Union Budget 2023: इस बार बजट से गृहिणियों को भी आस, बोलीं- जरा सुनें हमारी बात

महिलाओं के संगठन नेशनल सिटीजन एक्शन ग्रुप वॉरियर मॉम्स ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कुकिंग गैस के दाम घटाने को लेकर चिट्ठी लिखी है. इसमें कहा गया कि कुल वायु प्रदूषण में घरेलू प्रदूषण का हिस्सा 30 से 50 फीसदी तक होता है. इसे घटाकर शून्य करने के लिए एलपीजी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना होगा.

By Prabhat Khabar News Desk | January 29, 2023 2:02 PM

रानी सुमिता, भोपाल : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश करेंगी. 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव से पहले यह मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट होगा. महंगाई से त्रस्त आम जनता को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं. खासकर महिलाएं वित्त मंत्री जी की ओर टकटकी लगायी बैठी हैं, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि एक महिला होने के नाते वे तमाम गृहिणियों का दर्द समझेंगी! वे बस चाहती हैं कि आम बजट में उनका भी ध्यान रखा जाये. इस बढ़ती महंगाई में सबसे ज्यादा असर महिलाओं की रसोई पर ही पड़ा है. ऐसे में उनके लिए घर संभालना मुश्किल हो गया है. इसी के परिप्रेक्ष्य में आज हमने वित्त मंत्री के समक्ष एक आम परिवार की अर्थव्यवस्था को संभालने वाली गृहिणियों की बात रखने का प्रयास किया है.

वित्त मंत्री जी, सच बताऊं तो देश की तमाम गृहिणियों की तरह एक बार फिर से मेरे दिल की धड़कनें भी बढ़ी हुई हैं. लगातार दो वर्षों से हम सभी गृहिणियां बड़ी बेबसी से बजट के बहाने अपने किचन में लगातार मंहगाई की सेंध लगते हुए देख रही हैं. यूं समझ लें कि ‘न चांदनी ठहर रही हमारे चौके में और न सूरज की रोशनी’. विगत वर्ष में आने कहा था कि आप कोरोना से उबरने की कोशिश कर रही हैं, इसलिए महिलाओं के लिए कोई बड़े ऐलान नहीं किये गये. आपसे हमारी कोई बहुत बड़ी मांगे नहीं हैं. एक महिला होने के नाते आप अच्छी तरह जानती-समझती हैं कि हर चीज के दाम बढ़ गये हैं. हम महिलाएं पूरे घर का बजट बनाकर चलती हैं. इस महंगाई में हमारा पूरा बजट बिगड़ गया है. रसाई पर सबसे ज्यादा मार गैस और तेल के बढ़ते दामों की पड़ी है. अगर इस पर तुरंत कुछ लगाम लगे, तो हमें कुछ राहत मिल सकती है.

गैस व राशन-पानी हुआ महंगा

गैस सिलेंडर की कीमत 1000 रुपये को पार कर चुकी है. एक वर्ष में करीब 150 रुपये का इसमें इजाफा हो चुका है. महंगाई इतनी बढ़ गयी है कि पहले जहां एक महीने का राशन 5 से 10 हजार रुपये में आ जाता था, वहीं अब यही राशन अब 15-20 हजार से ज्यादा में आ रहा है. तेल से लेकर मसाले, दाल, चावल और रसोई में इस्तेमाल होने वाली रोजमर्रा की सभी चीजों के दाम बढ़े हुए हैं. जितनी बार राशन लेने जाओ, उतनी बार किसी न किसी चीज की कीमत बढ़ी हुई मिलती है. नहाने का आम साबून, तेल भी अब पहुंच से बाहर होता जा रहा है. अगर गैस की कीमत में थोड़ी कमी हो और सब्सिडी बढ़ायी जाये, तो हमारे मंथली बजट के लिए यह बड़ी राहत होगी.

जीवन की मिठास और नमक- दोनों महंगे

मैडम, आज अगर आप हमारे साथ हमारे चौके में सामान्य-सी समझी जानेवाली कई छोटी-बड़ी चीजों की मूल्य वृद्धि पर दृष्टिपात करें, तो फिर आपको शायद एहसास होगा कि किस तरह हम गृहिणियां दिन-रात अपने परिवार के पोषण, जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करने को मजबूर हैं.

चावल भी महंगे

चावल हमारे देश के ज्यादातर भागों का मुख्य भोजन है. उसके मूल्य में अतिवृद्धि ने हमें जकड़ लिया है. 68 रुपये प्रति किलो मिलनेवाला बासमती अब 80 रुपये से ऊपर और साधारण चावल 30-32 रुपये की दर से बढ़ कर 50 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुंच चुका है. कुछ साल पहले तक 15 रुपये किलो मिलनेवाला नमक भी अब 25 रुपये का हो गया है. सरसों के तेल में विगत 13 वर्षों में 55% की वृद्धि हुई है. खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक में 8% और दाल और धान के मूल्य में 6% की वृद्धि किसी भी मध्यम वर्गीय के बजट को हिलाने के लिए काफी हैं.

