जीएसटी ( goods and services tax) को लेकर कई तरह के पेंच अब भी है. किन लोगों को यह टैक्स भरना जरूरी है ? किन्हें छूट मिलती है ? इससे जुड़े कई सवाल हैं जिसके जवाब आज हम अपने एक्सपर्ट से जानेंगे. जीएसटी से जुड़े सभी सवालों के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के चेयरमैन सीए प्रवीण शर्मा और सेक्रेटरी सीए प्रभात कुमार से.
यह अप्रत्यक्ष कर है. यह व्यापारी पर नहीं पड़ता है यह खरीदार के ऊपर पड़ता है. जीएसटी से पहले वैट, उत्पाद कर, सेवा कर इस तरह के 16 से 17 कर लगते थे और यह राज्यों के आधार पर बदलता भी था. कुछ ऐसे कर थे जिस पर केंद्र का अधिकार था, कुछ ऐसे थे जिस पर राज्य सरकार का अधिकार था और कुछ ऐसे थे जिस पर दोनों का अधिकार था. जीएसटी आने के बाद अब केंद्र और राज्य सरकार एक साथ टैक्स लगाती है.
जीएसटीएन 15 अंकों को पैन पर बेस्ट नंबर है. पहले के दो कोड राज्य के हैं जैसे झारखंड का 20 है. इसके बाद दस अंकों का पैन नंबर होगा. इसके बाद आप जितने नंबर पर भी रजिस्ट्रेशन कर रहा है वो होगा अगर पहले नंबर है तो एक होगा. इसके बाद अंक और अल्फाबेट होगा.
अब सवाल है किसे लेना है. इसे टर्न ओवर के आधार पर बांटा गया है. अगर किसी व्यक्ति का साल में टर्न ओवर 40 लाख से ज्यादा है तो उसे जीएसटीएन नंबर लेना होगा. अगर कोई सेवा के क्षेत्र में है( सर्विस) तो उसके लिए 20 लाख का टर्न ओवर तय है इससे ज्यादा होने पर जीएसटीएन नंबर लेना होगा.
इससे यह पता चलता है कि कहां से आप गुड्स सप्लाई करते हैं यह पता चलता है. जैसे अगर आप झारखंड से हैं और खरीदार भी झारखंड का है तो इसमें सीजीएसटी और एसजीएसटी लगेगा.
सीजीएसटी ( सेंट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स ) और एसजीएसटी ( स्टेट एंड सर्विसेज टैक्स) है. अगर किसी स्टेट के अंदर ही व्यापार हो रहा है तो 50 फीसद हिस्सा स्टेट का और 50 फीसद हिस्सा केंद्र का. अब आईजीएसटी (इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विस टैक्स) अगर इसमें एक राज्य के व्यापारी दूसरे राज्य में हैं और इनके बीच व्यापार होता है, तो राज्यों का भी हिस्सा होगा.
जो जरूरी चीजें हैं, जैसे खाद्य पदार्थ, दुध जो बेहद जरूरी हैं सभी के लिए वो जीएसटी के दायरे से बाहर हैं. इसके अलावा कृषि से जुड़ी चीजें अगर कोई किसान चावल उपजाता है उसे बेचता है तो उस पर टैक्स नहीं है लेकिन कोई व्यापारी किसान से खरीद कर उसे बेहतर बनाता है, अच्छी पैकिंग करके, ब्रैंड बनाकर बेचता है तो उस पर टैक्स लग जाता है. पेट्रोल, डीजल, अलकोहल, जमीन, स्टांप ड्यूटी, हेल्थ से जुड़ी सुविधाएं बाहर है, शिक्षा से संबंधित सुविधा मिल रही है तो इस पर भी जीएसटी नहीं लगती है.
यह उन व्यापारियों के लिए है ताकि वह सरल तरीके से इसे भर सकें. अगर किसी व्यापारी का टर्न ओवर 1.5 करोड़ से नीचे हैं. अगर आप अपने राज्य के अंदर ही व्यापार कर रहे हैं, तो इसका लाभ ले सकते हैं. इस स्कीम के तहत आपको साल भर में चार रिटर्न भरना होगा. ऐसे व्यापारी को अपने रसीद पर लिखना होगा कि वह टैक्स नहीं लेंगे.
किसी भी सामान खऱीदने से पहले आपको पक्के बिल की मांग जरूर करनी है. इस बिल में जीएसटीएन नंबर, सप्लायर का, खरीदार का नाम, पता. इसमें कितना फीसद के हिसाब से आपसे कर लिया गया इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए. आपको देखना होगा कि आपने जो सामान खरीदा है उसमें कितने फीसद जीएसटी लगी है.
जीएसटी में टैक्स के दो हिस्से हैं. एक इनपुट है और दूसरा आउटपुट है. कोई व्यापारी अगर सामान खरीदता है तो उस पर लगने वाला टैक्स इनपुट हो गया. अब कारोबारी ने सामान बेचा तो आउटपुट टैक्स लगाया. अब मैंने सामान खरीदते वक्त सरकार को पहले ही टैक्स दिया है. अब सामान बेचने के अंतर के बीच का टैक्स मुझे देना है.
सेस लग्जरी उत्पादों पर लगता है जो आवश्यक नहीं है या हानिकारण है उन पर लगता है. जैसे तंबाकू उत्पाद में 170 फीसद का टैक्स है. महंगी गाड़ियों में सेस लगता है.
इसकी शिकायत के लिए कई जगहें जहां शिकायक कर सकते हैं. केंद्र सरकार की आधिकारिक वेबसाइट, सीपी ग्राम भी एक जगह है जहां शिकायत कर सकते हैं इसकी देखरेख सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा की जा सकती है. इसके अलावा राज्य सरकार में शिकायत के लिए वेबसाइट हैं. कमिश्नर के पास शिकायत की जा सकती है
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.