Working Hours Debate: भारत के मुकाबले में चीन में 8 घंटे कम काम, फिर भी उत्पादन टनाटन, जानें कैसे

Working Hours Debate: भारत में सप्ताह में 48 घंटे काम औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, लेकिन यह कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. चीन में सप्ताह में 40 घंटे का कामकाजी समय संतुलित और कुशलता से कार्य को बढ़ावा देता है. कर्मचारियों को आराम का समय मिलता है, जिससे उनकी उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है.

By KumarVishwat Sen | January 10, 2025 7:50 PM
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Working Hours Debate: लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन के विवादित बयान के बाद भारत में कामकाज के घंटों पर बहस छिड़ी हुई है. एक बड़ा विवाद भी खड़ा हो गया है और पूरे देश में उनकी आलोचना की जा रही है. इस बीच, एक सवाल यह भी पैदा होता है कि हमारे पड़ोसी देश चीन में लोग सप्ताह में कितने घंटें काम करते हैं. अगर आप इसकी गहराई में जाकर देखेंगे, तो पता चलेगा कि चीन के लोग भारत के लोगों के मुकाबले करीब 8 घंटे कम काम करते हैं, लेकिन उत्पादन टनाटन होता है. आइए, जानते हैं कि भारत और चीन में काम के घंटों के नियम क्या हैं, लोग सप्ताह में कितने घंटे काम करते हैं और उत्पादन कैसे होता है?

भारत में हफ्ते में 48 घंटे काम करते हैं लोग

फैक्ट्रीज एक्ट-1948 के अनुसार, भारत की फैक्ट्रियों और उत्पादन इकाइयों में एक दिन में अधिक से अधिक 8 घंटे और सप्ताह में 48 घंटे काम का समय निर्धारित किया गया है. भारत में लोग सप्ताह में 6 दिन काम करते हैं. इस हिसाब से सप्ताह में 48 घंटे काम का घंटा तय किया गया है. अगर किसी फैक्ट्री या उत्पादन इकाइयों में ओवरटाइम दिया जाता है, तो वह सप्ताह में 60 घंटें से अधिक नहीं होना चाहिए. इसके अलावा, फैक्ट्रीज एक्ट-1948 में यह भी कहा गया है कि प्रतिदिन 8 घंटे काम के दौरान 5 घंटे के काम के बाद कम से कम 30 मिनट का ब्रेक देना जरूरी है.

  • राज्यों में शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट: भारत के विभिन्न राज्यों में काम के घंटे तय करने के लिए शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट लागू है. यह कानून दफ्तरों, दुकानों और सर्विस इंडस्ट्री में काम करने वालों के लिए लागू होता है. इस कानून के तहत रोजाना 9 घंटे काम के घंटे तय किए गए हैं, लेकिन सप्ताह में 48 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए.
  • श्रम संहिता-2020: भारत में श्रम संहिता-2020 के तहत काम के घंटों को बढ़ाकर प्रतिदिन 12 करने का प्रावधान है, लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि सप्ताह में यह अधिकतम घंटे 48 तक सीमित रहे. इन प्रावधानों को लागू करना राज्य सरकारों पर निर्भर करता है. इन कानूनों के अलावा, भारत में काम के घंटों को तय करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलिशन) एक्ट-1970 और ठेका श्रमिक कानून भी लागू है.

चीन में हफ्ते में 40 घंटे काम का समय

लेबर लॉ ऑफ चाइना के अनुसार, चीन के लोग रोजाना 8 घंटे और सप्ताह में 40 घंटे काम करते हैं. यहां के लोग सप्ताह में 5 दिन ही काम करते हैं. इसलिए पूरे सप्ताह में यहां के लोग 40 घंटे ही काम करते हैं. हालांकि, चीन के विशेष क्षेत्रों में 996 वर्क कल्चर भी प्रभावी है. इसका मतलब यह है कि टेक्नोलॉजी और वित्त क्षेत्र में कर्मचारियों से सप्ताह में 6 दिन, सुबह 9 से रात 9 बजे तक काम करेंगे, लेकिन यह सप्ताह में 72 घंटे ही होना चाहिए. हालांकि, चीन की सरकार ने हाल के वर्षों में 996 वर्क कल्चर और अनियमित कामकाजी घंटे को नियंत्रित करने के लिए कदम भी उठाए हैं.

चीन में 40 घंटे काम के बाद उत्पादन और स्वास्थ्य पर प्रभाव

चीन में सप्ताह में 40 घंटे का कामकाजी समय संतुलित और कुशलता से कार्य को बढ़ावा देता है. कर्मचारियों को आराम का समय मिलता है, जिससे उनकी उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है. नियमित कामकाजी घंटे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं. तनाव और बर्नआउट कम होता है. लंबे घंटों यानी 996 वर्क कल्चर के विपरीत 40 घंटे की सीमा कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है.

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भारत में 48 घंटे काम के बाद उत्पादन और स्वास्थ्य पर प्रभाव

भारत में सप्ताह में 48 घंटे काम औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, लेकिन यह कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. खासकर अनौपचारिक क्षेत्रों में इसका नकारात्मक प्रभाव अधिक देखने को मिलता है. भारत में प्रति सप्ताह 48 घंटे का कामकाजी समय औद्योगिक और सर्विस सेक्टर की जरूरतों के हिसाब से संतुलित माना जाता है. अधिक कामकाजी घंटे निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग में उत्पादन को बढ़ावा देते हैं, लेकिन तकनीकी और ऑटोमेशन की कमी के कारण श्रमिकों पर कार्यभार बढ़ता है. इससे दीर्घकालिक उत्पादकता प्रभावित हो सकती है. लंबे काम के घंटे शारीरिक थकान, तनाव और बर्नआउट का कारण बन सकते हैं. अनौपचारिक क्षेत्रों में काम के घंटे अनियमित होने पर मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ सकते हैं.

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