मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को कोविड-19 महामारी के बढ़ते प्रभावों से मुकाबला करने के लिए बैंकों की रिवर्स रेपो दर में 0.25 फीसदी कटौती करने, राज्यों को उनके खर्चों के लिए उधार सीमा बढ़ाने के साथ ही अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए कई उपायों की घोषणा की. रिजर्व बैंक के अनुसार, कोरोना महामारी में लोगों को मदद पहुंचाने के लिए राज्यों के उनके खर्चों के लिए अग्रिम की सीमा को 31 मार्च 2020 की स्थिति के ऊपर बढ़ाते हुए उन्हें एक अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 तक बढ़ी हुई 60 फीसदी की सुविधा प्रदान की है.
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रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी से पैदा हालात पर रिजर्व बैंक लगातार करीब से निगाह रखे हुए है और इससे उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए वह हर संभव कदम उठायेगा. उन्होंने ये भी कहा कि जिन उपायों की घोषणा की जा रही है, ये अंतिम घोषणाएं नहीं हैं. केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था के हित में बदलती परिस्थितियों के अनुसार भविष्य में जरूरत पड़ने पर और कदम भी उठाता रहेगा.
दास ने शुक्रवार सुबह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कहा कि बैंको को अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को अधिक कर्ज देने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से रिवर्स रेपो दर को तत्काल प्रभाव से 0.25 फीसदी घटाकर 3.75 फीसदी कर दिया गया है. रिवर्स रेपो के तहत वाणिज्यिक अपने पास उपलब्ध अतिरिक्त नकदी को फौरी तौर पर रिजर्व बैंक के पास रखते हैं. उन्होंने कहा कि प्रमुख नीतिगत दर रेपो 4.4 फीसदी पर अपरिवर्तित रखी गयी है और सीमांत स्थायी सुविधा दर और बैंक दर भी बिना किसी बदलाव के 4.65 फीसदी पर बनी रहेंगी.
इसके साथ ही दास ने राज्यों पर खर्च के बढ़ते दबाव को देखते हुए उनके लिए अग्रिम की सुविधा को 60 फीसदी तक बढ़ा दिया है. अभी तक इसके लिए 30 फीसदी की सीमा थी. इससे राज्यों को इस कठिन समय में संसाधन उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. रिजर्व बैंक ने राज्यों के उनके खर्चों के लिए अग्रिम की सीमा को 31 मार्च 2020 की स्थिति के ऊपर बढ़ाते हुए उन्हें एक अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 तक बढ़ी हुई 60 फीसदी की सुविधा प्रदान की है.
उन्होंने कहा कि सरकारी व्यय बढ़ने और आरबीआई द्वारा नकदी बढ़ाने के लिए किये गये विभिन्न उपायों से बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष तरलता बढ़ी है. केंद्रीय बैंक इसके साथ ही लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) के जरिये अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये की राशि आर्थिक तंत्र में उपलब्ध करायेगा. यह काम किस्तों में किया जायेगा.
उन्होंने कहा कि टीएलटीआरओ 2.0 के तहत बैंकों में प्राप्त धनराशि को निवेश श्रेणी के बांड, वाणिज्यिक पत्रों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के गैर परिवर्तनीय ऋण पत्रों में निवेश किया जाना चाहिए, जिसमें कुल प्राप्त धनराशि में से कम से कम 50 फीसदी छोटे और मझोले आकार के एनबीएफसी और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) को मिलना चाहिए.
उन्होंने नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) के लिए कुल 50,000 करोड़ रुपये की विशेष पुनर्वित्त सुविधाओं की घोषणा भी की, ताकि उन्हें क्षेत्रीय ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाया जा सके. आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस राशि में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और सूक्ष्म वित्त संस्थानों का नयी पूंजी उपलब्ध कराने के लिए नाबार्ड को 25,000 करोड़ रुपये, ऋणों के दोबारा वित्तपोषण के लिए सिडबी को 15,000 करोड़ रुपये और आवास वित्त कंपनियों की मदद करने के लिए एनएचबी को 10,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे.
गवर्नर ने कहा कि आरबीआई कोविड-19 के प्रकोप से पैदा होने वाले हालात पर नजर बनाए हुए है. मार्च में निर्यात 34.6 फीसदी घट गया, जो 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट की तुलना में कहीं बड़ी गिरावट को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि किसी कर्ज को फंसा कर्ज घोषित करने का 90 दिन का नियम बैंकों के मौजूदा कर्ज की किस्त वापसी पर लगायी गयी रोक पर लागू नहीं होगा.
बता दें कि कर्जदारों को बैंकों के कर्ज की किस्त भुगतान पर तीन महीने के लिए छूट दी गयी है. इस छूट के चलते बैंकों के कर्ज को एनपीए घोषित नहीं किया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी से पैदा हुई वित्तीय दबाव के हालात के मद्देनजर बैंकों को आगे किसी भी अन्य लाभांश भुगतान से छूट दी जाती है.
महंगाई के बारे में उन्होंने कहा कि उपभोक्ता सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में मार्च में गिरावट आयी है और इसमें आगे और गिरावट की उम्मीद है. रिजर्व बैंक कीमतों में गिरावट की स्थिति का फायदा उठाएगा और उधार लेने वालों तक इसका लाभ पहुंचायेगा.