नयी दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी को लेकर देश में लागू लॉकडाउन के बीच बीते 27 मार्च को कर्ज के किस्त चुकाने के लिए तीन महीने की मोहलत देने को लेकर रिजर्व बैंक की ओर से जारी सर्कुलर पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गयी है. रिजर्व बैंक की ओर से जारी सर्कुलर में देश के तमाम बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बीते 1 मार्च से मई तक कर्ज के किस्तों के भुगतान में मोहलत देने की अनुमति दी है, जबकि कर्ज के किस्त भुगतान में मोहलत कर्ज लेने वालों की ओर से आवेदन के जरिये आग्रह किये जाने के बाद दी जाती है.
इसे भी देखें : COVID-19 संक्रमितों की पहचान की सामूहिक जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
रिजर्व बैंक की ओर से जारी सर्कुलर में कहा गया था कि इस तरह के ऋणों के लिए पुनर्भुगतान अनुसूची भी अधिवास अवधि के तीन महीने बाद बोर्ड द्वारा स्थानांतरित कर दी जाएगी. आरबीआई ने कहा था कि ब्याज अवधि के दौरान ऋण के बकाया हिस्से पर रोक जारी रहेगी.
अधिवक्ता अमित साहनी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि आरबीआई का सर्कुलर ‘एक चश्मदीद’ है, क्योंकि यह बताता है कि अधिस्थगन अवधि के दौरान ब्याज लगता रहेगा और यह नियमित ईएमआई के साथ अतिरिक्त ब्याज का भुगतान करने में कोई मायने नहीं रखता.
याचिका में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक को यह स्पष्ट करने के लिए दिशा-निर्देश की अपील की गयी है कि किसी भी बैंक और वित्तीय संस्थान द्वारा अधिस्थगन अवधि के लिए बकाया राशि पर कोई ब्याज और संचित ब्याज नहीं लिया जाएगा.