मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नए वित्त वर्ष 2022-23 की पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक में कर्ज को सस्ता बनाए रखने के लिए प्रमुख नीतिगत रेपो रेट को लगातार 11वीं बार 4 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है. इसके साथ ही, केंद्रीय बैंक ने रिवर्स रेपो रेट को भी 3.35 फीसदी पर रखा है, लेकिन उसने पेट्रोल-डीजल की कीमतों की वजह से महंगाई में बढ़ोतरी होने को लेकर सरकार को आगाह भी किया है. उन्होंने यह भी कहा कि इस साल भी लोगों को महंगाई से निजात नहीं मिलेगी और महंगाई दर पहले के अनुमान 4.5 फीसदी से बढ़कर 5.7 फीसदी पर रहने की उम्मीद है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मौद्रिक नीति समीति (एमपीसी) की त्रिदिवसीय बैठक में रेपो रेट को लेकर किए गए फैसलों को लेकर मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों से महंगाई बढ़ सकती है. उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में खाद्य तेलों की कीमतें ऊंची स्तर पर बनी रहेगी. उन्होंने कहा कि मजबूत रबी फसल से ग्रामीण मांग को समर्थन मिलेगा. वहीं, शहरी मांग को बढ़ावा देने में मदद के लिए संपर्क-गहन सेवाओं में तेजी आएगी. वित्त वर्ष 2022-23 में महंगाई दर पहले अनुमान 4.5 फीसदी से बढ़कर 5.7 फीसदी पर रहने की उम्मीद है.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के नतीजों की घोषणा करते हुए कहा कि मुद्रास्फीति को काबू में रखने के साथ आर्थिक वृद्धि को कायम रखने के लिए केंद्रीय बैंक ने अपने नरम रुख में थोड़ा बदलाव किया है. रिजर्व बैंक ने आखिरी बार 22 मई, 2020 को रेपो रेट में बदलाव किया था. इसके साथ ही रिवर्स रेपो दर को भी 3.35 फीसदी पर यथावत रखा गया है. रेपो दर वह दर है जिसपर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज देता है. जबकि रिवर्स रेपो दर के तहत बैंकों को अपना पैसा आरबीआई को देने पर ब्याज मिलता है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि रेपो रेट पर आरबीआई द्वारा यथास्थिति बनाए रखने के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 21 पैसे बढ़कर 75.82 पर पहुंच गया है. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें ऊंचे स्तरों पर अस्थिर बनी हुई हैं. उन्होंने कहा कि आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए विकास दर अनुमान घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया है.
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आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि जबकि महामारी स्वास्थ्य संकट से बदली जीवन शैली, आजीविका और यूरोप में संघर्ष में वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने की क्षमता है. कई विपरीत परिस्थितियों में फंसे होने के बाद हमारे दृष्टिकोण को सतर्क रहने की जरूरत है, लेकिन भारत विकास, मुद्रास्फीति और वित्तीय स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए सचेत है.
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