Short Selling: गिरते शेयर से मुनाफा कमाती है हिंडनबर्ग, अदाणी ग्रुप की बर्बादी से की करोड़ों की कमाई
Short Selling: शार्ट सेलिंग में शेयर की खरीद-बिक्री तब की जाती है जब आने वाले समय में उस शेयर की कीमत गिरने की प्रबल संभावना होती है. इस खेल के तहत शॉर्ट सेलर अपने पास शेयर न होते हुए भी उसे बेचते हैं.
Short Selling: शेयर बाजार में इन दिनों शार्ट सेलिंग (Short Selling) शब्द काफी सुर्खियों में है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह से अदाणी ग्रुप को नुकसान उठाना पड़ा है उससे शार्ट सेलिंग शब्द काफी चर्चा में आ गया है. सबसे आश्चर्य की बात है कि शार्ट सेलिंग में निवेशक गिरते बाजार से मुनाफा कमाते हैं. दरअसल, किसी भी बाजार में निवेशक दो तरह से अपनी पोजीशन बनाते हैं. एक तो है लॉग पोजीशन, इसके तहत निवेशक शेयरों के बढ़ने पर उसपर दांव लगाता हैं. यानी जिस शेयर पर दांव लगा है उसके ऊपर उठने पर निवेशकों को मुनाफा होगा. एक और पोजीशन होती है शार्ट पोजीशन, इसमें शेयरों के गिरने पर पैसा लगाया जाता है, इसमें भी करोड़ों की कमाई की जाती है.
गिरावट पर दांव: अब सबसे जेहन में सवाल उठ रहा होगा कि शेयर के गिरने पर उससे मुनाफा कैसे होता है. हालांकि यह काफी जोखिम भरा काम होता है, लेकिन कई हिडनबर्ग जैसे संस्था जो शार्ट सेलिंग में माहिर होती है, वो गिरते शेयर से भी करोड़ों की कमाई कर लेती है. जी हां गिरते शेयर से भी अच्छी खासी रकम बनाई जा सकता है. अदाणी ग्रुप के शेयर के भाव के गिरने पर हिंडनबर्ग ने भी करोड़ों की कमाई की है. कुल मिलाकर कहा जाये तो शॉर्ट सेलिंग शेयर बाजार में कारोबार करने का एक ऐसा तरीका है, जिसमें इन्वेस्टर किसी कंपनी के शेयर चढ़ने पर नहीं, बल्कि उसमें भारी गिरावट होने दांव लगाता है.
गिरते शेयर से होती है कमाई: कोई भी निवेशक शेयर इस इरादे से खरीदता है कि भविष्य में उसके भाव बढ़ेंगे. जब बाजार में उक्त शेयर के भाव बढ़ जाते हैं तो निवेशक उसे बेच देता है इससे उसे मुनाफा होता है. शेयर बाजार और म्युचुअल फंड मामलों के जानकार अमित निगम बताते हैं कि इसके विपरीत शार्ट सेलिंग में शेयर की खरीद-बिक्री तब की जाती है जब आने वाले समय में उस शेयर की कीमत गिरने की प्रबल संभावना होती है. इस खेल के तहत शॉर्ट सेलर अपने पास शेयर न होते हुए भी उसे बेचते हैं. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि वो कंपनी से खरीदकर शेयर नहीं देता, बल्कि क्रेडिट में लेकर देता है. इससे उसे तगड़ा मुनाफा होता है.
क्या है शार्ट सेलिंग: लेकिन ये पूरा प्रकरण चलता कैसे है इसे एक उदाहरण को तौर पर समझते हैं. मान लीजिए कोई शेयर 2000 रुपये का है. अब आप यह अच्छे से जानता हैं कि यह शेयर टूटकर 1500 रुपये का हो जाएगा. अब आप ब्रोकर से कहकर 10 शेयर बेच देते हैं. अब आपके डीमैट खाते में शेयर तो नहीं दिखेगा लेकिन 20000 हजार रुपये दिखेगा. अब जैसे ही शेयर की कीमत 1500 रुपये हो गई आपने उसे ब्रोकर से खरीद लिया. वापस खरीदते समय आपको सिर्फ 15000 रुपये ही देने होंगे, क्योंकि शेयर का भाव गिरकर दो हजार रुपए से 1500 रुपये हो गया है. अब टोटल ट्रांजेक्शन के बाद आपके खाते में 5000 रुपये दिखने लगेगा. यानी आपके पास शेयर न होते हुए भी आपने 5000 रुपये पैसे कमा लिए.
जोखिम का भी है खतरा: शार्ट सेलिंग में काफी जोखिम भी हैं. अगर शेयर के भाव न टूटे और वापस चढ़ गये तो आपको खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि बाजार बंद होने से पहले अगर आपने शेयर नहीं खरीदी तो ब्रोकर आपके नाम पर बाजार बंद होने से पहले वो शेयर खरीद लेगा. इससे आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है. यहां एक बात जरूरी है कि कई देशों में इस तरह की ट्रेडिंग गैरकानूनी है, लेकिन देश में सेबी और भारत सरकार इसकी इजाजत देता है. शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग को लेकर मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि हिंडनबर्ग भी मुनाफा के लिए यही हथकंडा अपनाती है.
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