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कर्नाटक में ‘नंदिनी’ को टक्कर दे पाएगी ‘अमूल’, जानें क्यों हो रहा ‘दूध’ पर राजनीतिक ‘युद्ध’

कर्नाटक में अमूल के खिलाफ लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी. इस विवाद में सियासी दलों का प्रवेश हो गया. कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह राज्य के किसानों की ओर से बनाए गए ब्रांड नंदिनी को खत्म करने के लिए ऐसा कर रही है.

नई दिल्ली : कर्नाटक में चुनावी सरगर्मियों के के बीच राजनीतिक दलों में ‘दूध’ पर ‘युद्ध’ भी शुरू हो गया है. हालांकि, इससे पहले इसके पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में ‘दही’ को लेकर सियासी जंग शुरू हुई थी. कर्नाटक में गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) के प्रसिद्ध अमूल ब्रांड के दूध का राजनीतिक विरोध हो रहा है. यहां के सियासी जंग में दूध के दो बड़े ब्रांड अमूल और नंदिनी मैदान में ताल ठोके हुए हैं. इस पर राजनीति भी अपने चरम पर है. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में ‘दूध’ पर सियासी ‘युद्ध’ तब शुरू हुआ, जब अमूल ने कर्नाटक में प्रवेश करने का ऐलान किया. सबसे बड़ी बात यह है कि कर्नाटक के मिल्क मार्केट में अमूल नंदिनी को टक्कर नहीं दे पा रही है. इसके पीछे असली वजह यह है कि यहां पर अमूल दूध के मुकाबले नंदिनी के दूध का दाम काफी कम है. आइए, जानते हैं इस पूरे विवाद का असली कारण

कब शुरू हुआ सियासी विवाद

कर्नाटक में अमूल दूध को लेकर सियासी विवाद तब शुरू हुआ, जब पिछले 5 अप्रैल को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) ने बेंगलुरु में अपने दूध और दही उत्पादों की आपूर्ति करने का ऐलान किया. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 5 अप्रैल को अमूल ने अपने एक ट्वीट लिखा कि कंपनी बेंगलुरु में दूध और दही उत्पादों की आपूर्ति करेगी. इस ऐलान के बाद कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह कर्नाटक की ब्रांड नंदिनी को खत्म करना चाहती है. कांग्रेस ने इसे कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) के ब्रांड नंदिनी को खत्म करने की साजिश बताया, जिसके बाद विवाद शुरू हो गया.

रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में अमूल के खिलाफ लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी. इस विवाद में सियासी दलों का प्रवेश हो गया. कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह राज्य के किसानों की ओर से बनाए गए ब्रांड नंदिनी को खत्म करने के लिए ऐसा कर रही है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि जब राज्य के पास अपना दूध ब्रांड है, तो उसे गुजरात के मिल्क प्रोडक्ट की आवश्यकता ही क्या है. विपक्ष ने इसे आम लोगों तक ले जाने का फैसला किया और राज्यभर में इसका विरोध शुरू हो गया.

कर्नाटक में बिकता है सबसे सस्ता दूध

अंग्रेजी के समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत भर में कर्नाटक ही एक ऐसा राज्य है, जहां सबसे सस्ता दूध बिकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (केएमएफ) की ओर से बेंगलुरु में उपभोक्ताओं फिलहाल 3 फीसदी फैट और 8.5 फीसदी एसएनएफ (सॉलिड-नॉट-फैट) वाले नंदिनी टोंड दूध के लिए केवल 39 रुपये का भुगतान करना पड़ता है.

दिल्ली-गुजरात में अमूल दूध का दाम

वहीं, भारत की राजधानी दिल्ली में अमूल का टोंड दूध के 54 रुपये प्रति लीटर और गुजरात में 52 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकता है. इसके अलावा, अगर 6 फीसदी फैट और 9 फीसदी एसएनएफ वाले फुल क्रीम दूध की जाए, तो दिल्ली में अमूल का फुल क्रीम दूध 66 रुपये प्रति लीटर और गुजरात में 64 रुपये प्रति लीटर बिक कर रहा है.

बेंगलुरु में क्या है भाव

वहीं, अगर कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की बात करें, मार्च की शुरुआत तक नंदिनी का फुल क्रीम दूध केवल 50 रुपये प्रति लीटर और 500 मिलीलीटर के लिए 24 रुपये में मिल रहा था. उसके बाद से केएमएफ ने क्रमशः 900 मिलीलीटर और 450 मिलीलीटर के छोटे पैक के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कीमत बढ़ा दी, लेकिन इसके बाद भी नंदिनी फुल क्रीम दूध की कीमत 53-56 रुपये प्रति लीटर की प्रभावी कीमत अमूल के दाम से काफी कम है. वहीं, नंदिनी दही का अधिकतम खुदरा मूल्य भी केवल 47 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि अमूल के 450 ग्राम पाउच (66-67 रुपये/किग्रा) के लिए यह 30 रुपये है.

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किसानों को अधिक मिलता है इन्सेंटिव

सबसे बड़ी बात यह है कि कर्नाटक में केएमएफ को दूध की आपूर्ति करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि (इन्सेंटिव) भी अधिक मिलती है. इसका संबंध उस योजना से है, जिसे पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने शुरू की थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2008 में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की भाजपा सरकार ने केएमएफ से संबद्ध जिला संघों को दूध की आपूर्ति करने वाले किसानों को खरीद मूल्य के ऊपर 2 रुपये प्रति लीटर प्रोत्साहन देना शुरू किया. पांच साल बाद मई 2013 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस प्रोत्साहन राशि को दोगुना कर दिया और नवंबर 2016 में इसे बढ़ाकर 5 रुपये प्रति लीटर कर दिया. नवंबर 2019 में जब येदियुरप्पा दो मुख्यमंत्री बने, तो इसे फिर से बढ़ाकर 6 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया. कर्नाटक सरकार की ओर से दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन राशि के तौर पर सालाना करीब 1,200 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ता है.

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