करीब एक महीना पहले यानी 29 मार्च को इससे संबंधित अधिसूचना भी जारी की थी. एमएसएमई उद्यमियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में गृह मंत्रालय और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना और दिशानिर्देश को चुनौती दी गयी है.

सुप्रीम कोर्ट में 11 एमएसएमई कंपनियों ने याचिका दायर कर कहा है कि मंत्रालयों की ओर से जारी एडवाइजरी संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1) का उल्लंघन करती हैं. इन अधिसूचनाओं की वजह से निजी नियोक्ताओं को तीव्र वित्तीय और मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है. याचिका में इन अधिसूचनाओं को मनमानी और गैर कानूनी मानते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की गयी है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गयी है कि निजी कंपनियों को अपने कर्मचारियों को 70 फीसदी वेतन देने से छूट दी जाए और यह राशि सरकार कर्मचारी राज्य बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड से दी जाए. याचिका में कहा गया कि सरकार की इस तरह की अधिसूचनाओं के चलते विशेषकर एमएसएमई क्षेत्र के उद्योग जिसमें स्थायित्व था, अब इसकी वजह से उन्हें दिवालिया होने का खतरा पैदा हो गया है. इन अधिसूचनाओं के खिलाफ महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक में भी याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं.

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