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दो बैंकिंग कंपनियां अधिनियम में संशोधन जल्द कर सकती है सरकार
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देश में दो चरणों में बैंकों का किया गया था राष्ट्रीयकरण
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मानसून सत्र या फिर उसके बाद संसद में पेश होगा संशोधन
PSU Bank Privatization : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार इस साल दो अधिनियमों में संशोधन ला सकती है. उम्मीद है कि इन संशोधनों को मानसून सत्र में या फिर उसके बाद पेश किया जा सकता है. सूत्रों ने कहा कि निजीकरण के लिए बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण व हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 और बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण व हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 में संशोधन आवश्यक होगा.
सूत्रों का कहना है कि इन अधिनियमों की वजह से देश के बैंकों का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण हो गया और बैंकों के निजीकरण के लिए इन कानूनों के प्रावधानों को बदलना होगा. जैसा कि सरकार ने बजट सत्र के लिए विधायी कार्यों की सूची पहले ही घोषित कर चुकी है. उम्मीद है कि इन संशोधनों को मानसून सत्र में या बाद में पेश किया जा सकता है.
चालू बजट सत्र में वित्त विधेयक 2021, 2020-21 के लिए अनुदानों की अनुपूरक मांगों व संबंधित विनियोग विधेयक, नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट विधेयक 2021 और क्रिप्टोकरेंसी व आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विनियमन विधेयक 2021 सहित 38 से अधिक विधेयकों को पेश करने की योजना है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महीने की शुरुआत में बजट 2021-22 पेश करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने की घोषणा की थी.
गौरतलब है कि सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के जिन बैंकों के निजीकरण के लिए चयनित किया है, उनमें बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं. मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन चार सरकारी बैंकों में से दो का निजीकरण वित्त वर्ष 2021-22 में किया जा सकता है. हालांकि, सरकार ने अभी इन बैंकों के नाम की औपचारिक घोषणा नहीं की है.
इस रिपोर्ट में 3 सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि केंद्र सरकार बैंक निजीकरण के लिए फिलहाल छोटे बैंकों से कदम आगे बढ़ा सकती है, क्योंकि इससे सरकार को यह अंदाजा हो जाएगा कि बैंकों के निजीकरण में उसे किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, यह कदम मोदी सरकार से लिए जोखिम से भरा हुआ है.
चूंकि, बैंक निजीकरण से लोगों की नौकरियां जाने का खतरा है. इस वजह से बैंक यूनियन इसका विरोध कर रहे हैं. सूत्रों ने यह भी बताया कि आने वाले वर्षों में बड़े बैंकों को भी बेचने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है. हालांकि, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में सरकार अपनी बड़ी हिस्सेदारी रखना जारी रखेगी, क्योंकि इसके जरिये देश के ग्रामीण इलाके में कई सरकारी योजनाएं चलाई जाती हैं.
सूत्रों ने बताया कि बैंकों के निजीकरण की प्रक्रिया 5 से 6 महीने में शुरू होने की उम्मीद है. सरकारी बैंकों का निजीकरण मोदी सरकार के लिए जोखिम भरा फैसला है, क्योंकि यह लोगों के रोजगार से जुड़ा मामला है. बैंक यूनियन सरकार के इस फैसले के खिलाफ सोमवार यानी 15 फरवरी से ही दो दिवसीय हड़ताल पर हैं.
सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार को डर है कि कहीं इस मामले में भी किसान आंदोलन जैसा विरोध नहीं झेलना पड़े. इसलिए, सरकार पहले मध्यम दर्जे के बैंकों का निजीकरण करेगी, जहां काम करने वाले लोगों की संख्या कम है. बैंकिंग क्षेत्र में सरकार की बड़ी हिस्सेदारी है, जिसमें हजारों कर्मचारी काम करते हैं. निजीकरण राजनीतिक रूप से बहुत जोखिम वाला काम है, क्योंकि इससे रोजगार का खतरा पैदा हो सकता है.
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Posted By : Vishwat Sen
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