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पूरे देश में अंधेरा छाने का खतरा, नहीं मिलेगी बिजली अगर मोदी सरकार ने नहीं निकाला इसका हल

coronavirus महामारी के बीच अब आम अवाम के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है. वह यह कि अगर मोदी सरकार ने सही वक्त पर फैसला नहीं लिया, तो लॉकडाउन जैसे विकट समय में देशवासियों को बिजली आपूर्ति ठप होने की वजह से ब्लैकआउट का भी सामना करना पड़ सकता है.

नयी दिल्ली : coronavirus महामारी के बीच अब आम अवाम के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है. वह यह कि अगर मोदी सरकार ने सही वक्त पर फैसला नहीं लिया, तो लॉकडाउन जैसे विकट समय में देशवासियों को बिजली आपूर्ति ठप होने की वजह से ब्लैकआउट का भी सामना करना पड़ सकता है. इसकी अहम वजह यह है कि बीते 25 मार्च से अब तक तीन चरणों में अनवरत जारी लॉकडाउन दौरान देश की बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) के रिवेन्य कलेक्शन में करीब 80 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है. सबसे बड़ी बात यह है कि रिवेन्यू कलेक्शन में भारी गिरावट दर्ज होने के कारण इन बिजली वितरण कंपनियों के पास अपने ही कर्मचारियों की सैलरी देने भर के भी पैसे नहीं हैं. यह स्थिति तब है, जबकि इन वितरण कंपनियों को बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्रों को भी कोयला और कच्चे माल की खरीद करने के एवज में मोटी रकम की दरकार है.

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हालांकि, बिजली के वितरण और उत्पादन में लगी कंपनियों को इस बात की उम्मीद है कि केंद्र सरकार की ओर से उन्हें करीब 90,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज दिया जा सकता है, लेकिन इसमें पेंच यह भी फंसता है कि अगर सरकार ने बिजली वितरण और उत्पादन में लगी कंपनियों के लिए प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा कर भी देती है, तो सरकार के फैसलों के अनुमोदन में दो से तीन हफ्ते तक का समय लग सकता है और उसके क्रियान्वयन में भी करीब-करीब इतना ही समय और लगने की संभावना है.

यानी कि अगर मोदी सरकार बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों के लिए किसी प्रकार का प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान करता भी है, तो इसे धरातल तक आते-आते करीब-करीब एक-डेढ़ महीने का वक्त लगेगा. ऐसे में, इन कंपनियों के सामने फिलहाल अपने कामगारों के वेतन भुगतान से लेकर कच्चे माल की आपूर्ति तक की जो समस्या बनी है, उसमें आशंका यह भी जाहिर की जा रही है कि कहीं वेतन भुगतान नहीं होने की स्थिति में बिजली वितरण कंपनियों के कर्मचारियों ने झंडा बुलंद कर दिया, तो देश के उपभोक्ताओं के सामने लॉकडाउन में ब्लैकआउट जैसे गंभीर खतरे का भी सामना करना पड़ सकता है.

अंग्रेजी के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने अधिकारियों के हवाले से अपनी वेबसाइट पर रिपोर्ट दी है कि लॉकडाउन के दौरान बिजली वितरण कंपनियां 20 से 25 फीसदी उपभोक्ताओं का भी बिल जमा नहीं करा पायी हैं. अधिकारियों ने कहा कि उपभोक्ताओं की ओर से बिजली बिल जमा नहीं होने की वजह से रिवेन्यू कलेक्शन में और भी गिरावट आने की उम्मीद है. इसका कारण यह है कि सरकार ने आगामी 17 मई तक के लिए लॉकडाउन को आगे बढ़ा दिया है और ऐसी स्थिति में औद्योगिक इकाइयों की ओर से नकदी बिजली बिल का भुगतान अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया गया है.

इतना ही नहीं, लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक इकाइयों के करीब-करीब बंद होने की स्थिति में बिजली की मांग में भी करीब 20 से 30 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गयी है. इसमें खास बात यह है कि देश के बिजली वितरण कंपनियों को घरेलू उपभोक्ताओं से कहीं अधिक औद्योगिक इकाइयों से आमदनी होती है और इन्हीं औद्योगिक इकाइयों में बिजली की मांग सर्वाधिक होती है.

हालांकि, बिजली वितरण कंपनियों ने बिलों के भुगतान के लिए निर्धारित तारीखों को बढ़ा दिया है और अधिकांश औद्योगिक और आवासीय उपभोक्ताओं द्वारा तय शुल्क का भुगतान को स्थगित कर दिया है. राज्य सरकारें इस बात से ज्यादा चिंतित हैं कि बिजली उत्पादक, विशेष रूप से नकदी की तंगी जूझ रहे निजी बिजली संयंत्र, बैंक गारंटी को अस्वीकार कर सकते हैं या डिस्कॉम के क्रेडिट पत्र या बिजली आपूर्ति को विनियमित करना शुरू कर सकते हैं. वितरण कंपनियों ने कुछ बिजली परियोजनाओं को भुगतान की नगण्य मात्रा का भुगतान किया है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्यों को बिजली संयंत्रों की कुल प्राप्ति 92,887 करोड़ रुपये है. इसमें से मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 80,818 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है. अधिकांश राज्यों ने केंद्र से कहा है कि वह बिजली वितरण कंपनियों को बिजली संयंत्रों को भुगतान करने में मदद करने के लिए ऋण पैकेज की जल्द से जल्द घोषणा करे, लेकिन एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि पैकेज पर चर्चा चल रही थी, क्योंकि केंद्र इस योजना के लिए कम लागत वाले फंड की उपलब्धता की खोज कर रहा है.

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