नई दिल्ली : सरकार के हाथ में करीब 69 साल रहने के बाद शुक्रवार को टाटा के हाथ में दोबारा आते ही भारतीय विमानन क्षेत्र की ‘महाराजा’ कंपनी एयर इंडिया बदली-बदली सी नजर आने लगी है. मीडिया की रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ रही है कि शुक्रवार को टाटा के हाथों टेकओवर होने के साथ एयर इंडिया की सर्विसेज में सुधार नजर आने लगा है.
टीवी चैनल आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, एयर इंडिया का टेकओवर होने के बाद मुंबई एयरपोर्ट से रात नौ बजे गोवा जाने वाली फ्लाइट की उड़ान के दौरान सवारियों में खास तरह का उत्साह देखा गया. हालांकि, रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि कंपनी को प्रबंधन स्तर पर काफी सुधार करने की जरूरत है, लेकिन सर्विसेज के मामले में पहले ही दिन से सुधार होता नजर आ रहा है.
सबसे बड़ी बात यह है कि एयर इंडिया की उड़ान के दौरान अनाउंसमेंट के दौरान सवारियों को ‘पैसेजेंर’ कहकर संबोधित नहीं किया जा रहा है, बल्कि उसकी जगह पर उन्हें ‘गेस्ट’ कहा जाने लगा है. मुंबई-गोवा की फ्लाइट में अनाउंसमेंट के दौरान सवारियों को संबोधित करते हुए कहा गया, ‘डियर गेस्ट्स, मैं आपका कैप्टन ऋषभ (बदला हुआ नाम) हूं… मैं आपका स्वागत इस ऐतिहासिक उड़ान में करना चाहूंगा. आज सात दशक बाद एयर इंडिया पूरी तरह से टाटा ग्रुप का हिस्सा बन चुकी है. इस नए एयर इंडिया में आपका स्वागत करूंगा और उम्मीद करूंगा कि इस सफर में आप हमारे साथ पूरी तरह से आनंद उठा सकेंगे.’
बताते चलें कि एयर इंडिया करीब 69 साल बाद एक बार फिर से अपने फाउंडर टाटा ग्रुप के हाथों में चली गई है. नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाले ग्रुप ने घाटे में चल रही एयरलाइन का अधिग्रहण कर कई साल से इसकी बिक्री के लिए किए जा रहे असफल प्रयासों पर विराम लगा दिया है. सरकार ने दो दशकों से अधिक समय और तीन प्रयासों के बाद आखिरकार अपनी प्रमुख राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेच दिया. एयर इंडिया अब अपने फाउंडर टाटा ग्रुप के पास लौट गई है.
बता दें कि जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने वर्ष 1932 में एयरलाइन की स्थापना की थी और इसका नाम टाटा एयरलाइंस रखा था. 1946 में टाटा संस के विमानन प्रभाग को एयर इंडिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और 1948 में यूरोप के लिए उड़ान सेवाएं शुरू करने के साथ एयर इंडिया इंटरनेशनल को शुरू किया गया था. यह अंतरराष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी में से एक थी. इसमें सरकार की 49 फीसदी, टाटा की 25 फीसदी और शेष हिस्सेदारी जनता की थी.
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अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने अपनी व्यापक निजीकरण और विनिवेश को बढ़ावा देने की पहल के तहत 2000-01 में एयर इंडिया में सरकार की 40 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी. टाटा समूह के साथ सिंगापुर एयरलाइंस ने हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई, लेकिन अंत में सिंगापुर एयरलाइंस को मुख्य रूप से निजीकरण के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के चलते पीछे हटना पड़ा.
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