Tax on Satta Matka Lottery: अगर आपको सट्टा मटका और सट्टा किंग खेलने का शौक है या फिर लॉटरी लगाने का चस्का है और आप सट्टा मटका या फिर लॉटरी से पैसा पीट रहे हैं, तो सावधान हो जाइए. सट्टा मटका, सट्टा किंग या लॉटरी से कमाए गए पैसों पर आयकर विभाग यानी आईटी डिपार्टमेंट की पैनी नजर होती है और वह ऐसे लोगों को झट से नाप लेता है. क्योंकि, आप अवैध और गैर-कानूनी तरीके से पैसा कमा रहे हैं और आप अपनी कमाई पर टैक्स भी नहीं भर रहे हैं. देश में सट्टे में पैसा लगाना, सट्टा खेलवाना, जुआ खेलना और जुआ खेलवाना गैर-कानूनी काम है. वहीं, किसी भी लॉटरी से की गई कमाई पर भी टैक्स देना होता है, चाहे वह सबसे बड़ा टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) ही क्यों न हो. केबीसी से जीती गई रकम पर भी टैक्स लगता है और गेम जीतने वाले को टैक्स का पैसा काटकर बाकी रकम का भुगतान किया जाता है.
प्राइजमनी पर टैक्स चुकाना जरूरी
सट्टा मटका, सट्टा किंग, लॉटरी, गेम शो या ऑनलाइन गेमिंग में पैसे जीत कर हासिल करने वाली प्राइजमनी पर भी टैक्स देना पड़ता है. सरकार इनसे होने वाली कमाई पर एक निश्चित रकम टैक्स के तौर पर वसूल करती है. नियमों के अनुसार, देश में होनेवाली लगभग हर तरह की आमदनी या इनकम टैक्स के दायरे में आती है और सरकार उस पर एक निर्धारित रकम टैक्स के रूप में वसूलती है.
क्या सट्टा मटका में जीती गई रकम पर भी टैक्स लगता है?
इनकम टैक्स या आयकर के नियमों के अनुसार, किसी भी लॉटरी, गेम शो, क्विज शो, प्रतियोगिता आदि में जीती गई रकम पर कानूनन टैक्स चुकाना होता है. चाहे वह सट्टा मटका का खेल हो, कोई लॉटरी हो या इन दिनों टीवी पर कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) गेम शो क्यों न हो. इसी तरह के अनगिनत गेम शो, ऑनलाइन बेटिंग गेम आदि के विज्ञापन आप सोशल मीडिया पर अक्सर देखते होंगे. सरकार इनसे बचने की सलाह तो देती है, लेकिन दूसरी तरफ इस पर टैक्स लगाकर राजस्व भी वसूलती है. इस तरह के लेनदेन को फिलहाल जीएसटी में के दायरे में लाने पर विचार चल रहा है.
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आयकर की किस धारा के तहत लॉटरी पर टैक्स लगता है?
लॉटरी या किसी गेम में कोई रकम या पुरस्कार जीतने पर इनकम टैक्स एक्ट 1961 का सेक्शन 194बी लागू होता है. इसके अनुसार, किसी प्रतियोगिता में जीती गई राशि अगर 10 हजार रुपये से ज्यादा है, तो इसपर पहले टीडीएस कटेगा और इससे बची प्राइजमनी जीतनेवाले को मिलेगी. लॉटरी या प्रतियोगिता में जीती गई रकम या वस्तु की कीमत 10 हजार रुपये से अधिक होने की स्थिति में उस पर 30 प्रतिशत टैक्स कटता है. इसके अलावा, इसपर 4 प्रतिशत का सरचार्ज भी कटता है. यह कटौती किसी भी हाल में रिफंडेबल नहीं है. आयकर की धारा 194 बी और 194 बीबी में यह बात बतायी गई है.
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