Reliance New Deal: रिलायंस ने पान-पसंद टॉफी बनाने वाली कंपनी का किया अधिग्रहण, 1942 से कैंडी बना रही ब्रांड

Reliance New Deal: भारतीय उद्योगपति मुकेश अंबानी के आधिपत्य वाली रिलायंस कंज्यूमर इन टॉफी और कैंडी को बनाने वाली रावलगांव का ट्रेडमार्क्स, रेसिपीज और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का अधिग्रहण कर लिया है.

By Madhuresh Narayan | February 12, 2024 12:05 PM
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Reliance New Deal: पान पसंद टॉफी आज भी लाखों लोगों की पसंद होगी. इस ने 1990 के दशक में बच्चों के दिलों पर लंबे समय तक राज किया है. मगर अब ये कंपनी बिकने वाली है. भारतीय उद्योगपति मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के आधिपत्य वाली रिलायंस कंज्यूमर इन टॉफी और कैंडी को बनाने वाली रावलगांव शुगर फॉर्म लिमिडेट का ट्रेडमार्क्स, रेसिपीज और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का अधिग्रहण कर लिया है. हालांकि, इस डील के मुताबिक, रावलगांव के पास कंपनी से जुड़ी हुई प्रॉपर्टी, जमीन, प्लांट, बिल्डिंग और मशीन आदि रहेगी. कंपनी के पास पान पसंद के अलावा, मैंगो मूड, कॉफी ब्रेक, टूटी फ्रूटी, चॉको क्रीम और सुप्रीम जैसे ब्रांड हैं. रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (RCPL) के साथ ये डील केवल 27 करोड़ रुपये में हुई है. इस बात की जानकारी कंपनी के तरफ से एक्सचेंज फाइलिंग में दी गयी है.

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शेयर में दिखा एक्शन

रिलायंस और रावलगांव के डील के बाद, रावलगांव के शेयर में सप्ताह के पहले कारोबारी दिन तेज उछाल देखने को मिला है. कंपनी के शेयर का भाव सुबह 11.10 बजे पांच प्रतिशत यानी 39.25 रुपये बढ़कर 824.25 रुपये पर पहुंच गया. जबकि, पिछले एक महीने में कंपनी के स्टॉक ने निवेशकों को करीब दो प्रतिशत यानी 15.95 रुपये प्रति स्टॉक का रिटर्न दिया है. जबकि, एक साल में निवेशकों को 12.97 प्रतिशत का प्रॉफिट हुआ है. पिछले 52 हफ्तों में 28 नवंबर 2023 को रावलगांव शुगर फॉर्म लिमिडेट का शेयर प्राइस 1,157.25 रुपये के रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया था. कंपनी का मार्केट कैप 28.02 करोड़ रुपये का बताया जाता है.

कॉम्पिटिशन के कारण बाजार में रुकना था मुश्किल

कंपनी ने कहा कि हाल के वर्षों में उसके लिए अपने कंफेक्शनरी व्यवसाय को बनाए रखना मुश्किल हो गया है. उसने संगठित और असंगठित दोनों खिलाड़ियों से प्रतिस्पर्धा में वृद्धि के कारण बाजार हिस्सेदारी खो दी है. साथ ही, एक्सचेंज फाइलिंग में कंपनी ने बताया कि कच्चे माल की कीमतों में इजाफा, लेबर कॉस्ट और एनर्जी कॉस्ट में तेजी से वृद्धि के कारण उसका मुनाफा लगातार गिरता जा रहा था. कंपनी के द्वारा 1942 से भारत में कैंडी का कारोबार किया जा रहा है.

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