Service Charge Row: होटल और रेस्टोरेंट को दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से राहत दी गयी है. कोर्ट ने इन्हें राहत देते हुए अगली सुनवाई तक सर्विस चार्ज लगाने की अनुमति दे दी है. मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी. यही नहीं कोर्ट ने केंद्र सरकार से सर्विस चार्ज को लेकर जारी दिशानिर्देश पर रोक लगाने वाले अंतरिम आदेश से राहत के लिए एकल न्यायाधीश की पीठ से संपर्क करने को कहा.
होटल और रेस्टोरेंट की बात करें तो ये ग्राहकों से बिल के अलावा 5-10 फीसदी सर्विस चार्ज वसूलते हैं. उपभोक्ता मामलों के विभाग को इस संबंध में शिकायत प्राप्त हुई. ग्राहकों ने शिकायत की कि होटल और रेस्टोरेंट में सर्विस चार्ज की बाध्यता है जो बहुत ही परेशान करने वाला है. शिकायत मिलने के बाद विभाग हरकत में आया और 2 जून को रेस्तरां और होटलों मालिकों की बैठक बुलाई. इस बैठक में सर्विस चार्ज लगाने पर चर्चा हुई. बैठक में विभाग ने सर्विस चार्ज को अवैध करार दिया और नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) से इसे बंद करने को कहा. इसके बाद एक गाइडलाइंस जारी की गयी जिसके अनुसार होटल या रेस्तरां भोजन बिल में डिफ़ॉल्ट रूप से सेवा शुल्क नहीं जोड़ेंगे. रेस्टोरेंट्स ने गाइडलाइंस को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद कोर्ट ने उनके पक्ष में आदेश देते हुए 20 जुलाई को गाइडलाइंस पर रोक लगा दी थी.
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कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने रेस्टोरेंट्स द्वारा लगाए जाने वाले सर्विस चार्ज को अवैध करार दिया है. मिनिस्ट्री की ओर से कहा गया कि इस तरह का चार्ज कहीं से जायज नहीं है. इस संबंध में एनआरएआई को मई के अंत में एक पत्र लिखा गया. इस पत्र में उपभोक्ता मामलों विभाग के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि रेस्तरां और भोजनालय डिफ़ॉल्ट रूप से उपभोक्ताओं से सेवा शुल्क वसूल रहे हैं जबकि ये चार्ज अनिवार्य नहीं है.
जून की शुरुआत में जो बैठक हुई उसमें रेस्तरां संघ ने सरकार के दावों का खंडन किया. संघ की ओर से कहा गया कि मेनू में सेवा शुल्क का उल्लेख कर दिया जाता है. इसमें उपभोक्ता की सहमति होती है. सेवा शुल्क का उपयोग रेस्तरां/होटल द्वारा कर्मचारियों और श्रमिकों को भुगतान करने के लिए किया जाता है. इस बारे में जो मीडिया में बातें हो रही है वो तार्किक नहीं है. सेवा शुल्क पिछले 80 से अधिक सालों से लिया जाता रहा है.
आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने केंद्र और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) को एकल न्यायाधीश के समक्ष दिशानिर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने जवाब दाखिल करने की छूट दी है. कोर्ट ने मामले पर विचार के लिये 31 अगस्त की तारीख तय की.
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