RBI ने REPO Rate 6.5% पर रखा बरकरार, जानें आपके लोन के ईएमआई पर क्या पड़ेगा प्रभाव
RBI on Repo Rate: इससे पहले फरवरी 2023 में आरबीआई ने रेपो रेट में बदलाव करते हुए इसे 6.5 प्रतिशत कर दिया था. बता दें कि रिजर्व बैंक के द्वारा पिछले साल छह बार में 2.50 प्रतिशत तक रेपो रेट में वृद्धि की गयी थी.
RBI on Repo Rate: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India) के द्वारा द्विमासिक समीक्षा के तहत मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक का आयोजन किया जा रहा है. बैठक की शुरूआत तीन अक्टूबर को हुई थी. आज दिन में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के फैसलों की दी. शीर्ष बैंक ने आज फिर से रेपो रेट को बरकरार रखा है. ये लगातार चौथी बार बैंक ने रेपो रेट को बरकरार रखा है. इससे पहले फरवरी 2023 में आरबीआई ने रेपो रेट में बदलाव करते हुए इसे 6.5 प्रतिशत कर दिया था. बता दें कि रिजर्व बैंक के द्वारा पिछले साल छह बार में 2.50 प्रतिशत तक रेपो रेट में वृद्धि की गयी थी. जानकारी देते हुए RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि प्राइवेट सेक्टर में CAPEX बढ़ा है. कंस्ट्रक्शन गतिविधियों में तेजी बनी हुई है कमर्शियल सेक्टर क्रेडिट फ्लो 10.6 लाख करोड़ रहा है. इसके साथ ही, देश में ग्रामीण मांग में सुधार देखने को मिला है. उन्होंने बताया कि MSF रेट 6.75% पर बरकरार रखा गया है. जबकि SDF रेट 6.25% पर बरकरार है. जुलाई में टमाटर, हरी सब्जियों के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ी है. ग्लोबल आउटलुक से महंगाई दरों पर असर देखने को मिला. खरीफ फसलों में अनिश्चितता से महंगाई प्रभावित हुई है. हालांकि, बैंक के फैसले से आमलोगों को बड़ी राहत मिली है. उनके लोन की ईएमआई में कोई वृद्धि नहीं होने वाली है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इसे लेकर क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी के जोशी ने कहा कि मुझे लगता है कि अगस्त में पिछली एमपीसी बैठक और इस समय के बीच मुद्रास्फीति बढ़ गई है, वृद्धि मजबूत बनी हुई है, जबकि वैश्विक कारक इस अर्थ में थोड़े प्रतिकूल हो गए हैं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व अब भी अपने रुख में आक्रामक है. ऐसे में आरबीआई द्वारा नीतिगत दर को यथावत रखने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि आरबीआई वृद्धि की मजबूती देखते हुए मुद्रास्फीति पर ध्यान बढ़ाएगा. कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर सावधानी से नजर बनाए रखने की जरूरत है.
वैश्विक व्यापक आर्थिक परिदृश्य में रहें सतर्क
बंधन बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल ने कहा कि वृद्धि को लेकर अनिश्चितताओं के कारण वैश्विक व्यापक आर्थिक परिदृश्य जटिल बना हुआ है. यह एमपीसी को सतर्क रहने के लिए प्रेरित करेगा, और दरों के लंबे समय तक ऊंचे बने रहने की संभावना है. क्रेडिटवाइज कैपिटल के संस्थापक और निदेशक आलेश अवलानी ने कहा कि अगस्त के बाद से कृषि वस्तुओं की कीमतों में नरमी ने एमपीसी को कुछ राहत दी है, जिससे फिलहाल रेपो दर में और बढ़ोतरी की संभावना नहीं है. टीटागढ़ रेल सिस्टम्स के वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक उमेश चौधरी ने कहा कि सरकार की नीतियों और पूंजीगत व्यय ने निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा दिया है. विनिर्माण क्षेत्र के लिए बहुत सारे अवसर हैं, जिसका अर्थ है कि निजी क्षेत्र को पूंजीगत व्यय करना होगा. इसके लिए, ब्याज दर व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी.
