Rupee At All Time Low: आयात, विदेश में शिक्षा, यात्रा हो जायेगी महंगी, जाने क्यों?

Rupee At All Time Low: रुपया की सेहत बिगड़ने का असर कई क्षेत्रों पर पड़ता है. रुपया सर्वकालिक निम्नतम स्तर पर पहुंचा, तो कई चीजें महंगी हो गयीं. विदेश जाने से लेकर वहां पढ़ाई करने तक का बिल बढ़ जायेगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 15, 2022 5:08 PM

Rupee At All Time Low: रुपया के अपने सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच जाने की वजह से कई चीजें महंगी हो जायेंगी. इसमें किसी भी चीज का आयात करना, विदेश में शिक्षा ग्रहण करना, विदेश यात्रा सब महंगी हो जायेंगी. बता दें कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत 80 रुपये के एकदम करीब पहुंचने की वजह से कच्चे तेल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों तक का आयात महंगा हो जायेगा. महंगाई की स्थिति और खराब होने की आशंका है.

निर्यातकों के लिए वरदान

रुपये की कीमत में गिरावट का प्राथमिक और तात्कालिक प्रभाव आयातकों पर पड़ता है. उन्हें समान मात्रा के लिए अधिक कीमत का भुगतान करना पड़ता है. दूसरी तरफ, निर्यातकों के लिए यह वरदान होता है, क्योंकि उन्हें डॉलर के बदले अधिक रुपये मिलते हैं. रुपये के इस तीव्र मूल्यह्रास ने भारत के लिए कुछ लाभों को लगभग खत्म कर दिया है.

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इस लाभ से वंचित हो गया है भारत

अंतरराष्ट्रीय तेल और ईंधन की कीमतों को रूस-यूक्रेन युद्ध के पूर्व-स्तर तक गिरने से जो लाभ भारत को मिलता, रुपये के मूल्य में आयी गिरावट से भारत उस लाभ से वंचित हो गया है. भारत पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन जैसी ईंधन जरूरतों को पूरा करने के लिए आयातित तेल पर 85 प्रतिशत तक निर्भर है. रुपया बृहस्पतिवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.99 रुपये के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था.

इन चीजों का आयात करता है भारत

भारत में आयात होने वाली प्रमुख सामग्रियों में कच्चा तेल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, वनस्पति तेल, उर्वरक, मशीनरी, सोना, मोती, कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर तथा लोहा एवं इस्पात शामिल हैं. ऐसे में यहां बताने की कोशिश की गयी है कि रुपये में बड़ी गिरावट आने से खर्च पर किस तरह से असर पड़ सकता है.

आयात

आयातित वस्तुओं के भुगतान के लिए आयातकों को अमेरिकी डॉलर खरीदने की जरूरत पड़ती है. रुपये में गिरावट आने से सामानों का आयात करना महंगा हो जायेगा. सिर्फ तेल ही नहीं, मोबाइल फोन, कुछ कारें और उपकरण भी महंगे होने की संभावना है.

विदेशी शिक्षा

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का मतलब होगा कि विदेशी शिक्षा अभी और महंगी हो गयी है. न केवल विदेशी संस्थानों द्वारा शुल्क के रूप में वसूले जाने वाले प्रत्येक डॉलर के लिए अधिक रुपये खर्च करने की जरूरत पड़ेगी, बल्कि रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद शिक्षा ऋण भी महंगा हो गया है.

विदेश यात्रा

कोविड-19 मामलों में गिरावट आने के बाद विदेश यात्राएं बढ़ रही हैं, लेकिन अब ये और महंगे हो गये हैं.

विदेश से धन प्रेषण

अनिवासी भारतीय (एनआरआई) जो पैसा अपने घर भेजते हैं, वे रुपये के मूल्य में और अधिक भेजेंगे. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, जून महीने में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले देश का आयात 57.55 प्रतिशत बढ़कर 66.31 अरब डॉलर पर पहुंच गया. जून 2022 में ‘वस्तुओं का व्यापार घाटा’ 26.18 अरब डॉलर हो गया, जो जून 2021 के 9.60 अरब डॉलर से 172.72 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है.

कच्चे तेल का आयात दोगुना हुआ

जून में कच्चे तेल का आयात लगभग दोगुना बढ़कर 21.3 अरब डॉलर हो गया. जून 2021 में 1.88 अरब डॉलर के मुकाबले कोयला और कोक का आयात जून 2022 में दोगुना से भी अधिक होकर 6.76 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. मौजूदा परिदृश्य में इसकी बड़े पैमाने पर उम्मीद की जा रही है कि रिजर्व बैंक प्रमुख ब्याज दरों में लगातार तीसरी बार वृद्धि कर सकता है.

और बिगड़ सकती है महंगाई की स्थिति

खुदरा मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है, जो रिजर्व बैंक के 6 प्रतिशत के सुविधाजनक स्तर से कहीं अधिक है. थोक बिक्री मूल्य आधारित सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के भी 15 प्रतिशत से ऊपर बने रहने से स्थिति और भी बिगड़ गयी है. सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा, ‘खाद्य तेल सहित सभी आयात की लागत बढ़ेगी. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमतें गिरने से रुपये के मूल्यह्रास का असर अधिक नहीं पड़ेगा.’

भारत ने रिकॉर्ड 1.17 लाख करोड़ के खाद्य तेल का किया आयात

तेल विपणन वर्ष 2020-21 में भारत ने रिकॉर्ड 1.17 लाख करोड़ रुपये के खाद्य तेलों का आयात किया था. इस साल जून में वनस्पति तेलों का आयात 1.81 अरब डॉलर का हुआ, जो वर्ष 2021 में इसी महीने की तुलना में 26.52 प्रतिशत अधिक है. उर्वरक के मामले में रुपये के मूल्यह्रास के कारण वैश्विक बाजारों में प्रमुख कृषि सामग्रियों की उच्च कीमतों के कारण पिछले वर्ष में 1.62 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले इस वित्त वर्ष में सरकारी सब्सिडी खर्च बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है.

मुद्रास्फीति को संभालना होगा मुश्किल

निर्यातकों की शीर्ष संस्था फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 80 के स्तर को छूने से भारत के आयात खर्च बढ़ेगा और मुद्रास्फीति को संभालना और भी मुश्किल हो जायेगा. सहाय ने कहा, ‘आयातित मध्यवर्ती वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी और इससे व्यवसायों की विनिर्माण लागत बढ़ेगी, जो उस लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डालेंगे, जिससे माल की कीमत बढ़ेगी.

चालू खाता घाटा बिगड़ने की आशंका

सहाय ने कहा, ‘जो लोग अपने बच्चों को शिक्षा के लिए विदेश भेजना चाहते हैं, उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ेगा क्योंकि मूल्यह्रास के कारण यह काम करना महंगा हो जायेगा.’ वित्त मंत्रालय की बृहस्पतिवार को जारी एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि महंगा आयात और कम माल निर्यात के कारण चालू वित्त वर्ष में भारत के चालू खाते का घाटा बिगड़ने की आशंका है.

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