कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए अभी जहां दुनिया भर के शोध संस्थान और वैज्ञानिक कोविड-19 की दवा (Medicine of covid-19) की खोज, अनुसंधान और ट्रायल ही कर रहे हैं, वहां भारत के बाजार में इसकी तीन तरह की दवाएं लॉन्च कर दी गयी हैं. इन दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल (Clinical trial) भी हो गया है और सीमित तरीके से इनका इस्तेमाल मरीजों के इलाज के लिए भी किया जा रहा है. भारत के बाजार में फिलहाल जिन तीन कंपनियों की दवाएं उपलब्ध हैं, उनमें योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि, फर्मास्युटिकल कंपनी ग्लेनमार्क और हेटेरो शामिल हैं. कोरोना की दवाओं को लेकर इसकी तीनों कंपनियों की ओर से विभिन्न प्रकार के दावे भी किए जा रहे हैं. आइए जानते हैं इन तीनों कंपनियों की दवाओं और दावों के बारे में…
योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि ने मंगलवार को कोरोना की दवा को लॉन्च किया है. पतंजलि ने कोरोना की इस दवा का नाम ‘कोरोनिल’ रखा है. कोरोना दवा को लेकर पतंजलि ने दावा किया है कि आयुर्वेदिक पद्धति से जड़ी बूटियों के गहन अध्ययन और शोध के बाद बनी यह दवा शत प्रतिशत मरीजों को फायदा पहुंचा रही है. यहां पतंजलि योगपीठ में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि पूरे विश्व में पहला ऐसा आयुर्वेदिक संस्थान है, जिसने जड़ी बूटियों के गहन अध्ययन और शोध के बाद कोरोना की दवाई प्रमाणिकता के साथ बाजार में उतारी है.
600 रुपये में मिलेगी दवा, गरीबों को फ्री : पतंजलि ने इस दवा की कीमत 600 रुपये रखी है और यह पतंजलि मेगा स्टोर पर मिलेगी. इसके साथ ही, कंपनी ने यह भी कहा है कि यदि गरीब लोगों के पास दवा खरीदने के पैसे नहीं होंगे, उन्हें यह दवा मुफ्त में दी जाएगी. इसके साथ ही, कंपनी ने दवा के किट की कीमत 545 रुपये रखी है.
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भारत में कोरोना की दवा के रूप में दूसरी दवा के तौर पर फैबिफ्लू को उतारा गया है. फैबिफ्लू एक रीपर्पस्ड दवा है. भारत में इस दवा ग्लेनमार्क फार्मा कंपनी बनाती है. इसका मतलब ये है कि इस दवा का इस्तेमाल पहले से फ्लू की बीमारी के इलाज में किया जाता रहा है. अमेरिकी दवा रेमडेसिवियर की ही तरह यह भी एक एंटीवायरल दवा है. इस दवा को बनाने वाली फ़ार्मास्युटिकल कंपनी ग्लेनमार्क का दावा है कि कोविड-19 के माइल्ड और मॉडरेट मरीज़ों पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और परिणाम सकारात्मक आए हैं.
इलाज में इस्तेमाल से पहले मरीजों की अनुमति जरूरी : ग्लेनमार्क कंपनी का दावा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने इस दवा के ट्रायल के लिए सशर्त मंजूरी दी है. इसके लिए शर्त यह है कि इस दवा का केवल इमरजेंसी में और सीमित इस्तेमाल किया जा सकता है. इमरजेंसी इस्तेमाल का मतलब यह है कि कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान इस दवा के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाज़त है. सीमित इस्तेमाल का मतलब यह है कि जिस किसी कोविड-19 के मरीज को इलाज के दौरान ये दवा दी जाएगी, उसके लिए पहले मरीज की सहमति लेना जरूरी है.
एक टैबलेट का दाम 103 रुपये : भारत में फैबिफ्लू का 34 टेबलेट का एक पूरा पत्ता मिलता है, जिसकी बाजार में 3500 रुपये में बेचा जा रहा है. इसका मतलब यह कि इस दवा के एक टैबलेट के लिए मरीज को करीब 103 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा.
भारत में कोरोना की तीसरी दवा के रूप में ‘कोविफॉर’ को भी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से मंजूरी दी गयी है. इस दवा को लेकर फार्मा कंपनी हेटेरो की तरफ़ से भी एक दावा किया जा रहा है कि भारत में अब ‘कोविफॉर’ बनाने की मंजूरी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से मिल गयी है. इस दवा को भी कोरोना के इलाज में कारगर मानी जा रही है. डीसीजीआई की ओर से मंजूरी मिलने के बाद जेनरिक दवा बनाने वाली हेटेरो अमेरिकी दवा रेमडेसिवियर का जेनेरिक वर्जन दवा ‘कोविफॉर’ को भारत में बनाकर बेचेगी.
रेमडेसिवियर की जेनरिक दवा है कोविफॉर : दरअसल, रेमडेसिवियर एक एंटीवायरल दवा है और यह एक लाइसेंस्ड ड्रग है. इस दवा का पेटेंट अमेरिकी दवा कंपनी गिलिएड के पास है. गिलिएड ने इस दवा का निर्माण करने के लिए भारत की 4-5 कंपनियों को वोलेंटरी लाइसेंस दिया है. इसमें सिप्ला और हेटेरो जैसी कंपनियां शामिल हैं. इसका मतलब यह है कि अब ये कंपनियां भी रेमडेसिवियर बनाकर बाजार में बेच सकेंगी. अब गिलिएड कंपनी के साथ इनका करार हो गया है.
एक खुराक की कीमत 5 से 6 हजार : फिलहाल, हेटेरो ने इस दवा की एक खुराक की कीमत 5 से 6 हजार रुपये तक तय किया है. कंपनी का दावा है कि भारत सरकार ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए 5 से 6 खुराक दवा देने के लिए निर्धारित किया है. ऐसे में, कोरोना के इलाज में इस दवा का इस्तेमाल करने पर मरीजों को कम से कम 25 से 36 हजार रुपये खर्च करने होंगे.
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