अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस और तेल की कीमत में भारी गिरावट, ONGC कर रहा त्राहि-माम

तेल एवं गैस उत्पादक कंपनी ओएनजीसी ने गैस की कीमत में भारी कमी के बीच सरकार को त्राहि-माम का संदेश भेजा है. कंपनी ने करों में कमी और गैस की कीमत तय करने और बेचने की आजादी मांगी है ताकि उसका कारोबार ठीक से चल सके.

By ArbindKumar Mishra | April 5, 2020 3:36 PM

नयी दिल्ली : तेल एवं गैस उत्पादक कंपनी ओएनजीसी ने गैस की कीमत में भारी कमी के बीच सरकार को त्राहि-माम का संदेश भेजा है. कंपनी ने करों में कमी और गैस की कीमत तय करने और बेचने की आजादी मांगी है ताकि उसका कारोबार ठीक से चल सके.

कंपनी का कहना है कि देश में पैदा खनिज गैस का दाम कम होने से उसके लिए कारोबार चला पाना कठिन हो गया है और इसका उसकी निवेश योजनाओं पर असर पड़ सकता है. कंपनी के इस आग्रह की सीधी जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 20 डॉलर प्रति बैरल नीचे तक आ चुकी हैं.

वहीं देश में प्राकृतिक गैस की कीमतें 2.39 डालर प्रति यूनिट (प्रति दस लाख मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट) के देस साल के न्यूनत स्तार पर रखी गयी हैं. इससे ओएनजीसी को हर महीने नकदी का नुकसान उठाना पड़ रहा है. सूत्रों ने बताया कि गैस की कीमतें उसकी लागत से भी कम हैं. ऐसे में ऊंचे कर से सिर्फ गैस पर ही नकदी का नुकसान नहीं हो रहा बल्कि तेल के उत्पादन पर भी असर पड़ा है.

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने पिछले महीने सरकार को लिखा था कि यदि कच्चे तेल की कीमत 45 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ जाएं तो तेल पर लगाए जाने वाले उपकर को हटा लिया जाए.

इसके अलावा कंपनी ने राज्य सरकारों को कीमत पर दी जाने वाली 20 प्रतिशत रॉयल्टी को भी आधी करने की मांग रखी थी. मौजूदा वक्त में कंपनी को जो तेल की कीमत मिलती है उस पर सरकार को 20 प्रतिशत का मूल्य-उपकर देना होता है. साथ ही जिस राज्य में वह तेल खनन का काम करती है उस राज्य सरकार को कच्चे तेल की कीमत पर 20 प्रतिशत की रॉयल्टी देनी होती है.

सूत्रों ने बताया कि ओएनजीसी घरेलू स्तर पर उत्पादित प्राकृतिक गैस की कीमत तय करने के लिए अमेरिका और रूस जैसे अधिक गैस उत्पादन करने वाले देशों के फार्मूले को अपनाना चाहती है. इस फार्मूले के आधार पर अप्रैल से गैस की कीमत 2.39 डॉलर प्रति दस लाख ब्रिटिश थर्मल यूनिट होगी.

यह पिछले दस साल में गैस कीमतों का सबसे निचला स्तर है. सूत्रों ने बताया कि तेल खनन कंपनियों पर लगने वाला उपकर समय के साथ तीन डॉलर से बढ़कर 13 डॉलर हो गया है. इससे चालू और नयी तेल एवं गैस परियोजनाओं पर दबाव है.

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