नयी दिल्ली : किसान संगठनों ने नये कृषि कानून को रद्द करने की मांग केंद्र सरकार से की है. वहीं, सरकार का कहना है कि किसानों को कानून के जिन प्रावधानों पर आपत्ति है. उन पर साथ बैठ कर बातचीत को सरकार तैयार है. केंद्रीय कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया कि कृषि कानून में क्या सच है. साथ ही किसानों के बीच भ्रम को लेकर उत्पन्न प्रश्नों का सच बताया है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि किसान संगठनों की पहली मांग कानून निरस्त करने की थी. सरकार का पक्ष है कि कानून के वो प्रावधान जिन पर किसानों को आपत्ति है, उन प्रावधानों पर सरकार खुले मन से बातचीत करने के लिए तैयार है. सरकार की कोई इगो नहीं है और सरकार को उनके साथ बैठ कर चर्चा करने में कोई दिक्कत नहीं है.
भ्रम : बड़े कॉर्पोरेट को फायदा और किसानों को होगा नुकसान.
सच : कई राज्यों में किसान सफलतापूर्वक बड़े कॉर्पोरेट के साथ गन्ना, कपास, चाय, कॉफी जैसे उत्पाद प्रोड्यूस कर रहे हैं. अब इससे छोटे किसानों को बड़ा फायदा होगा, उनको गारंटीड मुनाफे के साथ ही टेक्नोलॉजी और उपकरण का भी लाभ मिलेगा.
भ्रम : बड़ी कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट के नाम पर किसानों का शोषण करेंगी.
सच : करार से किसानों को निर्धारित दाम पाने की गारंटी मिलेगी, लेकिन किसान को किसी भी करार में बांधा नहीं जा सकेगा. किसान किसी भी मोड़ पर बिना किसी पैनाल्टी के करार से निकलने को स्वतंत्र होगा.
भ्रम : किसान की जमीन पूंजीपतियों को दी जायेगी.
सच : बिल में साफ निर्देशित है कि किसानों की जमीन की बिक्री, लीज और गिरवी रखना पूरी तरह से निषिद्ध है. इसमें फसलों का करार होगा, जमीन का करार नहीं होगा.
भ्रम : देश में अब मंडियों का अंत हो जायेगा.
सच : देश में मंडी व्यवस्था पहले की तरह ही जारी रहेगी.
भ्रम : किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं देने के लिए कृषि बिल साजिश है.
सच : कृषि बिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लेना-देना ही नहीं है, एमएसपी मूल्य मिलता रहा है, मिलता रहेगा.
भ्रम : कृषि बिल किसान विरोधी है.
सच : कृषि बिल किसान की आजादी है. वन नेशन-वन मार्किट से अब किसान अपनी फसल कहीं भी, किसी को और किसी भी कीमत पर बेच सकते हैं. अब किसान किसी पर भी निर्भर रहने के बदले बड़ी खाद्य उत्पादन कंपनियों के साथ पार्टनर की तरह जुड़ कर ज्यादा मुनाफा कमा पायेगा.
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