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SC ने बैंकों से कहा, 31 अगस्त तक NPA नहीं होने वाले खातों को केस का निपटारा होने तक प्रोटेक्शन दिया जाए, पढ़िए आज कोर्ट में क्या हुआ…?

कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देश में लागू लॉकडाउन के दौरान आरबीआई की तरफ से दिए गए लोन मोरेटोरियम को आगे बढ़ाने और ब्याज में छूट देने की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों से कहा कि जिन ग्राहकों के खातों 31 अगस्त तक गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) घोषित नहीं किया गया है, उन्हें अब केस का निपटारा होने तक प्रोटेक्शन दिया जाए. बैंक ग्राहकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करें. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अब अगली सुनवाई 10 सितंबर को करेगा.

नयी दिल्ली : कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देश में लागू लॉकडाउन के दौरान आरबीआई की तरफ से दिए गए लोन मोरेटोरियम को आगे बढ़ाने और ब्याज में छूट देने की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों से कहा कि जिन ग्राहकों के खातों 31 अगस्त तक गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) घोषित नहीं किया गया है, उन्हें अब केस का निपटारा होने तक प्रोटेक्शन दिया जाए. बैंक ग्राहकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करें. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अब अगली सुनवाई 10 सितंबर को करेगा.

इससे पहले, लॉकडाउन के दौरान ऋण अधिस्थगन पर बैंकों की ओर से ब्याज पर ब्याज वसूलने के मामले में गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘बैंकिंग सेक्टर हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और हम कोई ऐसा फैसला नहीं कर सकते, जिससे कि अर्थव्यवस्था कमजोर हो.’

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि एक राष्ट्र के रूप में यहां पर एक प्रतिकूल भूमिका नहीं निभा सकते हैं. ब्याज बंद करना एक आसान विकल्प था, लेकिन यह अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का एक प्रभावी तरीका नहीं है. हम जीवित रखने का चयन करते हैं, जैसा कि कई अन्य देशों ने किया है.

उन्होंने कहा कि बैंकिंग सेक्टर भी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे मजबूत होने की जरूरत है. कोविड की वजह से हर सेक्टर प्रभावित है. उन्होंने कहा कि कर्ज के पुनर्भुगतान के लिए तीन महीने तक का समय दिया गया, जो आरबीआई की ओर से तुरंत किया गया उपाय है.

इसके पहले बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बैंक ऋण पुनर्गठन के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे कोविड-19 महामारी के दौरान किश्तों को स्थगित करने (मोरेटोरियम) की योजना के तहत ईएमआई भुगतान टालने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर ईमानदार कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते.

सॉलिसीटर जनरल ने अपनी दलील में कहा कि इस कार्यप्रणाली को किस्त के भुगतान के दबाव को कम करने लिए लागू की गयी, ताकि सभी सेक्टरों पुनर्जीवित किया जा सके. उन्होंने कहा कि जब कोई 90 दिनों तक भुगतान करने में विफल हो जाता है, तब वह खाता एनपीए हो जाता है. ऋण अधिस्थगन की अवधि को इससे बाहर रखा गया है.

शीर्ष अदालत से सॉलिसीटर जनरल मेहता ने कहा कि अधिकारियों को किस्तों के भुगतान में तत्काल दबाव में कमी, सभी संभावित क्षेत्रों का पुनरुद्धार, तनावग्रस्त परिसपंत्तियों का पुनर्गठन और बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित पहलुओं पर आवश्यक कदम उठाने चाहिए.

इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न प्रकार के कर्जदारों और कर्जदाताओं के दायरे और विभिन्न वर्गों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि कोविड-19 का प्रभाव हर किसी पर पड़ा है, लेकिन यह प्रभाव हर क्षेत्र के लिए अलग है. उन्होंने नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों का जिक्र करते हुए कहा कि फार्मा सेक्टर और आईटी सेक्टर जैसे प्रभावित क्षेत्र पर भी इसका गहरा असर पड़ा है.

सॉलिसीटर जनरल ने अदालत के सामने आरबीआई की ओर से मार्च और मई में बैंकों को सावधि ऋणों को पुनर्भुगतान पर स्थगन प्रदान करने के लिए जारी किए गए सर्कुलर को पेश किया. उन्होंने कहा कि अधिस्थगन का विचार कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण पड़ने वाले आर्थिक बोझ को कम के लिए ऋण पुनर्भुगतान को स्थगित करना था, ताकि व्यवसाय कार्यशील पूंजी का प्रबंधन कर सकें. इसके पीछे ब्याज माफ करने का विचार नहीं था.

उन्होंने कहा कि यह वह प्रयास है, जिससे जो लोग कोविड-19 से प्रभावित हैं और संकट का सामना कर रहे हैं, उन्हें लाभ मिलता है और जो डिफाल्टर होते हैं, वे इससे वंचित हो जाते हैं. मेहता ने अब आरबीआई गवर्नर के कोविड-19 के प्रभाव पर दिए बयान का उल्लेख किया है. उन्होंने कहा कि यदि किसी के द्वारा 90 दिनों के लिए भुगतान नहीं किया जाता है, तो आम तौर पर एक खाता एनपीए बन जाता है. इसलिए अधिस्थगन अवधि को बाहर रखा जाना था. पहले तीन महीने और उसके बाद तीन महीने बाद इसे बढ़ाया गया था.

