नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक के 2018 के एक सर्कुलर को रद्द करते हुए बैंकों और वित्तीय संस्थानों को क्रिप्टो करेंसी से संबंधित सेवाएं मुहैया करने की इजाजत दे दी. क्रिप्टोकरेंसी डिजिटल या आभासी मुद्राएं हैं, जिनमें मुद्रा इकाइयों के बनाने और फंड के लेन-देन का सत्यापन करने के लिए एन्क्रिप्शन तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है और यह व्यवस्था केंद्रीय बैंक से स्वतंत्र रहकर काम करती है. न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के सर्कुलर को रद्द किया जाता है.
आरबीआई के छह अप्रैल, 2018 के सर्कुलर के अनुसार, केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित संस्थाओं पर आभासी मुद्राओं से संबंधित कोई भी सेवा प्रदान करने पर रोक है. पीठ ने कहा कि रिट याचिका को स्वीकार किया जाता है और छह अप्रैल, 2018 के सर्कुलर को खारिज कर दिया गया है. पीठ ने अपने 180 पन्नों के आदेश में कहा कि आरबीआई का लगातार यह कहना है कि उसने आभासी मुद्रा पर रोक नहीं लगायी है. दो मसौदा विधेयकों सहित कई समितियों के कई प्रस्तावों के बावजूद भारत सरकार कोई फैसला नहीं कर सकी. दोनों मसौदा विधेयकों में स्थिति एकदम विपरीत रही है. ऐसे में, किये गये उपाय को संतुलित ठहराना हमारे लिए संभव नहीं है.
अदालत ने आरबीआई के सर्कुलर को चुनौती देने वाली याचिका पर यह फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएमएआई) ने अपनी दलील में कहा कि आरबीआई ने अर्थव्यवस्था पर क्रिप्टो करेंसी के असर को लेकर कोई अध्ययन किये बिना सिर्फ नैतिकता के आधार पर उसे प्रतिबंधित किया है.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि रिजर्व बैंक ने उसके नियमन के दायरे में आने वाली सभी इकाइयों को किसी व्यक्ति अथवा उद्यम को आभासी मुद्रा में सेवाएं देने से रोक लगायी है. रिजर्व बैंक ने 2013 में एक परामर्श जारी करते हुए आभासी मुद्रा के इसतेमाल, उसे रखने और कारोबार करने वालों को सतर्क करते हुए इसमें लेन-देन के संभावित जोखिम के प्रति आगाह किया था.
इससे पहले शीर्ष अदालत ने तीन जुलाई, 2018 को आईएमएआई की याचिका पर सुनवाई के दौरान आरबीआई के सर्कुलर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और इस संबंध में आरबीआई, वित्त मंत्रालय और केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय से जवाब मांगा था.
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