थाली में रोटियां हेने लगी कम

आपको शायद यकीन न हो, पर हमारी थाली में रोटियां कम होने लगी हैं, क्योंकि विगत दो वर्षों से गेहूं की कीमतों में बेतरतीब उछाल आयी है. पिछले वर्ष की तुलना में गेहूं की कीमत 15.76 फीसदी ज्यादा है. वहीं गेहूं का आटा 18-20 रुपये किलो से बढ़ कर 37.03 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है. इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि है. मौटे तौर पर बताऊं तो पिछले एक वर्ष में पांच किलो पैकेज्ड आटे का दाम 150 रुपये से बढ़ते-बढ़ते अब 200 का आंकड़ा पार कर चुका है. इन चीजों पर जीएसटी की मार ने लोकल फूड प्रोडक्शन व पैकेजिंग को भी काफी महंगा कर दिया है.

खत्म होती जा रही है हमारी घरेलू बचत

हम महिलाओं की जिंदगी के 30 साल मेंस्ट्रुअल साइकिल में निकल जाते हैं. सैनिटरी नैपकिंस की कीमतें लगातार बढ़ी हैं. कोर्ट में कई सुनवाई पर बताया गया कि नैपकिंस पर जीएसटी खत्म कर दिया गया, मगर सच ये है कि अब भी इस पर 12-18 फीसदी जीएसटी लग रहा है. शैंपू, बॉडी वॉश, यहां तक कि महिलाओं के रेजर पुरुषों से 50 फीसदी महंगे हैं. अगर महिलाओं के इस्तेमाल वाले प्रोडक्ट्रस पर टैक्स घटाया जाये, नैपकिंस पर खत्म किया जाये, तो हमारे हाथ में ज्यादा पैसे बचेंगे. वहीं बैंक डिपॉजिट पर इंटरेस्ट रेट घटने से हमारी बचत को सेंध लगी हैं. इससे बैंक में बचत के पैसे रखने का बहुत लाभ नहीं दिखता. अगर इस महंगाई से लड़ना है, तो हम गृहिणियों को घर से बाहर निकल कर दो पैसे कमाने होंगे. हम नौकरी या खुद का रोजगार शुरू करना चाहती हैं, मगर इसे लेकर आपकी पॉलिसी में कुछ पारदर्शिता नहीं है. हमारी परेशानियों को देखते हुए टैक्स में छूट देनी चाहिए. बिजनेस लोन आसान होना चाहिए और इस पर भी छूट मिलनी चाहिए.

कोरोना आपदा के बाद हमारी मुश्किलें बढ़ी

खास तौर पर कोरोना आपदा के बाद हमारी मुश्किलें बढ़ी हैं. मध्यम वर्ग अपनी कमाई का अधिकतर भाग अपने खान-पान औ र बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करता है. नतीजतन हमारा घरेलू बचत कोशिशों के बावजूद लगभग शून्य स्तर पर जा पहुंचा है. अगर आप हमारी इन बातों पर ध्यान दें, तो हमें भरोसा है कि निश्चय ही हम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी और हम अपनी कमाई को भी बढ़ा पायेंगी.

थाली में व्यंजनों की संख्या हो रही है कम

ऐसी विकट स्थिति में जब सब्जियों के दाम बढ़ोतरी के बीच कभी-कभार थमते से नजर आते हैं, तो हमारी सांस-में-सांस आने लगती है. अधरों पर मुस्कान खिलने लगती है, पर अगले ही रोज पता चलता है कि दूध और सब्जियों के दाम बढ़ गये हैं. ऐसा लगता है किसी ने मुंह में निवाला देकर छीन लिया. कुछ ही दिनों के अंतराल में दो रुपये की वृद्धि एक आम बात होती जा रही है, जिसने गृहिणियों को चिंतित कर दिया है. ऐसा लंबे समय से लगातार हो रहा है. पिछले दो वर्षों में दूध की कीमत में लगभग 8%की वृद्धि हुई है. रसोई से संबंधित हर चीज इस तरह महंगी होती चली गयी, लिहाजा थाली के व्यंजन लगातार कम होते जा रहे हैं. फल, ड्राइफ्रूट्स तो पहले से महंगे थे, जो अब हमारी जेब में नहीं आते, पर सब्जियां तो बच्चों के पोषण के लिए जरूरी हैं.

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