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इतिहास में पहली बार अमेरिकी क्रूड की कीमतें प्रति बैरल शून्य डॉलर से भी नीचे

अमेरिकी ऑयल कंपनियों के दिवालिया होने का खतरा-माल उठाने के लिए पैसे देकर भी तेल खरीदार नहीं मिल रहा वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से रेंगती हुई नजर आ रही है. कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय बाजार भी गहन संकट में है. इसी वजह से अमेरिकी क्रूड के लिए लगातार दूसरा दिन बहुत खराब रहा. फ्यूचर ट्रेडिंग […]

अमेरिकी ऑयल कंपनियों के दिवालिया होने का खतरा-माल उठाने के लिए पैसे देकर भी तेल खरीदार नहीं मिल रहा वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से रेंगती हुई नजर आ रही है. कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय बाजार भी गहन संकट में है. इसी वजह से अमेरिकी क्रूड के लिए लगातार दूसरा दिन बहुत खराब रहा. फ्यूचर ट्रेडिंग (वायदा कारोबार) में ऑयल की कीमतें गिर कर शून्य डॉलर प्रति बैरल से नीचे (-37.63 डॉलर/ बैरल) आ गयीं. इतिहास में पहली बार अमेरिकी क्रूड ऑयल (कच्चा तेल) का भाव इस स्तर तक पहुंचा.

हालांकि, मंगलवार को इसमें कुछ सुधार आया, पर यह तेजी मामूली (शून्य से 0.29 डॉलर/ बैरल) रही. माना जा रहा है कि आनेवाले दिनों में क्रूड ऑयल की मुश्किलें और बढ़ेंगी. कीमतें गिरने से अमेरिकी ऑयल कंपनियों को प्रोडक्शन भी बंद करना पड़ सकता है. लिहाजा उनके दिवालिया होने का भी खतरा है. इस गिरावट के पीछे दुनियाभर में कामकाज का ठप होना है. लॉकडाउन में डिमांड कम होने से क्रूड की ओवर सप्लाई होना है. अमेरिका में कई उत्पादक, तो खरीदारों को पैसे देकर तेल खरीदने की गुजारिश कर रहे हैं, ताकि स्टोरेज की समस्या नहीं हो. मंडराते खतरे के बीच सोमवार को अमेरिका में ट्रेडर्स ने मई कॉन्ट्रैक्ट को बेचना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से क्रूड प्राइस क्रैश हो गया.

मई डिलिवरी के लिए अमेरिकी बेंचमार्क वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआइ) क्रूड प्राइस सोमवार को 300 फीसदी से ज्यादा गिर गया. अमेरिकी तेल के दाम रसातल में पहुंच जाने और कोई खरीदार नहीं होने से वाल स्ट्रीट में जोरदार गिरावट आयी. दूसरी तरफ ब्रेंट क्रूड का जून डिलिवरी भाव 20.30 प्रतिशत टूटकर 20.38 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया. हालांकि, भारत पर इस उठा-पटक का अभी सीधा असर नहीं पड़ेगा. भारत जो तेल आयात करता है, वह ब्रेंट क्रूड है. इसमें करीब 80 प्रतिशत हिस्सा तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक का है. ओपेक देशों की अगुआई सऊदी अरब करता है. इसमें अधिकतर खाड़ी देश शामिल हैं. यानी जब खाड़ी देशों में हलचल मचेगी, तब भारत भी प्रभावित होगा. हालांकि, देश में भी पेट्रोल व डीजल की मांग में भारी कमी आयी है.

20 अप्रैल से बिना हॉटस्पॉट वाले इलाकों में माल ढुलाई व अन्य अन्य आर्थिक गतिविधियां शुरू होने से पेट्रोल-डीजल की मांग बढ़ने का अनुमान है. इधर, कच्चे तेल की डिमांड कम होने से ओपेक व रूस जैसे तेल उत्पादक देशों ने उत्पादन में 10 प्रतिशत की कटौती कम करने का निर्णय लिया है. डब्ल्यूटीआइ में गिरावट की तीन वजहें1. लॉकडाउन के कारण क्रूड ऑयल की मांग में भारी कमी2. डिमांड कम होने के कारण क्रूड की ओवरसप्लाई 3. जिन्होंने वायदा सौदे किये, वे अब तेल लेने को तैयार नहींमंगलवार को क्रूड ऑयल -ब्रिटेन: ब्रेंट नॉर्थ सी कच्चा तेल भाव 20 डॉलर प्रति बैरल से नीचे.

2001 के बाद सबसे निचला भाव. -भारत : वायदा कारोबार में कच्चा तेल 10.89 प्रतिशत की गिरावट के साथ 1,579 रुपये प्रति बैरल. -अमेरिका : कच्चे तेल का वायदा भाव सुधार कर शून्य से 0.29 डॉलर प्रति बैरल नीचे बोला गया. बाजार का हाल तेल की चिंता में डूबा शेयर बाजार सेंसेक्स और निफ्टी में मंगलवार को तीन प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी. सेंसेक्स 1,011.29 अंक लुढ़का और निफ्टी 280.40 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ.

Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.

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