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महंगाई के आकड़े एक नजर में देखें
जुलाई में इससे पहले MPC की बैठक का आयोजन किया गया था. इसके बाद, अगस्त के महीने में रिटेल महंगाई में गिरावट देखने को मिला था. खुदरा महंगाई घटकर 6.83 प्रतिशत पर आ गयी. जबकि, जुलाई में खुदरा महंगाई 7.44 प्रतिशत थी. महंगाई में गिरावट सब्जियों के दाम कम होने के बाद आयी थी. वर्तमान में देश में महंगाई RBI के ऊपरी लिमिट 6 प्रतिशत पर है. जबकि, अगस्त के महीने में थोक महंगाई -0.52 प्रतिशत पर पहुंच गया था. जुलाई में ये -1.36% थी. थोक महंगाई अगस्त के महीने में लगातार पांचवें महीने शून्य से नीचे रही थी. इस बीच खाद्य महंगाई 7.75% से घटकर 5.62% पर आ गयी.
महंगाई से लड़ने में कैसे मदद करती है रेपो रेट
बढ़ती महंगाई को काबू में करने का बेहद असरदायक हथियार है. जब भी महंगाई बढ़ने लगती है तो शीर्ष बैंक रेपो रेट को बढ़ाकर बाजार में कैश के फ्लो को कम कर देता है. एक तरह से ऐसे भी समझें कि रेपो रेट ज्यादा होता है तो रिजर्व बैंक से अन्य बैंकों को मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है. इससे बैंक अपने ग्राहकों को महंगा कर्ज देने लगते हैं. इससे फ्लो ऑफ मनी कंट्रोल हो जाता है. अब इसको दूसरे तरह से समझिए. रेपो रेट के बढ़ने से बाजार में मनी फ्लो कम हो जाता है. मनी फ्लो कम होते ही डिमांड उल्टा असर पड़ता है यानी कम हो जाता है. डिमांड और महंगाई डायरेक्टली प्रोपोर्शनल होती है. डिमांड कम तो महंगाई कम. इसी तरह अर्थव्यवस्था को बूरे दौर से निकालने के लिए बाजार में मनी फ्लो बढ़ दिया जाता है. ऐसी स्थिति में बैंक रेपो रेट को कम कर देती है. बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता होते ही, बाजार में मनी फ्लो बढ़ जाता है.
क्या है रेपो रेट
रेपो रेट (Repo Rate) एक आर्थिक शब्द है जो वित्तीय बाजार में उपयोग होता है. यह शब्द भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और अन्य भारतीय बैंकों द्वारा व्यापार बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से उधार लेने के लिए आवश्यक रिपोर्टेबल संलग्नक (Collateral) के विरुद्ध उचित ब्याज दर का नाम है. RBI रेपो रेट को बदलते हैं ताकि वित्तीय बाजार में रुपये की उपलब्धता और उधार लेने की दर पर प्रभाव पड़े. अगर रेपो रेट बढ़ाई जाती है तो वित्तीय संस्थानों को RBI को ज्यादा ब्याज देने की जरूरत होती है, जिससे वित्तीय संस्थानों को उधार लेने में अधिक खर्च होता है और उसे अपने ग्राहकों को भी उधार देने में अधिक खर्च होता है. इससे ऋण लेने में कठिनाई होती है और दर द्वारा उधार लेने की संभावना कम हो जाती है. वहीं, अगर रेपो रेट को घटाया जाता है तो वित्तीय संस्थानों को RBI को कम ब्याज देने की जरूरत होती है, जिससे उधार लेने की दर कम होती है और उधार लेने के लिए अधिक आकर्षक होता है. इससे ऋण लेने में आसानी होती है और वित्तीय संस्थान ग्राहकों को भी उधार देने के लिए उपलब्ध होता है. इसलिए, रेपो रेट बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसके बदलने से बाजार के ब्याज दरों और ऋण उपलब्धता पर प्रभाव पड़ता है.
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