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Repo Rate: अप्रैल 2025 तक ब्याज दर में कटौती टाल सकता है आरबीआई, जानें क्या है कारण

Repo Rate: फेडरल रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दर में कटौती से उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों के लिए चुनौतियां पैदा कर दी है. इसमें आरबीआई भी शामिल है. ऐसे में यस बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि आरबीआई अप्रैल 2025 तक ब्याज दर में कटौती को टाल सकता है.

Repo Rate: अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में 0.25% कटौती करने के बाद अब भारत में भी ब्याज दर घटाने पर चर्चा शुरू हो गई है. कयासबाजी के बीच यस बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक ( आरबीआई ) अप्रैल 2025 तक ब्याज दर में कटौती नहीं कर सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई फेडरल रिजर्व बैंक के अधिक आक्रामक मौद्रिक रुख की ओर बढ़ने के कारण अपने दर कटौती चक्र की शुरुआत को अप्रैल 2025 तक के लिए टाल सकता है. यस बैंक ने कहा, “रुपये की कमजोरी और वित्तीय बाजारों में अस्थिरता को देखते हुए हम दर कटौती चक्र की शुरुआत को अप्रैल 2025 तक के लिए टालते हुए देखते हैं.”

फेडरल रिजर्व बैंक ने उम्मीद से कम घटाई ब्याज दर

यस बैंक की रिपोर्ट में बताया गया है कि फेडरल रिजर्व बैंक ने हाल ही में अपनी नीति दर में 25 बेसिस प्वाइंटस (बीपीएस) की कमी की है. हालांकि, आगे के मार्गदर्शन ने 2025 के लिए अनुमानित दर कटौती को घटाकर केवल 50 बीपीएस कर दिया है, जबकि पहले 100 बीपीएस की उम्मीद थी. फेडरल रिजर्व बैंक के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने संकेत दिया कि दिसंबर में दरों में कटौती के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई गई थी. यह सुझाव दिया गया था कि मौद्रिक नीति प्रतिबंधात्मक बनी हुई है, यह एक तटस्थ रुख के करीब है.

आरबीआई के सामने चुनौती

रिपोर्ट में कहा गया है कि फेडरल रिजर्व बैंक के इस फैसले का वैश्विक वित्तीय बाजारों पर प्रभाव पड़ेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि फेड वॉच टूल जनवरी 2025 तक ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं करने का अनुमान लगा रहा है, जो मौद्रिक सहजता की धीमी गति का संकेत है. ब्याज दर में कटौती से अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है और अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में बढ़ोतरी हुई है. इससे उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों के लिए चुनौतियां पैदा हुई हैं, जिसमें आरबीआई भी शामिल है. यह विकास को समर्थन देने के लिए अपनी मौद्रिक नीतियों को आसान बनाने पर विचार कर रहा है.

आरबीआई को विकास और मुद्रास्फीति के बीच बनाना होगा संतुलन

रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया है कि आरबीआई को अब घरेलू विकास को समर्थन देने और मुद्रास्फीति जोखिमों को प्रबंधित करने के बीच एक जटिल संतुलन बनाने का सामना करना पड़ रहा है. भारतीय रुपये का अवमूल्यन और वित्तीय बाजार में बढ़ती अस्थिरता ने स्थिति को और जटिल बना दिया है. यस बैंक ने अपनी रिपोर्ट कहा, “आरबीआई को अब मुद्रास्फीति जोखिमों को दूर रखने के साथ-साथ घरेलू विकास अनिवार्यताओं को भी संतुलित करना होगा.”

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ब्याज दर में कटौती में देरी से भारत का विकास होगा प्रभावित

रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्याज दर में कटौती में होने वाली देरी भारत के विकास पथ को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि व्यवसायों और उपभोक्ताओं को लंबे समय तक उच्च उधार लागत का सामना करना पड़ सकता है. इससे निकट भविष्य में आर्थिक गति सीमित हो सकती है. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने पिछली लगातार 11 बार नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा है. इस बीच, आरबीआई को एक नया गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​​​मिले हैं, जो फरवरी 2025 में केंद्रीय बैंक की अगली मौद्रिक नीति पेश करेंगे.

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