आरबीआई अगले सप्ताह होने वाली द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक में नीतिगत दरों को मौजूदा स्थिति में रख सकती है. यह लगातार आठवीं बार होगा जब इसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं होगा. केंद्रीय बैंक ने आखिरी बार मई, 2020 में रेपो दर को 0.40 फीसदी घटाकर चार फीसदी किया था.
देश में कोरोना संक्रमण की बाद आये आर्थिक हालात पर नियंत्रण के लिए सरकार कई तरह की कोशिश कर रही है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मीडिया के सामने इन मुद्दों को लेकर गंभीरता दिखायी है. ध्यान रहे कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक 6 अक्तूबर से शुरू होने वाली है.
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नीतिगत दरों में बदलाव ना करने की चर्चा तेज है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि केंद्रीय बैंक पर महंगाई को काबू में रखने का दबाव है. चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई 5 फीसदी के आसपास रहने की संभावना जतायी गयी है. सबीआई चेयरमैन दिनेश खारा ने हाल ही में ब्याज दरों के यथावत रहने का अनुमान जताया था.
उन्होंने बताया है कि वृद्धि दरों में सुधार देखा जा रहा है. ऐसे में ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की संभावना कम है. डेलॉय इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि आरबीआई पर अपने रुख में बदलाव का दबाव है. कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में मौद्रिक नीति की वजह से महंगाई बढ़ रही है. दाम में इजाफा हो रहा है। ऐसे में केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों को यथावत रख सकता है.
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