शहरी बाबुओं के पेट भरने में खुद भूखे रह जाते हैं ग्रामीण, गांवों में महंगाई चरम पर

Inflation: ग्रामीण इलाकों में फसलों को होने वाले नुकसान से किसानों की आमदनी घटी है. वे शहरी खरीदारों को खाद्य पदार्थ बेचने के लिए अधिक प्रयास कर रहे हैं. इससे रिटर्न अधिक हो सकता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कम आपूर्ति रह जाती है. इससे कीमतें बढ़ जाती हैं.

By KumarVishwat Sen | June 26, 2024 12:38 PM
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Inflation: कोरोना महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था भले ही पटरी पर लौट गई है, लेकिन ग्रामीण भारत में महंगाई पीछा नहीं छोड़ रही है. विदेशी ब्रोकरेज कंपनी एचएसबीसी की रिपोर्ट की मानें, तो गांव के लोगों को महंगाई सबसे अधिक परेशान कर रही है. खाद्य पदार्थों की तेजी से ऊंचाई छूती कीमतों की वजह से भारत के ग्रामीण इलाकों में महंगाई अपने चरम पर है. एचएसबीसी के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि शहरी कंज्यूमर्स के मुकाबले ग्रामीण उपभोक्ता महंगाई से सबसे अधिक प्रभावित हैं. एचएसबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों के नुकसान होने से किसानों की आमदनी घटी है और वे शहरी बाबुओं के पेट भरने के फेर में खुद के इस्तेमाल वाले खाद्य पदार्थों को शहरों में बेच रहे हैं. इससे गांवों में आपूर्ति घटी है और महंगाई चरम पर पहुंच गई है.

फसलों के नुकसान और पशुओं की मौत से बढ़ रही महंगाई

एचएसबीसी की एक रिपोर्ट में कहा कहा गया है कि जिस तरह अर्थव्यवस्था में ‘के-आकार’ का पुनरुद्धार यानी कुछ क्षेत्रों में तेजी और कुछ में नरमी देखने को मिला था, उसी प्रकार की स्थिति महंगाई के मामले में भी दिखाई दे रहा है. एचएसबीसी के मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजल भंडारी ने रिपोर्ट में मौजूदा भीषण गर्मी का हवाला दिया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि एक ओर जहां खाद्य वस्तुओं की कीमतें ऊंची हैं, वहीं मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति में नरमी की स्थिति भी बनी हुई है. इसका कारण फसल को होने वाले नुकसान और पशुओं की मृत्यु दर है. मुख्य मुद्रास्फीति में खाद्य वस्तुओं और ईंधन की कीमतों के प्रभाव को शामिल नहीं किया जाता.

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती का असर नहीं

रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने ईंधन की कीमतों में कटौती करके मदद का हाथ बढ़ाया है, लेकिन आमतौर पर गांवों में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी का इस्तेमाल शहरों की तरह नहीं होता. इसके कारण ग्रामीण मुद्रास्फीति शहरी की तुलना में अधिक है. रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति की स्थिति अधिक असमंजस वाली लगती है. इसका कारण यह है कि आदर्श रूप से हर किसी के मन में यह आएगा कि जब खाद्यान्न का उत्पादन गांवों में होता है, तो फिर वहां शहरों में तुलना में महंगाई कम होनी चाहिए.

शहरी बाबुओं को खाद्य पदार्थ परोस रहे हैं ग्रामीण

ग्रामीण इलाकों में फसलों को होने वाले नुकसान से किसानों की आमदनी घटी है. वे शहरी खरीदारों को खाद्य पदार्थ बेचने के लिए अधिक प्रयास कर रहे हैं. इससे रिटर्न अधिक हो सकता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कम आपूर्ति रह जाती है. इससे कीमतें बढ़ जाती हैं और महंगाई तेजी पकड़ लेती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में बंदरगाहों से खाने की मेज तक सामान पहुंचाने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा है. इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें कम करने में मदद मिलती है.

बारिश पर टिकी हैं सबकी निगाहें

ब्रोकरेज कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सबकी निगाहें बारिश पर टिकी हुई हैं. इस साल अगर बारिश सामान्य होती है, तब शायद आरबीआई रेपो रेट में जल्दी कटौती नहीं करेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जुलाई और अगस्त में बारिश सामान्य नहीं होती है, तो गेहूं और दालों के कम भंडार को देखते हुए 2024 में खाद्यान्न के मोर्चे पर स्थिति पिछले साल के मुकाबले खराब हो सकती है.

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जून में सामान्य से 17 फीसदी कम बारिश

रिपोर्ट में कहा गया है कि जून में अब तक बारिश सामान्य से 17 फीसदी कम रही है. उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में 63 फीसदी कम बारिश हुई है, जहां भारत का सबसे ज्यादा अनाज पैदा होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि बारिश सामान्य हो जाती है, तो महंगाई में तेजी से कमी आ सकती है और आरबीआई नीतिगत दर में कटौती करने में सक्षम होगा और मार्च, 2025 तक इसमें 0.5 फीसदी की कमी हो सकती है.

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