उन्होंने कहा कि यह इस तर्क के जवाब में है कि खाते 1 सितंबर को एनपीए बन जाएंगे, क्योंकि 31 अगस्त को स्थगन अवधि समाप्त हो गयी थी. उन्होंने कहा कि 1 सितंबर को खाते एनपीए नहीं बनेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि ब्याज माफी का विकल्प चुनने के बजाय हम वित्त मंत्रालय द्वारा क्षेत्रों के पुनरुद्धार के उपायों के लिए आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

इस दौरान न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की मुख्य शिकायत यह है कि उन्हें पर्याप्त राहत नहीं दी गयी है और आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएम अधिनियम) के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) राहत देने के लिए सक्रिय नहीं है.

उन्होंने कहा कि क्या डीएम अधिनियम के तहत एनडीएमए और अन्य अधिकारियों द्वारा कुछ और किया जाना है? आपने सही कहा है कि अन्य परिपत्र चुनौती के अधीन नहीं हैं, इसलिए हम अनुच्छेद 32 क्षेत्राधिकार से बंधे हैं. उनका तर्क है कि क्षेत्रवार राहत मिलनी चाहिए.

सॉलिसीटर जनरल मेहता ने रिजॉल्यूशन प्लान पर आरबीआई के 6 अगस्त के सर्कुलर और ऋणों के पुनर्गठन का उल्लेख करते हुए कहा कि जबकि यह परिपत्र चुनौती के अधीन नहीं है, यह परिपत्र याचिकाकर्ताओं द्वारा की गयी शिकायतों का पर्याप्त रूप से ध्यान रखता है.

उन्होंने कहा कि कैसे बैंकों को 6 अगस्त के परिपत्र के तहत सशक्त बनाया जाता है, ताकि वे कर्जदारों की समस्याओं को दूर करने के लिए अनुकूलित राहत प्रदान कर सकें. उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ समिति 6 सितंबर को सेक्टर विशिष्ट दिशानिर्देशों के साथ आएगी.

वहीं, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने अदालत को बताया कि बैंक संकल्प योजनाओं के साथ आ सकते हैं. उन्होंने कहा कि पावर सेक्टर जैसे कुछ क्षेत्र अपने स्वयं के मानदंड विकसित कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि आम आदमी की समस्याएं कॉरपोरेट्स से अलग हैं. यदि उधारकर्ताओं को और उधार लेने के प्रकार की पहचान की जाती है, तो निर्दिष्ट राहत प्रदान की जा सकती है. व्यक्तिगत और औद्योगिक समस्याओं को अलग तरीके से संबोधित करने की आवश्यकता है.

पीठ ने सॉलिसीटर जनरल को एनडीएमए के बिंदु पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा. इस पर सॉलिसीटर जनरल मेहता ने कहा कि डीएम अधिनियम प्रदान करता है कि सरकार कार्रवाई कर सकती है. अब तक एनडीएमए ने आरबीआई को पर्यवेक्षी भूमिका अपनाने के लिए फिट माना है. यह विवादित नहीं है कि हर क्षेत्र तनाव में है, ऐसा ही देश है.

इस पर सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि यही कारण है कि आरबीआई और सरकार मिलकर अपना पक्ष रख सकते हैं और संकल्प योजना के साथ नहीं आते हैं, तो इस पर ध्यान दिया जाएगा. जस्टिस एमआर शाह ने फिर सवाल किया कि और इस बीच क्या होता है? इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि हम स्पष्ट करेंगे. उधर, एनडीएमए पर सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि अधिनियम कहता है कि सरकार और एनडीएमए किसी भी स्तर पर आ सकते हैं. अधिनियम ‘हो सकता है’ शब्द का उपयोग करता है.

न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि न्यायालय का 6 अगस्त के परिपत्र से निपटने का कोई इरादा नहीं है. यह चुनौती से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि सर्कुलर को चुनौती नहीं दी जा रही है, लेकिन राहत की मांग की जा रही है. वहीं, न्यायमूर्ति रेड्डी ने कहा कि इस बीच प्रश्न चक्रवृद्धि ब्याज की मांगों के बारे में है. अधिस्थगन और दंड ब्याज एक साथ नहीं किए जा सकते. आरबीआई को स्पष्ट करना होगा. फिलहाल, इस मामले की सुनवाई अब 10 सितंबर को 10.30 बजे शुरू की जाएगी.

बता दें कि न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्थगन अवधि के दौरान स्थगित किस्तों पर ब्याज लेने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि ब्याज पर ब्याज लेना कर्जदारों के लिए एक ‘दोहरी मार’ है. याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा की वकील राजीव दत्ता ने किश्त स्थगन की अवधि के दौरान भी ब्याज लेने का आरोप लगाया.

Posted By : Vishwat Sen

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