Federal hikes interest rates: फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में 0.75% बढ़ोतरी की, भारतीय बाजार को लगेगा झटका
फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दर में 0.75 फीसदी बढ़ोतरी से भारत की अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होगा. डॉलर के मुकाबले रुपये में बड़ी गिरावट दर्ज की जा सकती है. इसके साथ ही, इसका असर आरबीआई पर नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में बढ़ोतरी करने का दबाव बढ़ सकता है.
Federal Reserve hikes interest rates : अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 75 बेसिस प्वाइंट यानी 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर दिया है. बताया जा रहा है कि फेडरल रिजर्व ने महंगाई पर काबू पाने के लिए इस तरह का कदम उठाया है. फेडरल रिजर्व के इस फैसल से भारतीय शेयर बाजार को भी करारा झटका लगने का अंदेशा जाहिर किया जा रहा है. बताया यह जा रहा है कि फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में बढ़ोतरी से भारतीय मुद्रा रुपया अमेरिका मुद्रा डॉलर के मुकाबले और अधिक गिर सकता है.
1994 के बाद ब्याज दर में सबसे बड़ी बढ़ोतरी
समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी फेडरल ने ब्याज दर में वर्ष 1994 के बाद सबसे बड़ी बढ़ोतरी की है. ब्याज दर में बड़े पैमाने पर की गई बढ़ोतरी के बाद वैश्विक बाजारों में हाहाकार मचने का अंदेशा जाहिर किया जा रहा है. एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में उपभोक्ता मूल्यों पर आधारित महंगाई वर्ष 1981 के बाद से सबसे उच्च स्तर 8.6 फीसदी पर पहुंच गया. इस वजह से अमेरिका में खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई और यही वजह रही कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की महंगाई दर में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई.
होम-कार लोन हो जाएगा महंगा, अर्थव्यवस्था में आएगी मंदी
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने वर्ष 1994 के बाद से ब्याज दर में सबसे बड़ी वृद्धि की है. इससे अमेरिका के लाखों कारोबारियों और वहां के निवासियों के आम जनजीवन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. इसके साथ ही, अमेरिका की अर्थव्यवस्था में मंदी आने के भी आसार हैं. लोगों के लिए होम लोन, कार लोन और अन्य दूसरे प्रकार का लोन लेना महंगा हो जाएगा. इसके साथ ही,पहले से चल रहे होम लोन और कार लोन की ईएमआई में इजाफा हो जाएगा.
40 साल के उच्च स्तर पर पहुंची मुद्रास्फीति
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी अर्थव्यवस्था दुनिया के दूसरे देशों की तरह उच्च मुद्रास्फीति का सामना कर रही है और यह 40 साल के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है. हालांकि, उतार-चढ़ाव का सामना कर रही अर्थव्यवस्था और उच्च मुद्रास्फीति को काबू करने के लिए फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी से अमेरिकी उपभोक्ताओं को करारा झटका लगा है. बताया यह भी जा रहा है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक की ओर से ब्याज दर में की गई बढ़ोतरी बाइडन प्रशासन पर भी गहरा असर डाल सकता है.
महंगाई दर को दो फीसदी पर लाएगा फेडरल रिजर्व
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में 0.75 फीसदी बढ़ोतरी करने के पीछे अपनी मंशा को स्पष्ट कर दिया है. उसने साफ कर दिया है कि महंगाई दर को सबसे निचले स्तर पर लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की वजह से उसने ब्याज दर में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है. केंद्रीय बैंक ने अपने बयान में कहा है कि फेडरल रिजर्व किसी भी सूरत में महंगाई दर को दो फीसदी पर लाकर रहेगा. इसके लिए वह निकट भविष्य में कई और कड़े कदम उठा सकता है.
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आ सकती है मंदी
फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में बढ़ोतरी करने के साथ ही आगाह भी कर दिया है कि इस वजह से निकट भविष्य में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी आ सकती है. इसके साथ ही, उसने बाइडन प्रशासन को भी चेता दिया है कि ब्याज दर में बढ़ोतरी के चलते अमेरिका की बेरोजगारी दर में भी इजाफा हो सकता है. फेडरल रिजर्व ने पहले ही लोन की ब्याज दर में बढ़ोतरी करने का संकेत दे दिया था. केंद्रीय बैंक नेयह भी कहा कि वह ब्याज दर में बढ़ोतरी का असर अमेरिकी शेयर बाजार डाउ जोंस पर भी देखने को मिल सकता है और वह इस पर पैनी नजर बनाए हुए है.
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भारत पर कैसे पड़ेगा असर
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ब्याज दर के साथ दुनिया की अर्थव्यवस्था, अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार और शेयर बाजार जुड़े हैं. अमेरिकी मुद्रा डॉलर से दूसरे देशों की मुद्राओं की कीमतों का निर्धारण किया जाता है. फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दर में 0.75 फीसदी बढ़ोतरी से भारत की अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होगा. डॉलर के मुकाबले रुपये में बड़ी गिरावट दर्ज की जा सकती है. इसके साथ ही, इसका असर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में बढ़ोतरी करने का दबाव बढ़ सकता है. रुपये की कमजोरी और रेपो रेट में बढ़ोतरी से भारत में लोन महंगे हो जाएंगे, सोना-चांदी के दाम बढ़ जाएंगे और उपभोक्ता वस्तुओं के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी से इजाफा होगा.
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