नई दिल्ली : साल 2023 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर नहीं बताया जा रहा है. एक अनुमान में यह कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में आर्थिक वृद्धि दर सात फीसदी या इससे कम रहती है, तो भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का दर्जा खो सकता है. अब विश्व बैंक के ताजा अनुमान में यह कहा जा रहा है कि वर्ष 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.6 फीसदी की धीमी रफ्तार के साथ आगे बढ़ेगी. विश्व बैंक ने यह अनुमान भी जाहिर किया है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में वृद्धि दर 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपने ताजा अनुमान में कहा कि हालांकि, भारत सात सबसे बड़े उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा. वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 8.7 फीसदी थी, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में वृद्धि दर 6.1 फीसदी रहने का अनुमान है. विश्व बैंक के बयान में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी और बढ़ती अनिश्चितता का निर्यात और निवेश वृद्धि पर असर पड़ेगा.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने बुनियादी ढांचे पर खर्च और कारोबार के लिए सुविधाओं पर खर्च बढ़ाया है. हालांकि, यह इससे निजी निवेश जुटाने में मदद मिलेगी और विनिर्माण क्षमता के विस्तार को समर्थन मिलेगा. विश्व बैंक ने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 में वृद्धि दर धीमी होकर 6.6 फीसदी रहने का अनुमान है. इसके बाद यह घटकर 6 फीसदी से कुछ ऊपर रह सकती है.
चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में सालाना आधार पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 9.7 फीसदी रही है. इससे निजी खपत और निवेश में वृद्धि का संकेत मिलता है. पिछले साल ज्यादातर समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 6 फीसदी के संतोषजनक स्तर से ऊपर रही. इसके चलते केंद्रीय बैंक ने मई से दिसंबर के बीच प्रमुख नीतिगत दर रेपो रेट में 2.25 फीसदी की वृद्धि की है.
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रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के बाद भारत का वस्तुओं का व्यापार घाटा दोगुना से अधिक हो गया है और यह नवंबर में 24 अरब डॉलर था. कच्चे पेट्रोलियम एवं पेट्रोलियम उत्पादों (7.6 अरब डॉलर) और अन्य वस्तुओं मसलन अयस्क और खनिज मामले में इसके 4.2 अरब डॉलर रहने के कारण व्यापार घाटा बढ़ा है. विश्व बैंक ने कहा कि भारत ने रुपये के मूल्यह्रास पर अंकुश लगाने के लिए विनिमय दर में उतार-चढ़ाव को रोकने को अपने अंतरराष्ट्रीय भंडार (नवंबर में 550 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 16 फीसदी) का उपयोग किया.
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